ब्रत उपास : कमरछठ अउ सगरी पूजा

नारी मन अपन परिवार के सुखशांति अउ खुसहाली बर अबड़ेच उपास धास करथँय। कभू अपन बर गोसइँया पायबर, पाछू अपन सोहाग ला अमर राखे बर। कतको घाँव तिहार बार मा, देंवता धामी मन के मान गउन करेबर अउ पीतर मन के असीस पायबर घलाव उपास करथँय।अइसने एक उपास महतारी मन अपन लइकामन बर राखथँय।एला कमरछठ , खमरछठ, अउ हलछस्ठी उपास कहिथँय। ये उपास ला बिहाता नारी अउ लोग लइका होय महतारी मन रहिथँय।
कमरछठ मा सगरी पूजा के महत्तम हे।ये दिन महतारी मन बिहनिया ले मंजन ब्रस नइ करके महुवा नइते खम्हार के दतौन करथे।सेम्पू के जगा मुड़मिंजनी माटी मा मुड़ी मिंजथे। नाउ घर ले पतरी दोना लानथे।केवट घर ले परसाद के जिनिस लाई,चना,मन ला लानथे।मंझनिया बेरा ले गाँव , सहर के मंदिर नइते चउँक, मइदान मा सगरी खने जाथय।सगरी के चारो मुड़ा ला बोइर, काँसी, फूल अइसने छै किसम के पेड़ पऊधा संग सजाय जाथय।
सगरी ला जिनगी के अधार माने जाथय। सगरी खनाय अउ सजाय के पाछू सब उपसहीन मन सकलाथँय अउ इही सगरी के चारो मुड़ा बइठ जाथँय। पंडित महराज हा आथे तहान बिधि बिधान के संग पूजा होथय।
कमरछठ उपास के पूजा दूसर उपास के पूजा ले अलग होथय। कमरछठ मा छै के जादा महत्तम माने गय हे। ये भादो महिना के छेटवाँ दिन मनाय जाथय।छै जात के फूल पूजा मा चघाय जाथय। छै ठन कथा सुनाय जाथे।सगरी अउ सिव पारबती के पूजा मा छै किसम के खेलउना बना के चघाय जाथय।छै किसम के सिंगार जिनिस सगरी मा डारे जाथय।गाय के दूध,दही , घी के जगा मा भैंसी के दूध, दही , घी से पूजा करे जाथय । परसाद छै किसम के जिनिस लाई, चना, महुवा फूल, मसूर , बटरा ले बनाय जाथय।उपसहीन मन के खाय बर पसहर चाउँर के भैंसी दूध डार के खीर नइते भात बनाय जाथय।छै जात के भाजी जेमा सेमी, मखना, बरबट्टी, मुनगा, चेंच, अमारी ला संघेर के राँधे जाथय। खाय के पहिली छै जीव गाय, कुकुर, बिलई, मुसवा , चाँटी अउ चिरई के खाय बर भोग निकाले जाथय।
कमरछठ मा सगरी पूजा के कथा आथे।कथा सुनाय पाछू सगरी भरे जाथय।उहाँ जतका उपसहीन रहिथे सबजन एक एक गघरा पानी लान के सगरी मा डारथँय। महतारी मन इही सगरी के पानी मा अपन लुगरा अछरा ला फिलो लेथँय अउ अपन लइका के कनिहा मा छै घाँव छुवाथे।ऐला पोतका मारना घलाव कहे जाथय। कतको महतारी मन नान्हे नान्हे लइका ला सगरी मा बुड़ो घलाव देथँय। सगरी पूजा के आखिर मा भगवान शिव के आरती होथय। सब महतारी मन परसाद बाँटत अपन अपन घर जाथँय । घर मा जाके बड़े मन के पाँव पलगी करके असीस पाथँय । सात जात के भाजी अउ पसहर चाऊँर के भात ला भैंसी दही संग मिला के भोग लगा के खाथँय पीथँय अउ उपास छोंड़थँय।
अइसे किसम के कमरछठ के सगरी पूजा अउ लइका के जुग जुग जीये बर रखे जाथय। फेर आज के पढ़े लिखे अउ नउकरी वाली महतारी मन अब ये उपास के परंपरा ला छोड़त जात हे।जौन हमर संस्कृति बर अच्छा नो हय।

हीरालाल गुरुजी”समय”
छुरा,जिला गरियाबंद



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