माटी के मितान ! जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान
ए कविता ले मिलते जुलत एक कविता सीजी स्वर म प्रकाशित हे फेर ये कविता ह ओ कविता ले अलग हे ते खातिर से ये कविता ल कवि के गिलौली के संग छापे जात हे – संपादक
माटी के मितान !
जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान
छत्तीसगढ़ महतारी के दुलरवा
खेत – खलिहान के मितान
जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान
नागर बैला हे तोर संग संगवारी
हाँथ म तुतारी
मुड़ म पागा
खान्द म नागर
फभे हे तोला
सुग्घर हावे तोर बानी
बैला – भैंसा समझथे तोर मीठा जुबानी
छत्तीसगढ़ महतारी के दुलरवा
माटी के मितान !
जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान
घाम पियास ,भूख दुःख ल सह के
झक्कर- झांझ म नागर चलाके
तोर जांगर म मितान
परिया भूईंया म फसल लहलहाथे
तोर बखान मै का करहु
तोर बहा म उपजत हे भूईंया म सोना
धन हे हमर भाग
छत्तीसगढ़ महतारी के दुलरवा
माटी के मितान !
जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान
धरती के तेहि ह भगवान्
अन्नदाता तोर कतका करों बखान
खेतिहर माटी के मितान
छत्तीसगढ़ महतारी के दुलरवा
खेत – खलिहान के मितान
जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान
नागर बैला हे तोर संग संगवारी
जय हो तोर छत्तीसगढ़ीया किसान
माटी के मितान !
–लक्ष्मी नारायण लहरे ‘साहिल’
युवा साहित्यकार पत्रकार
कोसीर सारंगढ़ जिला रायगढ़
मो० ९७५२३१९३९
बहुत बढ़िया रचना बधाई हो