जन्म से लेके मृत्यु तक मनखे मन के सोला संस्कार होथे अऊ सोला संस्कार मं एक ठन संस्कार हे बिहाव संस्कार। बिहाव संस्कार ह अड़बड महत्वपूर्णं होथे काबर कि दू झन परदेसी ह एक संघरा जिनगी बिताय बर तियार होथे। हमर छत्तीसगढ़ मं अनेक जाति के मनखे हे अउ जाति के अनुसार बिहाव के अनेक परम्परा अउ महत्व हे, त आवव बिहाव के कुछ परम्परा अउ ओकर महत्व ऊपर एक नजर डालथन।
* तेलमाटी-चुलमाटी– बिहाव के पहिली दिन तेलमाटी चुलमाटी के कार्यक्रम ह होथे। माटी ल साबर मं कोड़ के घर मं लाथे अउ उही माटी के चूल्हा बनाथें काबर कि सगा पहुना मन ह देवता के समान होथे त देवता ल जूठा चूल्हा मं भात रांध के थोड़े खवाबे। ओकर सेती नवा चूल्हा बनाय जाथे। अऊ तेल चढ़ाय के जगह ल घलो उही माटी मं छाबथें काबर कि लइका के तेल चढ़ाय के जगह ह घलो पबरीत राहय, पबरीत जगह मं ही देवी-देवता मन बिराजथें तेकर सेती तेल चढ़ाय के जगह ल माटी मं छाबके पबरीत करे जाथे।
* मांदर ठोकई– तेल चढाय के पहिली मांदर ल ठोके जाथे। ये हर परम्परा हरय अऊ ये परम्परा के महत्व हे कि जइसे पूजा करे के पहिली हमन शंख ल बजाथन त मनखे मन जान डारथे कि अब पूजा ह चालू होही, वइसने मांदर ल ठोक के मनखे मन ल बताय जाथे कि आज ले हमर घर मं बिहाव के रस्म ह चालू होवत हे, जम्मो झन आहू।
* तेल चढ़ाई– जेकर बिहाव होथे तेन नोनी-बाबू के हाथ गोड़ मं हरदी ल चुपरे जाथे। ये हर परम्परा हरय अऊ येकर महत्व हे कि हरदी ह तन ल सुघ्घर बना देथे अऊ तन ह फूल असन खिल जाथे, अऊ हरदी ह तन मं गरमी होवन नई देवय, तेकर सेती हरदी चुपरे के परम्परा ल बनाय हावय।
* मायन भरना– (मायन पूजन) बिहाव के दूसर दिन मायन भरे जाथे। मायन भरे के मतलब होथे अपन पुरखा मन के आत्मा अऊ देवी-देवता मन ल नेवता नेऊतना- ये हर परम्परा हरय अऊ येकर महत्व हे कि पुरखा अऊ देवी-देवता मन के आशीर्वाद से ही कोनो भी काम ह सफल होथे।
* बराती सुवागत– बिहाव के तीसर दिन बराती सुवागत के कार्यक्रम ह होथे। बराती सुवागत मं समधी मन ह एक-दूसर के कान मं दुबी ल खाेंचथे, नरियर भेंट करथे अऊ एक-दूसर ल धकियाथें- ये रस्म के जरिये से एक-दूसर ल कहिथें कि समधी आज ले हमन सगा बनगेन अऊ एक-दूसर के सुख-दुख मं साथ देबो।
* पानी गरहन– पानी गरहन मं नोनी के दाई-ददा मन ह अपन नोनी के हाथ ल अपन दमाद बाबू के हाथ में देथे। ये हर परम्परा हरय अऊ येकर महत्व हे कि अतका दिन ले हमन नोनी के जतन ल करेहन, ओकर सुख-दुख के साथी रहे हन अऊ आज दमाद बाबू हमन नोनी ल तोला सऊपत हन, आज ले नोनी के हर जिम्मेदारी ह तोर हरय।
* टिकावन-दाई- ददा ह पानी गरहन करे के बाद टिकावन टिकथे। टिकावन मं गऊ माता ल टिकथे, ये हर परम्परा हरय अऊ येकर महत्व हे कि गऊ माता ह लक्ष्मी (धन) हरय अऊ लक्ष्मी ल दे के दाई-ददा मन कहिथें कि बेटी तोर घर मं कभू लक्ष्मी के कमी झन होवय, खाय-पीये बर तुमन कभू दुख झन पावव, गऊ माता ह तुंहर घर ल लक्ष्मी मं भरय।
* गांठ बांधना– वर अऊ वधू के वस्त्र के छोर ल बांध देथे येकर महत्व हे कि आज ले दुनो झन दु तन अऊ एक प्राण हरे। दुनो झन एक होके संगे-संग चलबोन। कभू एक दूसर ल अपन ले अलगे नई समझन।
* बचन देना– वर ह वधू ल ग्यारह बचन देथे अऊ वधू ह वर ल नौ बचन देथे। बचन दे के महत्व हे कि जिनगी के गाड़ी ल पटरी मं सही ढंग से चलाबोन कभू कोनो परेशानी आही त जिनगी के गाड़ी ल आघु बढ़ाय बर दुनो कोई एक-दूसर के साथ ल देबोन तभे गाड़ी ह आघु बढ़ही।
* भांवर किंजरना– नोनी अऊ बाबू हर सात भांवर किंजरथे। चार भांवर मं नोनी ह आघु रहिथे अऊ तीन भांवर मं बाबू ह आघु मं रहिथे। येकर महत्व हे कि जिनगी के गाड़ी ल चलाय बर वधु के बिचार ल जादा महत्व दे जाही काबर कि नारी हर देवी स्वरूपा हरय त ओकर बिचार ह पुरुष ले ाादा महत्वपूर्णं हे।
* सिंदूर भरना– वर ह वधु के मांग मं सात बार सिंदुर ल भरथे, येकर महत्व हे कि वर ह वधू ल कहिथे कि मे हां सात जनम तक तोरेच सुहाग बनहूं, तोर मांग मं हमेशा मैं हा सिंदूर बनके सजे रइहूं , जिनगी में मैं हा कभू तोर संग ल नई छोड़वं।
* बिदाई– बिहाव होय के बाद मं दाई-ददा ह अपन दिल मं पथरा ल रखके नोनी ल बिदा करथे अऊ येकर महत्व ल बताय के जरूरत नई हे काबर कि नोनी ल बिदा करही तभे नोनी ह अपन घर दुवार मं जाही अऊ सुघ्घर कमाही खाही।
सदानंदनी वर्मा
ग्राम- रिंगनी (सिमगा)