परसा पाना के दोना बना के वोमा माई कोठी के धान ल ठाकुर देव म चढ़ाय जाथे। संग म मऊहा ल घला समर्पित करथें। धान छितथे अउ दू झन मनखे ल बइला बना के नागर बख्खर चलाय जाथे। नवा करसा कलौरी ले तरिया के पानी लान के देवता म चढ़ाथें।
छत्तीसगढ़ तिहार के गढ़ आय। इहां अब्बड अकन परब तिहार अउ संस्कार म मनखे मन अइसे सना जथे जइसे भगवान के भक्ति म भगत रमे रथे। गुरतुर बोली अंतस ले निकलथे तब तन मन जम्मो खिलखिला जथे। हमर राज के नांव छत्तीसगढ़ हे त उत्सव तको छत्तीस ठन हाबे। फेर किसान भाई मन के उत्साह तो जम्मो वातावरण ल सुवासित कर देथे। धरती दाई के सेवा बजइया धनी बेटा किसान के खुशी ह सहिच म कोन्हों तिहार के रूप म आगु आथे। जेकर नांव हे अक्ती। हिन्दी म ऐला अक्षय तृतीया घला कथे। जइसन नांव हे वइसने काम तको हाबे। अक्ती मने नवा दिन आगे। किसान मन येला नवा दिन के नाव ले जानथे। इही दिन ले खेती खार के बुता चालू हो जथे। फेर अक्षय तृतीया के मतलब कही सकथन कि ये दिन बरम्हा, विष्णु अउ महेश तीनों देव के सऊहत आशीस रथे। एक डाहन गांव बनाये के प्रक्रिया चलथे। ये दिन बड़े-फसल ले गांव के पुजेरी बइगा ह गांव के देव-धामी के पूजा पाठ करथे। सबले पहिली गांव के गद्दी शीतला दाई ताहन हरदेलाल, कचना, ध्रुवा, बइगा बावा के सुमरण करथे। ठाकुर देवता के देरौठी म तो धान बोय के पूरा प्रक्रिया चलथे ये दिन परसा पाना के महत्व बाढ़ जथे परसा पाना के दोना बना के वोमा माई कोठी के धान ल ठाकुर देव म चढ़ाय जाथे। संग म मऊहा ल घला समर्पित करथे। धान छितथे अउ दू झन मनखे ल बइला बना के नागर बख्खर चलाय जाथे। नवा करसा कलौरी ले तरिया के पानी लान के देवता म चढ़ाथे। लोक मान्यता हे कि बच्छर भर म कोन्हों मरे मनखे के जीव इही दिन पानी पाथे। इकरे सेती कथे अक्ती पानी देना अनिवार्य हे। पानी के बरसा करे ले किसान के चेहरा मगन हो जथे। काबर कि वोहा मान के चलथे कि वरूण देवता ह अब खेती करे बर फूल पानी दिही। मगन किसान खुशी-खुशी पूजा पाठ के बाद फेर परसा के दोना म धान ल धर के घर ले आथे अउ हूम धूम, कुदाली, रापा धर के सोज्झे खेत चल देथे। ये दिन ल घातेच शुभ माने गे हे। धान ल बो देथे। धान बोय के शुरू करई ल छत्तीसगढ़ी म मूठ मारना कहे जाथे। वही दूसर डाहन नान्हे-नान्हे लइका मन पुतरी-पुतरा के बिहाव के पूरा खेल खेलथे। ये दिन मांगलिक कार्य विशेष रूप से होथे। एके दिन बिहाव के जम्मो प्रक्रिया निपटथे। मंगनी-बरनी, फलदान, चुलमाटी, तेलचघनी, मंगरोहन, दौतेला, माय मौरी, मायन, नहडोरी, परघनी, भांवर, भड़ौनी, टिकावन संग बेटी बिदाई भी सम्पन्न होथे। नान-नान मड़वा मन ल भा जथे। येमा लइका (नोनी) पीला संग जम्मो परिवार के मन भाग लेथे। इहां तक कि गड़वा बाजा ले बरात तक निकरथे। जेकर धूम ह खुशी ले भर देथे। येला देव लगन तक मानथे, अऊ बर-बिहाव खूब होथे। इही तो हमर संस्कृति के खास पहचान आय। कोन्हों भी उत्साह-परव में न कि एक परिवार बल्कि जम्मो समुदाय भाग लेथे अउ एकता के परिचय दे डारथे। कोन्हो भी रीति-रिवाज के पाछू कुछ-न-कुछ धार्मिक पौराणिक घटना जुड़े रथे। अब देखव न विवाह संस्कार म एक नेम मंगरोहन के हाबे। ऐकर पाछू महाभारत काल के एक ठन कथा कि गांधार नरेश के बेटी गंधारी के बिहाव तय होते साठ वोकर गोसइया मर जाय। नरेश कउवागे रहाय। राज के पंडित करा जाके बिचरइस तब पता चलिस गंधारी ल डूमर के सराप लगे हे। येकर ले मुक्ति के उपाय म बतइस कि पहली गंधारी के बिहार डूमर के लकड़ी सन कर दिए जाए तब येकर भावी पति नई मरे। वइसने अउ वोकर पति धृतराष्ट्र बाच जथे। उही दिन ले चलागन चलिस कि डूमर के लकड़ी ल मंगरोहन के रूप म मडवा मेर गड़ा के अपशकुन ल दूर करे के रिवाज हे। इही दिन ले दूरी मन पुतरी-पुतरा के बिहाव खेले बर चालू कर देथे। कुल मिला के मंगल संदेश लाथे अक्ती।
संतोष कुमार सोनकर ‘मंडल’
चौबेबांधा राजिम