पहिली घांव रूपिया ल रोवत देखिन लोगन। जंगल म आगी लगे जइसे खबर फइल गे। कतको झिन ल बिसवास नि होइस । सचाई ल जाने बर कतको मनखे बेचेन होए लागिन। सरी दुनिया ल अपन तमासा अउ करतब ले रोवइया ल, उदुप ले रोवत सुनना अउ देखना, आसचर्य अउ सुकुरदुम होए के, बिसे रिहीस। जम्मो सोंचे लागिन काबर रोवत हे रूपिया, काए बिपत्ती परे हे ओकर उप्पर। सकलागे उही जगा म कतको मनखे। पूछे गऊंछे लागिन। काए पीरा खावत हस या तेमे, डेंहक डेंहक के रोवथस? बड़ किरोली के पाछू तियार होइस बताए बर। केहे लागिस – मोला गिर गे, गिर गे कहि के बदनाम करथव घेरी बेरी, अउ पूछे ल घला आथव, तूमन ल थोरको लाज सरम नइये? जम्मो झिन हांसिन। हमन तोर संग कहीं कुछु होगिस होही – सोंच के आए हाबन। गिरथस तेला, गिर गे, केहे म, काए लाज? ऐमे रोए के का बात हे – रूपिया के गोठ पूरा होए के आघू, कहि पारिस एक झिन। उहीच ल बतावत हंव भई, मेंहा गिरत रहिथंव, उठत घला रहिथंव, फेर आजेच तुंहरे संगवारी, गोठ गोठ में, मोला , नेता कस गिर गे रूपिया ह, कहि के बदनाम कर दीस – इही बात मोर छाती म बाण मारे कस लागिस, ऐकरे पीरा के मारे बेचेन हो के रोवत हंव।
बने ते किहिस, तेंहा वाजिम म नेता कस गिरथस, ऐमे गलत कहींच निये। अभू रूपिया, अउ गोहार पार के, दंड पुकार के रोए लागिस। लोगन मन बड़ समझइस, थोरकिन बेरा म सांत होए के पाछू, भावुक होके केहे लागिस – मोला चाहे चोट्टा मन कस गिरे समझ लौ, चाहे बईमान कस , चाहे बईजात कस, चाहे जुठल्ला धोकाबाज कस गिरे समझ लौ, फेर नेता कस अतका गिरे झिन समझौ। काबर के चोट्टा कभू न कभू पछताथे, बईमान ल ओकर हिरदे कभू न कभू धिक्कारथे, बईजात, सतसंगत के असर म, कभू न कभू सुधरीच जथे, अउ जुठल्ला धोखाबाज मनखे, सजा पाके सही, फेर सोज रद्दा म, रेंगे ल धर लेथे। फेर कोन जनी, नेता ल कते माटी म गढ़हे हे भगवान घला, न वोहा कभू पछताए, न होकर हिरदे – ओला कभू धिक्कारे, न कभू सतसंग के असर म सुधरे, न सजा पाके झूठ बोलई अउ धोका देवई बंद होए।
में गिरथों जरूर, फेर उठ घला जथंव, अउ ये नेता मन सिरिफ गिरथें, उठे निही, अइसन मन संग, मोला संघेरहू, त मोर हिरदे म कतका छेदा होए होही, अउ कतका पिरावत होही तेला मिही जानहूं। इही कलेस मोला रोवावत हे। एक ठिन गोठ अउ, में गिरंव निही, गिराए जाथंव, अउ गिरत गिरत, गिरवइया के भला घला कर देथंव, फेर ये नेता मन अपन ले गिरथें, अउ जतका घांव गिरथें, अपनेच सुख बर गिरथें, दूसर ल दुख पहुंचाए बर गिरथें। एमन सत्ता के खुरसी ऊप्पर गिरथें, त देस ल फोंगला करथें, धरम के खुरसी म गिरथें, त जनता के आसथा ल मुसेट के मार डारथें, समाज के खुरसी म गिरथें त भई भई ल लड़ाथें, घर घर ल टोरथें। में कोन्हो ल गिरावंव निही, हमेसा उठाथंव, खड़ा करथंव। फेर येमन कोन्हो ल उठाए निही, सिरिफ उठाए के नाटक करथें। एमन कोन्हो ल खड़ा होवन नि दे। अउ उठाथें, सिरिफ गिराए के मजा ले खातिर। एक ठिन गोठ अउ, में गिरथंव त बड़ मुसकिल ले चलथंव, फेर ये मन जतका गिरथें ततके जादा चलथें।
अइसन म तोला खुस होना चाही, के तोर तुलना अतका चलने वाला मनखे संग होवत हे। उहू बड़े जिनीस, तहूं बड़े जिनीस। निही भई, में बड़े नोहों, में छोटे ले छोटे मनखे के पछीना ले उपजे हंव, अउ येमन एसी कूलर के ठंडा म जनम धरे मनखे आए। फेर, तिहीं ह येमन ल अउ बड़े बनाए हाबस जी। में कहां बड़े बनाए हंव। एमन ल तुंहर वोट के ताकत बड़े बनइस। फेर ये वोट, तोरे हिम्मत ले खरीदे – बेंचाथे। ये सोला आना सच आए, मोरे ताकत अउ हिम्मत ले, येमन वोट ल खरीदथें, खुरसी पाथें, अपन सुवारथ पूरा करथें, फेर यहू गोठ ओतके सच आए, के ये बूता ल, ये मनखे मन अपन संग मोला गिरा के करथें, जे खुद नि गिर सकंय, मोला गिरा नि सकय अऊ मोला, गिरत नि देख सकय, वो मनखे वोट नि खरीद पाएं।
एक आखिरी गोठ ये, में जेकर संग रेंगथंव या चलथंव, तेकर उद्धार कर देथंव, फेर ये मन, जेकर संग रेंगथे या चलथे, तेकरे गोड़ ल टोर के खोरवा लंगड़ा बना देथे। में जेकर पीछू रहिथंव या परथंव, तेला मंडल धनवान बना देथंव, अउ एमन जेकर पीछू परथें तेकर दुरदसा निच्चित हे, वोला सरग तक अमरा के दम लेथें। अब तूहीं मन बतावव, अइसन संग मोला संघेरथव, ये हा नियाव आए ?
रूपिया बड़ गोठिया पारिस। दूसर दिन समाचार म छपगे। नेता मन भड़क गे। बइठका सकलागे। निंदा परस्ताव पास होगे। रूपिया के बहिस्कार कर दिन। थोरकुन दिन पाछू, ये रूपिया नंदागे, अउ चलन ले बाहिर होगे, एकर जगा करिया रूपिया आगे ।
–हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन
बहुत बढ़िया लागिस भैया हरिशंकर जी आपके बियंग बान ह |
जय जोहार