पढ़व, समझव अउ करव गियान के गोठ -राघवेन्द्र अग्रवाल

एक बखत के बात ये, संतखय्याम ह अपन एक झन चेला संग घनघोर जंगल के रद्दा ले जात रहिस हे। नमाज पढे क़े बेरा म दूनू गुरू-चेला नमाज पढ़े बर बइठिन तइसने उनला बघवा के गरजना सुने बर मिलिस अउ थोरेकच्च म देखिन के बघवा ह उंकरे डहर आवत हे। चेला ह डर के बारे एकठन रुख म चढ़गे जबके वोकर गुरू खय्याम ह धियान लगा के नमाज ल पढ़त रहय। बघवा वो करा आइस अउ चुपचाप चल दिस। बघवा के जाय बाद चेला ह रुख ले उतरिस अउ नमाज खतम होय के बाद म दूनू गुरु चेला फेर आगू रद्दा रेंगिन।
जात थोरेकेच्च बेर होय रहिस एक ठन मच्छर ह गुरु के गाल म काट दिस त वोला मारे बर गुरुजी ह अपन गाल म एक थपरा लगाइस। देखिस त चेला संक्खा करे लागिस अउ कथे-”गुरुजी छिमा करिहा मोर मन म एक ठन संक्खा हमा गे हे। अभीच्चे थोकन बेर पहिली जब बघवा तुंहर तिर आइस तब तुमन थोरकोच्च नि डेर्रायव अउ थोकन मच्छर काट दिस त घुस्सा गेव।”
मुसलमान संत खय्याम ह कथे-”तैं सिरतोन कहत हस। फेर तैं हर भुलावत हस जब बघवा ह आय रिहिस त में ह अपन खुदा के संग म रहेंव जबके मच्छर काटे के बेरा एक झन मनखे के संग। इही कारण ये के मोला बघवा आय के भनक तक नि लगिस।”

-राघवेन्द्र अग्रवाल
(खैरघटा)
बलौदाबाजार

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