सार गोठ (मोर अंतस के सवाल ये हरे कि करजा नई सुहावय त जनम ले दाई-ददा हमर बर जे करे रथे वो करजा मुड म लदाय रथे तेला काबर नई छुटय? अऊ सिरतोन कबे त करजा करे के कोनो ल साद नई लागय फेर अपन लइका बर, परवार बर, जिनगी के बिपत बेरा म करजा घलो करे ल परथे।)
एक झन नौकरिहा संगवारी हा, अपन दाई ल मोटर म चघइस। ओ सियानिन हा चिरहा झोला ल मोटराये रहय अऊ मोटर म चघेच के बेरा ओकर पोलखर हा झोला ले गिर गे, बिचारी लटपट पोलखर ल उचइस अऊ मोटर म बइठ गिस। मे पुछेंव कहां भेजत हस जी सियानिन ल। ओ कहिस रइपुर भेजत हंव जी। मे फेर पुछेंव ते कहां जावत हस। त कथे “जाय बर तो महू रइपुर जाहूं फेर दाई संग फटफटी में जाय बर नई सुहावय”। मे अऊ कहि पारेंव संग म नई जावस त तोर मन.! फेर ओहा चिरहा झोला ल मोटराय हे जी.! एको ठन संदूक बिसा दे रते। “आज मोर खिसा जुच्छा हे ना, जतका पइसा हे ते सब गनती के हावय अऊ मोला करजा करना, करजा राखना नई सुहावय, जतका सकथंव ततकी खरचा करथंव, करजा करके कोनो बूता नई करंव”। सुन के बड आनंद अइस। अइसने एक झन दुकान वाला हा कहात रहिस के “महू ल करजा करना नई सुहावय, मोर करा ले कोनहो करजा लेगथे तेला सहि जथों फेर मेहा काकरो करा करजा नई करंव”। ओकरो बात बने लागिस।
सिरतोन कहिबे त अब मनखे पढ-लिख डरे हवय त करजा म लदाय ले का होथे तेला जान डरे हे। अऊ अब जम्मों झन करा अपन बुता हल करे बर अब्बड अकन रद्दा घलो बन गे हवय। सरकारी नौकरी नई मिलही तभो ले मिहनत करईया मनखे बर अब बुता-काम के कमी नई हे।
फेर मोर भेजा म सवाल रिहिस कि ये नौकरी कइसे पइस होही ? त मेहा पूछेंव कइसे भाई आज तेहा जे सरकारी नौकरी करत हस तेहा तो लटपट म मिलथे। तेहा कहाँ पढे लिखे कतका मिहनत करे त ये नौकरी ल पाये हस? त ओहा कथे “हव तेहा सिरतोन कहात हस मेहा दिनरात एक करके पढे हंव। पंदरा-सतरा घंटा पढई करे हंव जी..! तब ये नौकरी ल पाये हंव”। मेहा फेर पुछेंव “बने स्कूल म पढे होबे? अऊ सहर म टियुसन कथे तइसन घलो करे होबे? अऊ कापी किताब के खरचा घलो बिक्कट लागिस होही”? वो अपन सांस ल जोर के झिकिस अऊ कथे “झन पुछ रे भाई फारम भरेच म हजारो रुपिया सिरा गिस होही। रहना-खाना, अवइ-जवइ, के खरचा तो उपराहा खरचा हरे। पढई-लिखइ अऊ कापी-किताब मन घलो बड मंहगी मिलथे”। मे कहेंव “फेर सरकार घलो तो बने पढईया ल पढई के खरचा देथे का जी अऊ सुने हंव रेहे, खाय के बेवस्था(हास्टल) घलो करथे”? “ओहा अब्बड नंबर आये रथे ते मन ल मिलथे जी। मेहा तो अपने खरचा म किराय के कुरिया ले के राहत रेहेंव अऊ बासा ले डब्बा में भात मंगवा के खावत रेहेंव उहीच म कतको पइसा सिरागे”। मे कहेंव अच्छा..! त तेहा हुसियार नई रेहे का जी..! ओहा चिढ गे अऊ लडबडा के कथे रेहेंव..जी! फेर मोरो ले अऊ हुसियार रिहिस ते मन ल मिलिस। मोर अंतस के सवाल के जवाब अभी नई मिले रिहिस। मेहा केहेंव तुमन बड पइसा वाला होहू जी..! अतका खरचा करके पढ लिख डरे..! घर म सोन-चांदी के भंडार होही..! तोर ददा मालगुजार होही..! ओ कथे “नई भाई हमर तो चार एकड खेत के छोड अऊ कहिच नई रहिस, अऊ दाई करा घलो कभू गहना-गुट्ठा नई देखे हंव, दाई-ददा खेत कमाय बर जाय, बहिनी हा भात रांधे अऊ मेहा पढई करंव। मोर ले नई रेहे गिस त मेर फेर केहेंव त खरचा बर अतका अकन पइसा कहाँ ले अइस जी। ओकर थोथना ओरम गे अऊ धिरलगहा किहिस ददा कोनहो डाहर ले भिडाय रिहिस हे।
में अऊ कुछु नई केहेंव, फेर मोर अंतस के सबो बात सफ्फा होगे। ओहा अपन ददा के काम-बुता कहीं म संग नई दे रिहिस अऊ ओकर ददा-दाई हा करजा बोडी करके ओला पढाय रिहिस, गहना गुट्ठा ल घलो जमानत राख के पइसा भिडाय रिहिस। अऊ अब येहा साहब बन के टेसी मारत राहय अऊ ते अऊ ओला अपन दाई संग रेगें बर घलो नई सुहावत हे। अइसनहेच कहिनी तो ओ दुकान वाला के घलो रिहिस वहू ल ओकर ददा हा अपन जिनगी भर म दरर-दरर के बनाये खेत मे के आधा खेत ल बेच के दुकान लगा के दे रिहिस, अऊ दुकान बर बैंक ले करजा निकारे के बेरा म बाचे खेत ल जमानत धरे हावय। अब दुकान बने चलत हवय अऊ बने पइसा घलो कमावत हवय। अब तो ओ मन हा कहिबेच करही “मोला करजा नई सुहावय”। हव रे भई, तुंहरे सुग्घर जिनगी बर तुंहर दाई-ददा करजा म लदाय हवय अऊ हमर देस हा घलो बिदेसी करजा म लदाय हवय। अब तुही मन ल करजा नई सुहावय अऊ तुमन सोचत होहू कि तुंहर दाई-ददा अऊ देस ल तो साद लागे हवय..? फेर मोर अंतस के सवाल ये हरे कि करजा नई सुहावय त जनम ले दाई-ददा हमर बर जे करे रथे वो करजा मुड म लदाय रथे तेला काबर नई छुटय? अऊ सिरतोन कबे त करजा करे के कोनो ल साद नई लागय फेर अपन लइका बर, परवार बर, जिनगी के बिपत बेरा म करजा घलो करे ल परथे।
करजा घलो कई किसम के होथे। चीज-बस जमीन-जइदाद के करजा ल मनखे हा भारी करजा समझथे, अपन ल बडे बताय बर अपने आप ल धोखा म राखथे। फेर सिरतोन म देखबे त दाई-ददा, परवार, समाज, देस के करजा ल लादे बइठे रथे। जे दाई-ददा अऊ समाज हा अपन खून-पछीना बोहा के ओला आघू बढाय रथे, आघू बढे के बाद उही मनखे अपन दाई-ददा, समाज अऊ देस ल निच्चट समझथे अऊ आज कली तो बिरोध म गोठियात घलो दिखथे। पहिली लोगन हा बने पढई-लिखई ये पाय के करवाय कि ओहा पढ लिख के अपन दाई-ददा के बने सेवा-जतन कर सकही अऊ पइसा कमा के समाज अऊ देस ल आघू बढाय के उदीम कर सकही। फेर आज पढई अऊ पइसा ल मनखे अपन टेसी जताय के साधन बना ले हवय। अऊ अब तो उही मन जइसे कहि तइसे माने बर परही काबर कि अब पढे लिखे अऊ पइसा वाला मनखे के बिचार ल अडहा अऊ गरीब मनखे कइसे काट सकबे।
ललित साहू “जख्मी”
छुरा, जिला – गरियाबंद (छ.ग.)
मो.नं.- 9993841525