नान्हें कहिनी गुरुजी के सीख – राघवेन्द्र अग्रवाल

”बेटा तें ह किसानी म झिन पर गा, ऐमा गुजारा नि होवय, कछेरी म बाबू बन जा त रटाटोर पइसा पाबे अउ हमर हालत सुधर जाही। ओकर बाबू कथे-ददा! ते किसानी ल अपन ढंग ले करत रहे, में ह तो किसानीच्च करिहा। ते देखबे तो कइसे हमर दसा ह नि सुधरही तेला।
ए क दिन गुरूजी ह अपन कक्षा के लइकामन सोज पूछिस-”तुमन पढ़ के काय बनना चाहत हो? लइकामन कथें- गुरूजी में डाक्टर बनिहां। गुरूजी में मिस्त्री बनिहां। एक झिन लइका कथे-”गुरूजी मोर घर म किसानी हे मे ह किसानी करिहां।” वोकर बात ल सुन के सबे लइका हांसे लागिन। कहिन- ”अरे जोजवा! किसानी करे बर का पढे बर लागथे अनपढ़ किसानी करथे। काय करबे तेंह पढ़-लिख के?” ऊंकर बात ल सुन के गुरुजी कथे- सुनव लइका हो! पढ़ेबर सबे ला लागथे पढे-लिखे के परिनाम ह सफलता के रूप म मिलथे। सबे मनसे कुछु न कुछु बनना चाहथे। एकर खातिर एक ठन लक्ष्य बनाय बर लागथे। सबसे जादा सफल उही मनखें होथे जेन ह अपन जिनगी के लक्ष निरधारन कर ले हे अऊ वोला पायबर पोट्ठ मिहनत करे हे। पढ़े-लिखे ले मनसे के भीतर गियान आथे अउ अपन कारज ला कइसे करे जाय एकर इलम आथे। किसान भाई मन पढ़ के जादा अन्न उपजाय के बात ल बिचार करके वैज्ञानिक ढंग से खेती ल करही त उपज जादा होही। उपज जादा होही त पइसा जादा मिलही अऊ पइसा जादा मिलही त रहन-सहन अचहा होही अउ अपन लइकामन ला घला पढ़ाय लिखाय सकहीं। आज पइसा के अभाव म गांव म शिक्षा के कमी हे तेन पाय के जागरिति नइए, अउ दूसर के बुध म आ के अपन नुकसान कर डारथें। त किसानी करइय्या ल हांसना नि चाही काबर उंकरे भरोसा शहर वाले के जिनगी ह चलत हे पढे-लिखे मन के काम कइसना होथे एक ठन नानकन किस्सा अपन गांव के सुनावत हंव। धियान लगाके सुनव। हमर गांव म एक झन मंडल के नाव हे रसहा दस अक्कड़ के किसान ये फेर सगर दिन ररूहा के ररूहा। निस्तार के पुरती घला अन्न ह नइ होवय। वोकर एक झिन बाबू रहय ”गियानू”। ते ह पढ़ -लिख के बने हुसियार होगे। वोकर ददा ररूहा ह कथे- ”बेटा तें ह किसानी म झिन पर गा, ऐमा गुजारा नि होवय, कछेरी म बाबू बन जा त रटाटोर पइसा पाबे अउ हमर हालत ह सुधर जाही।” वोकर बाबू कथे- ”ददा! तें किसानी ल अपन ढंग से करत रहे। में ह तो किसानीच्च करिहां। वे देखबे तो कइसे हमर दसा ह नि सुधरही तेला।” येदे वो ह किसानी म लग गे जिहां दस अक्कड़ म पचास बोरा धान लेत रहय तिहां तीन सौ बोरा धान होय लगिस। अपन किसानी के जनावर मन ल पोट्ठ दाना-भूंसा खवावय, समय म खेती के काम ल करय। ओकर एक ठन बाना रहय ”खेतीराम आगू” अपन पढ़ई के पूरा फायदा उठाइस अउ गांव भर ले आगू होगे। अउ घर भरगे। त- खूब पढ़व-लिखव अउ जउन जहां जाहा अपन काम ल मिहनत अउ लगन ले करिहा त जिनगी म सुखी तो रहिहौच्च, नावं घला कमाहू।

-राघवेन्द्र अग्रवाल खैरघटा वाले
बलौदाबाजार

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