लोककथा
सतवंतिन ह, अउ मुड़ म बोहे लकड़ी के बोझा ल धिरलगहा अंगना म मढ़ाइस। एती लकड़ी ह माढ़िस अउ चार ठन बड़े-बड़े गंऊहा डोमी सांप ह मुड़ी उठा के खड़े होगे। डोकरी ह देखके डर्रागे अउ सांप-सांप कहिके गोहार पारिस। सांप के नाव ल सुनके वोकर चारों झन बेटा मन लउठी धर के आइन अउ सांप ल मारे बर दौड़िन। अतका म सतवंतिन कथे- एला झन मारो हो, इहि मन मोर लकड़ी ल बांध के लानिस हे। त डोरी धर के नि जाय रते वो वोकर ससुर किहिस। अतका म सतवंतिन ह सुसक-सुसक के बताथे।
तइहा-तइहा के बात ए, एक गरिबहा डोकरी-डोकरा रहय, उंकर चार झन बेटा रिहिस, चारों झन के बर-बिहाव हो गेय रिहिस अउ बहू घला आ गेय रिहिस। तीन झन जेठानी के सबले छोटे देरानी रिहिस सतवंतिन ह। जइसे वोकर नाव, तइसने बात बेवहार आदत सुझाव। सांझे बिहाने अपन गोसंइया अउ सास-ससुर जेठ-जेठानी सबो बड़हिल के पयलगी करे। नहा-खोर के निसदिन तुलसी चौरा म पानी रितोय अउ रोज संझा दिया बारे। वोइसने काम-बुता बर घला फुरफुंदी कस, सुत उठ के बिहनिया ले घर दुवार ल लीप बहार डरे, अउ पानी-कांजी, गोबर-कचरा जम्मो ल एक्के झन कमा डरे, फेर कभू हिजगा नई करे अपन जेठानी मन के।
सतवंतिन के आदत सुझाव ल देख के वोकर सास ससुर, पति अऊ तीनों झन कुरा ससुर मन बड़ मया करे। सबले छोटे रिहिस ते पाय के सब झन बर बड़ दुलौरिन कस रिहिस वोहा। फेर वोकर जेठानी मन ल ये सब ह कांटा बरोबर लागे। एक दिन तीनों जेठानी गोठियाथे जबले ये आय हे, तब ले हमन अनपुच्छा होगे हन। अब तो एकर बर काहिं उदिम करेच ल लागही। अइसे कहिके तीनों जेठानी मन सुन्ता बांधिन अउ घर के मन सब अपन-अपन काम बुता म चल दिन तब तीनाें जेठानी सतवंतिन ल कथे- घर म आज एको दाना चाउर नइए, तोर आंखी नई दिखत होही, काला रांधबे-गढ़बे। तब सतवंतिन कथे- चलो न दीदी हो, सबो झन जुर-मिल के कुट लेबो धान ल। हमन काबर कुटबो, जा तेहा कूट एके झन। अइसे कहिके तीनाें जेठानी मन दस काठा धान ल मढ़ा दिस अउ कथे जा एला बिन ढेंकी के कूट के लान। बात ल सुनके सतवंतिन कथे- बिन ढेंकी बाहना के कइसे कूटे सकहूं दीदी हो, तुहि मन बतावव। तैं तो बड़ सतवाली अस न, कइसे नि सकबे कूटे बर, जा लान कूट के। अइसे कहिके वोकर जेठानी मन टुकना के धान ल बाहिर म निकाल दिस अउ सतवंतिन ल हेचकारत कथे एला लेग जा अउ कांहचो ले हो कूट के लान। सतवंतिन ह टुकना के धान ल मुड़ म बोहिस अऊ निकलगे भर्री कोती। संसों म बुडे सतवंतिन ह गुनत-गुनत रोवत बइठे हे भर्री म। जेला देख परिस अब्बड अकन बइठे भरही चिरई मन। सतवंतिन ल पूछथे- काबर रोवत ह दीदी सुसक-सुसक के। तब सतवंतिन कथे- काला बतांव चिरई हो, मेहा बिपत म परे हंव। चिरई मन कथे- काय बिपत ए, बताबे ते हमू मन सुन लेबो। सतवंतिन कथे, हमर जेठानी मन मोर परीछा लेय बर बिन ढेंकी बाहना के धान कूट के लान कथे, अब तुहिमन बतावव भला बिन ढेंकी-बाहना के कइसे कूटौं धान ल, अउ कइसे निकालंव चाउर ल। चिरई मन कथे- हत्तो बही, एकरे बर तेहां संसो करत हस अउ रोवत हस। ले जा तेहा कलेचुप बइठ के देखत रह। अइसे कहिके भरही चिरई मन सकलागे दौंरी के दौंरी, अउ छिन भर म जम्मो धान ल फोल-फोल के भुंसा अलग अऊ चाउर अलग कर दिन। सतवंतिन देखिस अउ कथे- मेहा तुंहर गुन जस ल कभू नई भुलाववं चिरई हो, तुमन मोर बहुत बड़े बिपत म काम आय हो। अइसे कहिके टुकना म चाउर ल धरिस अउ घर आइस सतवंतिन ह। वोकर जेठानी मन सोंचे रिहिन बिन ढेंकी-बाहना के तो धान ल कभू कूटे नई सके, आज येला गारी खवाबो कहिके। फेर चाउर ल देखिन ते अचंभा म परगें। सतवंतिन ह रांधिस गढ़िस अउ सबो झन ल खाय-पिए बर दिस। फेर ये बात ल कोनो ल नि बताइस। बिहान दिन तीनों जेठानी फेर सुन्ता बांधिन अउ घर के मन सबो अपन-अपन काम-बुता म बगरिन तंहा ले तीनाें जेठानी एक ठन गगरी ल टोेंड़का-टोंड़का करके सतवंतिन ल कथे- घर म एको बूंद पानी नइए देखत नई अस। जा ये गगरी ल धर अउ नंदिया ले पानी लान। सतवंतिन ह गगरी ल धरिस अउ पानी लाने बर गिस। पानी ल गगरी म भरिस ते तरतर-तरतर निथरगे। गगरी ह तो जगा-जगा टोंड़का रीहिस, कहां ले थिराय पानी ह। सतवंतिन ह गगरी ल मढ़ा के रोवत- गुनत बइठगे। येला नंदिया म बइठे मेंचका मन देखिस त सतवंतिन ल पूछथे- तंय काबर रोवत हस बहिनी मुड़ ल धर के। सतवंतिन कथे- काला बताववं मेंचका हो, मोर जेठानी मन पानी लाने बर एदे टोंड़कहा गगरी ल देय हे, अब तुंहि मन बतावव एमा कइसे पानी लेगंव मेहा। मेंचका मन कथे तेंहा संसो झन कर बहिनी हम तोला उपाय बतावत हन। गगरी ह जउन-जउन मेर टोंड़का हे, वोमा हमन चटक के बइठ जथन, तहं ले पानी नइ निकले। अइसे कहिके मेचका मन टोंड़का-टोंड़का म बइठगे। अब सतवंतिन ह गगरी म पानी भरिस अउ घर म लान के दूसर गगरी म ढार दिस, मेंचका मन चुप्पे निकल के भगा गे। एती वोकर जेठानी मन देखिस ते फेर अचरज म परगे। कथे- अरे ए तो टोंड़कहा गगरी म पानी घला लान डरिस। जइसने कबे तइसने कर डारथे कलजगरी दुखाहाही ह। तीनों जेठानी फेर सुन्ता होइन अउ मंझन बेरा फेर सतवंतिन ल बलाइस अउ कथे- रांधे-गढ़े बर लकड़ी नइए तेला नइ जानत हस। तब सतवंतिन धीरेकुन कथे- त चलो न दीदी हो चाराें झन जा के थोर-थोर ले आनथन लकड़ी ल। अतका म तीनों जेठानी गुरेरत कथे- जाना तेंहा एके झन जंगल। अब सतवंतिन ह डोरी ल धरिस अउ निकलत रहय घर ले। अतका म तीनों जेठानी मन वोकर हाथ के डोरी ल नंगा लिस अउ कथे- छोंड ये डोरी ल ते तो बड़ सतवाली अस न, जा बिन डोरी के लानबे लकड़ी ल। बिचारी सतवंतिन ह रोवत-रोवत चल दिस एके झन जंगल कोती। ऐती चाराें भाई मन आज बिहनिया ले कुसियार बेचे बर गेय रिहिस। कुसियार ह तुरतेताही बेंचागे, ते पाय के संझकेरहा घर आगे। डोकरी-डोकरा मन घला आज अपन काम बुता करके जल्दी आगे, सबो झन तो घर म हें, फेर सतवंतिन के आरो नइ मिलिस, तब डोकरा ह अपन तीनों बहू मन ले पूछथे- कस वो, सतवंतिन कहां गे हे नइ दिखे। तीनाें बहू मन एक दूसर ल अंखियावत कथे- हमन का जानबो कहां गे हे तेला, बतातिस तेला जानतेन। वो तो सब के दुलौरिन ए, ते पाय के मुड़ म चढ़त हे। किंजरत हे अपन मन ले।
वोतके बेर आगे सतवंतिन ह, अउ मुड़ म बोहे लकड़ी के बोझा ल धिरलगहा अंगना म मढ़ाइस। एती लकड़ी ह माढ़िस अउ चार ठन बड़े-बड़े गंऊहा डोमी सांप ह मुड़ी उठा के खड़े होगे। डोकरी ह देखके डर्रागे अउ सांप-सांप कहिके गोहार पारिस। सांप के नाव ल सुनके वोकर चारों झन बेटा मन लउठी धर के आइन अउ सांप ल मारे बर दौड़िन। अतका म सतवंतिन कथे- एला झन मारो हो, इहि मन मोर लकड़ी ल बांध के लानिस हे। त डोरी धर के नि जाय रते वो वोकर ससुर किहिस। अतका म सतवंतिन ह सुसक-सुसक के सबो बात ल बतावत कथे- बिन ढेंकी के धान कूट, टोंड़कहा गगरी म पानी लान, अउ बिन डोरी के लकड़ी लान ए सब करनी आय हमर जेठानी मन के, मेहा अपन सत-इमान के रद्दा म रेहेंव, ते पाय के उप्पर वाला ह मोर बर छाहित रिहिस अउ बिन ढेंकी के भरही चिरईमन धान ल चाउर बना दिस, टोंड़कहा गगरी म बिचारा मेंचका मन बइठ के पानी लाने म मदद करिन अउ बिन डोरी के लकड़ी लाने बर ये नांग देवता मन सहायता करिन। अतका सुनके तीनाें झन भाई के एडी क़े रिस तरूवा म चढ़गे, अउ अपन-अपन गोसइन के डेना ल धरके हेचकारत कथे- जाव निकल जाव, अब ये घर म तुंहर बर थोरको ठउर नइए। गउ बरोबर बिचारी बहू ल बाराहाल करत हो, अइसने भला तुमन ल करे तब कइसे लागहि। अतका म तीनों जेठानी मन अपन-अपन गोंसइया ल माफी मांगत कथे- एक बखत हमला छिमा दे दव, अब अइसन गलती कभू नइ करन। छोटकी वोकर बर हमन ल जलन होय, तेकरे सेती अइसन अनित कर पारेन।
अतका म उंकर ससुर डोकरा कथे- जेकर जइसे सुभाव रथे वोला वोइसने माया परेम मिलथे नोनी हो, तहुं मन अपन अंतस ल सतवंतिन बनाव, वोइसने तहूं मन ल मया परेम मिलही। मुड ल गड़िया के तीनों जेठानी मन सतवंतिन ल कथे- हमन अनित कर डरेन छोटकी, रिस झन करबे बहिनी। अब सबो माई-पिला जुरमिल के रबो। सतवंतिन कथे- मोर मन म बैर भाव नइए दीदी हो। सब दिन मेहा तुमन ल अपन बड़े बहिनी मानेंव, अउ अभो घला मानहूं। तुमन अपन अंतस के मइल ल धो डरव इहि सबले बड़े छिमा आय। अइसने ढंग के सतवंतिन के सत-इमान अउ धरम-करम ले सबो परिवार एक होगे, अउ बने सुग्घर खाइन कमाइन राज करिन। दार भात चुरगे मोर कहिनि पुरगे।
पुनुराम साहू ‘राज’
निवास. पो. मगरलोड
जिला धमतरी