जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया” के दोहा : नसा

दूध पियइया बेटवा, ढोंके आज शराब।
बोरे तनमन ला अपन, सब बर बने खराब।

सुनता बाँट तिहार मा, झन पी गाँजा मंद।
जादा लाहो लेव झन, जिनगी हावय चंद।

नसा करइया हे अबड़, बढ़ गेहे अपराध।
छोड़व मउहा मंद ला, झनकर एखर साध।

दरुहा गँजहा मंदहा, का का नइ कहिलाय।
पी खाके उंडे परे, कोनो हा नइ भाय।

गाँजा चरस अफीम मा, काबर गय तैं डूब।
जिनगी हो जाही नरक, रोबे बाबू खूब।

फइसन कह सिगरेट ला, पीयत आय न लाज।
खेस खेस बड़ खाँसबे, बिगड़ जही सब काज।

गुटका हवस दबाय तैं, बने हवस जी मूक।
गली खोर मइला करे, पिचिर पिचिर गा थूक।

काया ला कठवा करे, अउ पाले तैं घून।
खोधर खोधर के खा दिही, हाड़ा रही न खून।

नसा नास कर देत हे, राजा हो या रंक।
नसा देख फैलात हे, सबो खूंट आतंक।

टूटे घर परिवार हा, टूटे सगा समाज।
चीथ चीथ के खा दिही, नसा हरे गया बाज।

घर दुवार बेंचाय के, नौबत हावय आय।
मूरख माने नइ तभो, कोन भला समझाय।

नसा करइया चेत जा, आजे दे गा छोड़।
हड़हा होय शरीर हा, खपे हाथ अउ गोड़।

एती ओती देख ले, नसा बंद के जोर।
बिहना करे विरोध जे, संझा बनगे चोर।

कइसे छुटही मंद हा, अबड़ बोलथस बोल।
काबर पीये के समय, नीयत जाथे डोल।

संगत कर गुरुदेव के, छोड़व मदिरा मास।
जिनगी ला तैं हाथ मा, कार करत हस नास।

नसा करे ले रोज के, बिगड़े तन के तंत्र।
जाके गुरुवर पाँव मा, ले जिनगी के मंत्र।

जीतेन्द्र वर्मा “खैरझिटिया”
बाल्को (कोरबा)

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