कौशिल्या दाई अउ सृंगी रिसि के पौरानिक भुंइया अउ सिरीराम के करमभुंइया रेहे छत्तीसगढ़ ह अपन बहिनी राज मध्यप्रदेस संग चौवालीस बछर संग रेहे के बाद एक नवम्बर सन् 2000 के देस के छब्बीसवां राज के रूप म अलग होइस। देस के खनिज के 38 प्रतिसत भाग, 4.14 प्रतिसत भुंइया अउ जंगल, नदिया, प्राकृतिक सम्पदा लेके धन, कला-संस्कीरति, धरम जम्मो म समृध हमर छत्तीसगढ़ ह जब अलग राज बनिस त छत्तीसगढिय़ा मन ल अड़बड़ आस रहीस। सबो आंखी म हजारों ठन सपना रहीस। नान-नान काम बर अब भोपाल के मुंह देखे बर नइ परय। अपन राज म चारों मुड़ा बिकास होही अइसे लगिस। अपार संसाधन के फायदा छत्तीसगढिय़ा ल मिलही अइसे लागिस। छत्तीसगढ़ी भाखा जेला मध्यप्रदेश संग रेहे के अड़बड़ नकसान उठाय बर परिस, संग म रेहे के सेती ओखर सनमान नई मिलत रहिसे। येला एक बोली भर माने जात रहिसे। अब छत्तीसगढ़ी भाखा ल वाजिब सनमान मिलही अइसे लागिस। बड़े-बड़े उद्योग मन म छत्तीसगढ़ के युवा मन ल रोजगार मिलही लागिस। अड़बड़ अकन सिक्षाकरमी अउ दूसर पद निकलिस घलो फेर जेन पैमाना म बेरोजगारी हे समसिया अउ बिकराल होवत जात हे। मध्यपरदेस ले अलग होय पंदरा बछर होगे फेर आज ले छत्तीसगढ़ महतारी अउ छत्तीसगढिय़ा मन अपन सनमान अउ हक बर तडफ़त हे। छत्तीसगढ़ के मनखेमन ल न तो ओ लाभ मिलिस जेन बिचार ल ले के छत्तीसगढ़ के निरमान होय रहीस अउ न तो ओ बिकास होइस जेन होना रहिसे। आदिवासी मन के हालत आज घलो उहीच हे जउन पहिली रहिसे। सिक्षा अउ सुवास्थ के सुविधा बाढि़स फेर ओखर बिस्तार सहरी जघा म जादा हे। खनिज लेगे बर करोड़ों के रेल लाइन बिछिस फेर आदिवासी मनखे आज घलो रोजमर्रा के जरूरत अउ सुवास्थ बर तना-नना होत हे। किसान अउ आदिवासी मनखेमन ल आज घलो अपन बिकास के अगोरा हे। बने दिन के बाट जोहत आज उखरो आंखी पखरा हो गेहे।
ये कहिना गलत नइ होही कि एक राज म दू ठन छत्तीसगढ़ दिखत हे। पहिली वो जिंहा एक डाहर ओमन रहिथे जिहां जम्मो सुख-सुविधा, बिजली, पानी, चमचमावत सड़क अउ स्वास्थ्य के सुविधा हे अउ जम्मो संसाधन हे, दूसर डाहर छत्तीसगढ़ के दूसर रूप जेन मा आदिवासी अउ किसान जेन सुविधा अउ दू बखत के रोटी बर आज घलो बाट जोहत हे। बिजली, पानी अउ सुवास्थ्य जेखर बर सपना बन के रहि गेहे। सुख अउ सुबिधा ह आज मुठा भर मनखे के हाथ म हावय। जेनला सबले जादा एखर जरूरत हे ओहा आज ले आदम जुग म जिनगी जियत हे। एखर पाछू अड़बड़ अकन कारन हे। जेन छत्तीसगढ़ महतारी ल रोय बर मजबूर करथे। एखर एके ठन हल हे बिकास। बिकास होना जरूरी हे फेर कोनो भी बिकास अभिरथा हे जब तक जेन ल ओखर सबले जादा जरूरत हे ओला ओ लाभ ह नइ मिलही। बिकास के सुरुज ओ आखिरी कोंटा म रहइया गरीब मनखे के छानी ऊपर घलो पहुंच के अंजोर कर सकय तब तो एखर मयने हे।
नक्सली समसिया: छत्तीसगढ़ महतारी के सबले बड़का पीरा आय बस्तर अउ छत्तीसगढ़ के आधा ले जादा जिला मन म फइले नक्सल गतिबिधि के आये दिन नक्सली हिंसा म सैंकड़ों जीव जात हे। एखर सबले जादा सिकार हमर बपरा आदिवासी जनता मन ल होवत हे। न तो उंहा इस्कूल हे, न रद्दा अउ न अस्पताल। एखर सेती चारों मुड़ा खंडहर हे, डर हे अउ आतंक हे। आदिवासी इलाका बिकास ले कतको दूरिहा हे। नक्सली-पुलिस के आपसी मुठभेड़ म आय दिन खून म भुंइया लाल होवत हे। छत्तीसगढ़ के छबि एक नक्सल भुंइया के देसभर म बन गेहे। इंहा के मनखे कहूँ बाहिर परदेस जाथे त ओला अजीब न•ार ले देखे जाथे। एखर समाधान बर सब ला उदीम करे के जरूरत हे। एखर बिन राजनीति के अउ बिन सुवारथ के बीच के रद्दा निकालना जरूरी हे ताकि जम्मो राजभर के मनखे ल बिकास के, सिक्षा के, सुवास्थ्य के लाभ मिल सकय।
कोनो भी दाई के बेटा मरय छत्तीसगढ़ महतारी ल अड़बड़ पीरा होथे। एखर हल निकालना खच्चित जरूरी हे। नक्सली मन अपन बात ल बन्दूक ले नहीं बातचीत के माध्यम ले रखय अउ प्रसासन घलो कोनो रस्ता बातचीत के निकालय। ये बात ल समझे के अउ एखर जल्दी हल निकाले के जरूरत हे। छत्तीसगढ़ दाई ल ये पीरा ह अड़बड़ ब्यापथे।
छत्तीसगढ़ी भाखा के पीरा: कोनो भी राज के मुख्य पहिचान होथे उंहा के भासा। जेन भाखा ल हम अपन महतारी ले सीखथन, जेमा सपनाथन, जेमा खेलथन उही हमर महतारी भासा कहाथे। कोनो भी परदेस के पहिचान उंहा के भासा अउ संस्कीरति ले होथे। जइसे महाराष्ट्र के मराठी, गुजरात के गुजराती, उड़ीसा के उडिय़ा, पस्चिम बंगाल के बंगाली अउ कर्नाटक के कन्नड़। फेर बड़ दु:ख के बात हे कि राजभासा के दरजा तो छत्तीसगढ़ी ल दे दे गेहे। फेर न तो एमा सरकारी कामकाज होवय अउ न ही बिधानसभा म कोनो कार्रवाई अउ न ही प्राथमिक सिक्षा के माध्यम थोड़कन दिन तक खानापूर्ति होइस घलो फेर एला बिसरा दे गेेहे। अउ तो अउ सबले बड़े दु:ख के बात हे भारत के जम्मो राज मन म प्राथमिक पाठ्यकरम के माध्यम उंहा के राजभासा रहिथे। फेर इंहा के माध्यम हिंदी हे। एक-दू ठन छत्तीसगढ़ी पाठ मन ल भले बीच-बीच म डार दे गेहे। एम.ए. छत्तीसगढ़ी होवत हे फेर प्राथमिक म सिक्षा के माध्यम अउ अलग बिषय छत्तीसगढ़ी नइहे। जब तक बिज्ञान के भासा म केहे जाय त इंहा के डी.एन.ए. (प्राथमिक सिक्षा)म छत्तीसगढ़ी नइ आही तब तक सबो काम अबिरथा हे। ये बात म धियान देना चाही कि छत्तीसगढ़ म लइका जब हमर पहिली कक्षा म आथे त ओखर करा छत्तीसगढ़ी के सब्दशक्ति रहिथे न कि हिंदी के। आज छत्तीसगढिय़ा के लइका मन घलो अइसे सिक्षा (दाईभाखा के जघा हिंदी ले) ल पाके छत्तीसगढ़ी ल छोटे समझत हे। बड़े होके छत्तीसगढ़ी बोलइया लइका ल अड़हा अउ हिंदी बोलइया ल हुसियार समझे जात हे। ये बात ल समझे ल परही अउ राज्य अउ केंद्र सरकार ल एला (छत्तीसगढ़ी भासा ल) आठवां अनसूची म इस्थान दे के काम करना चाही। तरी-ऊपर एके पारटी के सरकार हावय त एमा कोनो बड़े उदीम करेबर घलो नइ परय। छत्तीसगढ़ म हाल म नवा अउ जुन्ना साहित्यकार मन मिलके ए दिसा म अड़बड़ सुग्घर बुता करत हें अउ अपन दाईभाखा छत्तीसगढ़ी म आनी-बानी के रचना करत हें। समाचार पेपर मन घलो छत्तीसगढ़ी परिशिष्ट निकालत हें। जेन ये बात के गंभीरता ल दिखात हे कि छत्तीसगढिय़ा मनखे के मन म अपन भाखा बर कतका परेम हे। फेर ये बात ल समझे अउ छत्तीसगढ़ी बर भिड़े के जिम्मेदारी हम सबो झन के हरे। छत्तीसगढिय़ा अउ छत्तीसगढ़ महतारी के ये हक हरे कि ओखर संस्कीरति, ओखर मूल रहइया के, उंखर भासा ल सनमान मिलय उंखर हक मिलय। बाहिर ले आय मनखे ये बात ल नइ समझ सकय।
किसान अउ मजदूर के गिरत इस्तर: छत्तीसगढ़ ह गंवई-गांव के परदेस हरे। किसानी ह इंहा के पहिचान हरे। इंहा के 80 प्रतिसत जनता किसानी अउ मजदूरी करथे अउ अपन दू बखत के रोटी के जुगत करथे। तभो ले आज ओखर बिकास नइ होय हे। ओखर जिनगी के इस्तर आज ले करलइ हवय। अन्नदाता ह अपन मिहनत अउ जम्मो पइसा कउड़ी जेन सेठ-साहूकार ले ले रहिथे। जम्मो ल खेती म लगा देथे। तभो ले जब पानी-कांजी नइ गिरय त ओला संसो होयबर धरते कि अब कइसे करजा ल छुटहंव। ये दिसा म सोंचे के जरूरत, सिंचई अउ सुविधा के बिस्तार जरूरी हे। जतका जादा हो सके सुविधा देना चाही ताकि फेर हमर छत्तीसगढ़ धान के कटोरा कहाय। देस बर अपन सरबस देवइया किसान कभू आत्महत्या झन करय। ओहा अपन आप ल अकेल्ला झन समझय, किसानी ल हिन बुता झन समझय, एखर बर समाज ल सोंचे बर अउ काम करे बर परही। किसान कभु किसानी करेबर अपन हाथ ल झन तीरय एखर परयास अउ बेवस्था होना चाही। काबर लइका के आंखी म आंसू देख के दाई ह कभु खुस नइ हो सकय। जेन देस के किसान दुखी रहिथे ओखर बिकास कभु नई हो सकय अइसे बिद्वान मन के कहना हे।
सहरीकरन अउ औद्योगीकरन लीलत हे खेत-खार: जेन छत्तीसगढ़ के चिन्हारी ओखर धान-पान ले होवय आज फसल नइ होय ले चारों डाहर सुन्नापन हे। कई बछर ले खेती म घाटा ल देख के किसानमन अपन खेत ल बेच के आन बुता करत हे। सरकार अपन इस्तर म मुआवजा देवत हे फेर उहू ऊँट के मुंहु म जीरा कस होवत हे। करजा बोड़ी म डूबे किसान के हालत अड़बड़ खराब हे। का करे का नइ करे कस हो गेहे। ऊपर ले बाढ़त औद्योगिकरन अउ जनसंख्या ह खेत खार ल लीलत हे। पइसावाले मन के चक्कर म आके बपरा किसानमन अपन भुंइया अउ खेतखार ल बेचत-भांजत हे। पहिली जेन जघा म हरियर-हरियर खेत खार दिखय अब ओ जघा म धुआं उड़ावत उद्योग अउ बड़े-बड़े माल अउ फ्लेट, कालोनी दिखत हे। खेत-खार मन अब कांकरीट के जंगल हो गेहे। सहरीकरन अउ उद्योग वाले मन गुनान ल करयं जब खेत नइ रइही त ओमन काय खाहीं अउ काय बनाहीं। छत्तीसगढ़ दाई के एकठन बड़े संसो इहू हे।
पलायन अउ नसा: छत्तीसगढ़ महतारी के बेटामन जब किसानी म अपन नकसान ल देख के अंते जावथें त दाई ल अड़बड़ दु:ख होथे। हमर भुंइया के अउ हमर पेट के भूख बर उदीम करइया के ये हालत अउ मोटरा ले के लखनऊ,चांदागढ़, आगरा अउ सूरत जाथें त अपन लईका ल कोरा छोड़ के जात दाई के खून छौंक जथे। एकठन अउ सबले बड़े पीरा हवय गांव-गांव अउ गली मन म फैले नसा के कारोबार। जेन नान-नान इस्कूल के लईका मन म फइल के हमर जवान पीढ़ी ल खोखला करत जावत हे। घर-घर अउ इस्कूल मन म एखर बर जागरूकता फैलना चाही कि नसा ह नास के जड़ हे।
हर घर अउ ग्राम पंचायत इस्तर म नसा के खिलाफ अभियान चलना चाही। रोज पेपर मन म नसा के सेती मनखे मन म दुर्घटना अउ लड़ई-झगरा के खबर आत हवय। जब घर-घर म दारु अउ झगरा होही त छत्तीसगढ़ महतारी के कलपना वाजिब हवय। ये जम्मो बात ल सोंचे अउ ओखर बर भिड़े के काम ल हम जम्मो ल मिलके करना हे। एक मनखे के करे ले ये ह नइ होवय। जम्मो छत्तीसगढिय़ा चाहे ओ राजा होवय कि परजा ल अपन भुंइया बर सोंचना हे अउ नवा छत्तीसगढ़ गढऩा हे।
‘चल न भाई, चल न दीदी नवा छत्तीसगढ़ गढ़बो।
मिरजुल के सब मिहनत करबो बिकास के रद्दा म बढ़बो।।’
–सुनील शर्मा ‘नील’
थान खम्हरिया,बेमेतरा