कलेचुप बइगा हा जब अंधियारी घपटाथे,
भुलवारे बर तब अंजोर के गजब गीत गाथे।
बडे गौटिया कहिथंन जेला पांव परइया मन,
उही गुनी मनखे के दिखथे बइहा कस लच्छन
मनखे मनखे ले जादा वोला बिखहर हा भाथे।
भुइयां, भाखा, दाई के जस गाथे नवां नवां,
भीतर-भीतर गजब खोड़ पिरीत उपर छांवा।
बड़ा गियानी हे मुस्किल म अच्छर उमचाथे।
पनही चमकाके ररुहा, बड़का मालिक बनगे,
परछी के परदेशी भईया के बिल्डिंग तनगे
जुग के जमुना म बइठे हे कोन किसन नाथे।
लिख लिख मरिन सियान हमर तेमन ला बिजराथे,
जकला भकला अपनेच संगी मन ला संहराथे
सबो मंच म उसर पुसर के उही उही गाथे।
डॉ. परदेशीराम वर्मा
एल.आई.जी. 18, आमदीनगर, भिलाई