झन फँसबे माया के जाल,
सब के हावै एके हाल।
कतको तैं पुन कमाले,
एक दिन अही तोरो काल।
कौनो इहाँ नइ बाँचे हे,
बड़का हावै जम के गाल।
धन-दौलत पूछत हे कौन,
जाना हे बन के कंगाल।
कौन देखे हे सरग-नरक,
पूछौ तुम मन नवा सवाल।
अंत समे मा पूछ ही कौन,
कतका हावै तोर कर माल।
‘बरस‘ कहत हे सोझ-सोझ,
नइ हे तुँहर कौनो लेवाल।
जम=यम,कतका=कितना, लेवाल=खरीददार, सोझ-सोझ=सीधा-सीधा, तँहर=तुम्हारे।
–बलदाऊ राम साहू