हमर हिंदू धरम के अनुसार जेखर जनम होय हाबय ओखर मरना निसचित हाबय। अपन परिवारदार के सरगवासी होय के बाद पितर मिलाथन। भादो के उजियारी पाख पुन्नी से लेके असवीन मास के अमावस तक हमन अपन पितर देवता मन के पूजा-अरचना करथन। ’’श्रद्धा इदं श्राद्धम्’’ मतलब जो श्रद्धा से किये जाथे, वोला सराध कइथे।
पितर पाख म हमिंहंदूमन मन, करम, अऊ बानी से संयम के जीवन जीथन। पितर देवता के स्मरन करके वोमन ल जल चढ़ाथन। अऊ जरूरतमंद ल यथासक्ति दान भी देथन। पितर पाख म अपन सरगवासी दाइ-ददा के सराध करथन।
पितर पाख म तीन पीढ़ी तक के ददा पछ अऊ तीन पीढ़ी दाइ पछ बर तरपन किये जाथे। येही ल पितर कइथे। जे तिथि म दाइ-ददा के देहांत होय रइथे वइ तिथि म पितर पाख म उमन के सराध किये जाथे।
सास्त्र के अनुसार पिण्डदान बर तीन जगह ल सबसे बिसेस माने गये हाबय।
1. गया जी– जब बात आथे सराध करम के त बिहार के गया जी के नाव सबसे पहिली आथे। इहां बछर म एक बार पितरपाख म पंद्रह दिन पितर तरपन बर बिसेस आयोजन होथे। माने जाथे कि पितर पाख म बिसनु मंदिर के पास फल्गू नदिया के तीर अऊ अक्षयवट के तीर पिण्डदान करे म पितर रिन से मुक्ति मिलथे। अइसे माने जाथे के मरयादा पुरूसोत्तम भगवान सिरी राम ह खुद ये जगह म अपन ददा राजा दसरथ के पिण्डदान करे रहिस तब ले ऐे माने गय हे के ये जगह म आके कोनो भी मनखे अपन दाइ-ददा के निमित पिण्डदान करही त पितर देव ओखर से तृप्त रही अऊ ओ मनखे ह अपन पितर रिन से उरिन हो जाही।
2. बद्रीनाथ– इहां ब्रहमकपाल सिद्ध छेत्र म पितर-दोस मुक्ति बर करम किये जाथे।
3. हरिद्वार– इहा नारायनी सिला के तीर म पितर देवता मन बर पिण्दान किये जाथे।
कब-कब कोन पितर देवता के सराध करना चाही उहू ल हमर धरगरंथ म बताये गये हे। जैइसे :-
1. सरगवासी माइलोगन मन के तरपन नउमी तिथि के दिन करे के बिधान हावय।
2. कभु-कभु अइसे हो जाथे के हमन के पूरवज के मरनी के तिथि गम नइ पावन त ओखर सराध ल अमावस के दिन करथन काबर के ये दिन सर्वपितृ अमावस के तिथि रइथे।
3. कोनो दुरघटना के कारन मर जाथे त ओ मनखे के सराध चऊथ तिथि के करे के बिधान हावय।
तैत्रीय संहिता के अनुसार पुरवज के पूजा हमेसा जेऊनी कंधा म जनेऊ अऊ दछिन दिसा कति मुह करके करना चाही। काबर के ऐ दिसा म पितर देवता ल इस्थान मिले हावय।
सराध करम म कुछ चीज के जरूरत पड़थे जेमा गंगाजल, गोरस, मधुरस, मारकिन कपड़ा, दऊहित्र, कुस, उरिद दार, जवा अऊ तिल सामिल हे। पितर देवता मन ल तरपन नदिया म,तलाव म अऊ जिहा नदिया,तलाव नइ रहय त घर म ही पीतल के बरतन अऊ तांम के लोटा म जल से तरपन करथे। अऊ घर म पितर पाख भर गुड़-घी के हूंम दिये जाथे पितर पाख म तरोइ के घलऊ बहुत महत्तम हाबय, तरोइ ल घी म छान के येहू ल हुमाही म गुड़-घी के साथ डारथे। अऊ बिना नून के बरा, सोहारी, बोबरा आदि के पितर देवता मन ल भोग लगाये जाथे। घर के ओरी के नीचे सुघ्घर चऊक पुरे जाथे अऊ चऊक के उपर म फूल रखे जाथे। पितर देवता मन ल भोग के परसाद ल आरा-परोस म भी बाटथन। पितर पाख के आखिरी दिन याने अमावस के दिन रोज के जे हूंम देहे रइथन ओला तरोइ के पत्ता म तोप-ढ़ांक के नदिया, नरवा, तलाव म जाके आदर पूरवक बिसरजन करे जाथे। तुलसी से पितर देवता मन परलय काल तक परसन अऊ संतुस्ट रइथे। ऐसे माने जाथे के पितर देवता मन सराध के बाद गरून म सवार होके बिसनुलोक चल देथे।
ये परकार ले देखा जाय त पितर पाख ह हमर पुरवज मन के याद करे के माध्यम हावय जेमा हमन पूरा एक पाख श्रद्धा-आदर भाव स सुद्ध परबित्र मन से हमन अपन पुरवज मन ल सराध करके ओमन ल तिरिप्त करथन अऊ ओमन के आसीस पाके हमन जीवन ल धन्य मानथन।
प्रदीप कुमार राठौर ’अटल’
ब्लाक कालोनी जांजगीर
जिला-जांजगीर चांपा छत्तीसगढ़