हमर छत्तीसगढ़़ म अभी जउन नवा पीढी के लइकामन पढ-लिख के तियार होवत हें तेन मन ह छत्तीसगढी़ भासा ले दूर भागत हें। वोमन छत्तीसगढी म बोले बर नई चाहंय। छत्तीसगढी भासा जउन ह हमर मातृ भासा ए, तेमा बोले बर लजाथें। घर म ददा-दाई, बबा, कका दाई मन लइकामन के संग छत्तीसगढी म कुछू पूछथें त वोमन वोकर जुवाब हिन्दी म देथें। येहा बड दु:ख के बात आय।
हमर देस के दूसर राज के लइकामन अपन ‘मातृभाषा’ बात करइ ल अपन सान समझथें। ऐकर ले उलट हमर छत्तीसगढ के पढे-लिखे लइकामन ह गांव- देहात, मेला-मडई या जेन जघा चार झन सियानमन बइठे हे अउ लइकामन ल कुछू पूछ देथें त वोकर जवाब लइकामन ह हिन्दी म देथें। इही हालत रहही त कुछ बछर म छत्तीसगढी ह नंंदा जही तइसे कि वोहा जिहां पइदा होइस, जिहां पलिस- बढिस हे उहां के भाखा ल बोले बर झन छोडंय।
लइकामन देखंय की कइसे हमर इहां के रहवइया गैर छत्तीसगढिया मन घलो छत्तीसगढी म गोठियाथें। चाहे वोमन कोनो धरम, जाति, परदेस के होवय। बाजार म, दुकान म कांही जिनिस बिसाय बर जाबे त वोमन छत्तीसगढी म गोठियाथें। दुरुग म एकझीन चीनी डाक्टर रहिथे। वोहा अपन मरीज मन संग सुघ्घर ढंग ले छत्तीसगढी म गोठियात रिहिस। वोला देखके मोला नाचे के मन होगे। जब गैर छत्तीसगढिया मन छत्तीसगढ म रहिके छत्तीसगढी म बात करे म नइ लजावंय त हमर नवा पीढी के पढे-लिखे छत्तीसगढिया लइकामन ल घलो छत्तीसगढी बोले-बतियाय म कोनो जघा लजाय के जरूरत नइये।&
– कृष्णकुमार शर्मा
पद्मनाभपुर दुर्ग