रोजा रखना फाका रखना नो हे, बल्कि येमा अल्लाह के अराधना, लोगन ले सद् बेवहार करना अउ गुनाह ले बचे के भाव हे। येमा अहसास हे कि गरीब मनखे मन कोन तरह ले भूख-पियास म सही के जिनगी बिताथे। ये भाव हर मनखे ल मनखे बने रहे के संदेश देथे। रोजा हर समे मन म शुभ-विचार देथे। सब के भीतर मानवता के भाव जगाथे अउ जीवन के उध्दार करथे। रोजा कोनो प्रक्रिया नो हे बल्कि ये हर सनमार्ग म जाय के बिधि आय।
सबो धरम के परब अउ तिहार मन के उद्देश्य समाज म प्रेम, भाईचारा अउ शांति के संदेश देना होथे। ओकर सिध्दांत होथे कि समाज म सुख, शांति अउ समरसता के भाव होय। मनखे हर सनमार्ग म रेंगे। ओकर आत्मा के उन्नति होय। परब संस्कृति के एक पक्ष होथे अउ परब के संबंध धरम, पंथ अउ लोक ले होथे। धरम हर सामाजिक चेतना अउ अध्यात्म भाव के पूरक आय। धरम म सही ढंग ले परिभाषित करे जाए त ये हर सद् विचार अउ सदाचार के भाव आय, जेमा पर उपकार अउ दीन-दुखिया के सेवा भाव समाय रहिथे। अइसे तो ज्ञानी जन धरम के अड़बड़ गूढ़ परिभाषा करथें। फेर मोला तो सामाजिक-शिक्षा के सबले बड़ आधार दिखथे। गीता, कुरान, बाईबिल सबो ग्रंथ हर सामाजिक शिक्षा के राह देखाथे। धरम के गूढ़ रहस्य हर ज्ञानी, तपस्वी अध्यात्मिक मनखे के जाने के बात हो सकत हे फेर जनसाधारन बर तो ये हर लोक-हित के माध्यम आय। जेला अलग-अलग कथा प्रसंग के माध्यम ले कहे गे हे। कठिन ले कठिन दृष्टांत ल इसारा-इसारा म कथा-कहानी के माध्यम म कही दे गे हे। जेला आम मनखे अपन जिनगी म उतार के ये संसार म सुग्घर जीवन जी सकथे।
ईद-उल-फितर हर मुस्लिम समाज बर बड़का तिहार आय। ‘रमजान’ इस्लामी कैलेण्डर के नौवा पवित्र महीना होथे। अइसे माने जाथे कि ये पवित्र महीना म कुरान लिखे गे हे। इही महीना म ‘मेराा’ के ओ रात हे जउन रात पैगम्बर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद हर ‘अल्लाह त आला’ के सपना म दर्शन पाईस। इही पाये के ‘रमजान’ के ये महीना ल खुसी अउ सुकून के महीना माने जाथे। मुस्लिम भाई मन ये महीना म मस्जिद म बिसेस नमाज अदा करथें। दिन भर राोा राखथें अउ ‘अल्लाह त आला’ के सुमरन करथें।
रोजा रखना फाका रखना नो हे बल्कि येमा अल्लाह के अराधना, लोगन ले सद् बेवहार करना अउ गुनाह ले बचे के भाव हे। येमा अहसास हे कि गरीब मनखे मन कोन तरह ले भूख-पियास म सही के जिनगी बिताथे। ये भाव हर मनखे ल मनखे बने रहे के संदेश देथे। रोजा हर समे मन म शुभ-विचार देथे। सब के भीतर मानवता के भाव जगाथे अउ जीवन के उध्दार करथे। रोजा कोनो प्रक्रिया नो हे बल्कि ये हर सनमार्ग म जाय के बिधि आय। ये पाय के ये तिहार के मुस्लिम, समाज म अड़बड़ महत्व हे।
‘फितरा’ अपन कमाई के एक हिस्सा जउन अपन परिवार के मनखे मन के आधार म निश्चित धनराशि होथे। जेला गरीब अउ जरूरतमंद मनखे मन ल दे जाथे, तेखर ले वहू हर ईद के ये तिहार ल खुसी-खुसी मना सके। ये भाव हर सबो धरम के मनखे मन ल सोचे-विचार बर बात हे। ये हर कतिक सुग्घर पर उपकार के बात हे। जब मनखे हर अपन सुवारथ म दूसर के गला काटे बर तियार हे तब ये संदेश हर मन के भीतर म गजब के भाव देवत दिखथे। सही माने म कहे जाए त सबो तिहार के अंतरभाव होथे। येला समझे के बात होथे, जउन हर मनखे के जिनगी ल सद् विचार देथे।
‘ईद’ के शाब्दिक अर्थ खुसी होथे। अइसे खुसी जउन हर जिनगी ल उल्लास अउ संतोष के भाव देथे। महीना भर के रोजा के बाद दूज के चंदा ल देख के बिसेस नमाज अदा करे जाथे। एक दूसर ले गला मिल के ईद के मुबारकबाद दे जाथे। ये समे म कोनो छोटे अउ बड़े नइ होवय, सब के सब खुदा के बंदे होथे। सब के मन म एक समानता के भाव होथे। इही समानता के भाव मनखे ल मनखे होय के संदेश अउ संसार के सबो मनखे बर आदर अउ सनमान दे के भाव देथे। ईद-उल-फितर के जम्मो भाव ल सकेल के देखे जाए तब ये हर खुसी, दोस्ती, भाईचारा, शांति अउ पर उपकार के भाव के संग मनाय जाय के परब आय।
इही भाव ल धियान म रख के कोनो शायर हर कहे हे-
‘गफलत म मत रह, ऐ मुस्लिम नादान।
आया है मुबारंक महीना रमजान।’
बलदाऊ राम साहू