दिया बन के बर जतेंव

29102011365दाई ! तोर डेरौठी म , दिया बन के बर जतेंव ॥
अंधियारी हा गहरावथे , मनखे ला डरूहावथे ।
चोरहा ला उकसावथे , एकड़ा ला रोवावथे ॥
बुराई संग जूझके , अंगना म तोर मर जतेंव ।
दाई ! तोर डेरौठी म दिया बन के बर जतेंव ॥
गरीबी हमर हट जतिस , भेदभाव गड्ढा पट जतिस ।
जम्मो गांव बस जतिस , सहर सुघ्घर सज जतिस ॥
इंखर सेवा करके , महूं घला तर जतेंव ।
दाई ! तोर डेरौठी म , दिया बन के बर जतेंव ॥
पिछवाये मन संघर जतिन , अगुवाये मन अगोर लेतिन ।
बूड़े मन उबर जतिन , उलझे मन संवर जतिन ॥
किसान के अंग ले , पछीना बन के निथर जतेंव ।
दाई ! तोर डेरौठी म , दिया बन के बर जतेंव ॥
काम करइया मंडल हे , कोढ़िहा बर दंगल हे ।
पिरथी म ईमानदार बर , सबो दिन मंगल हे ॥
मजदूर मन बर , गुरतुर आमा बन के फर जतेंव ।
दाई ! तोर डेरौठी म , दिया बन के बर जतेंव ॥
तोर कोरा हे गाद हरियर , तोर दूध हे अबड़ फरियर ।
तोर पांव म चढ़ावत हंव , में अपन मुड़ के नरियर ॥
सिपाही मन के रद्दा म , धुर्रा बन के बगर जतेंव।
दाई ! तोर डेरौठी म , दिया बन के बर जतेंव ॥

गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा

Related posts

2 Thoughts to “दिया बन के बर जतेंव”

  1. sunil sharma

    भाखा नई हे अतका सुग्घर रचना हवय गजानंद जी के

  2. देवांगन जी आपके रचना बहुते सुग्घर लागीस।
    येकर बर आप ल बधाई।

Comments are closed.