एजोला: पशुओं के लिए एक पौष्टिक आहार

एजोला: पशुओं के लिए एक पौष्टिक आहार

लेखक: डॉ. नमिता शुक्ला, डॉ. ए. के. त्रिपाठी, डॉ. क्रांति शर्मा, डॉ. युगल किशोर नायक, दुग्ध विज्ञान एवं खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, रायपुर

23 सितम्बर 2024, भोपाल: एजोला: पशुओं के लिए एक पौष्टिक आहार – हमारे देश में पशुपालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है हमारे देश में विशाल पशुधन संसाधन है और यह पशुधन भारत के लगभग 9 प्रतिशत आबादी को रोजगार और 2 तिहाई ग्रामीण समुदायों को आजीविका प्रदान करता है। एजोला जिसे भारत में ‘पशुओं का सुपर चाराÓ के रूप में जाना जाता है। यह चारा पशुओं के लिए प्रोटीन, विटामिन और मिनरल्स का एक उत्कृष्ट स्रोत होता है। एजोला एक जल सतह पर स्वतंत्र रूप से तैरने वाला फर्न है जो पानी की सतह पर और नालों, नहरों, तालाबों नदी और दलदली भूमि में स्थिर पानी में प्राकृतिक रूप से तेजी से बढ़ता है। मोस्किटो, फर्न, फेयरी मॉस, डकवीड फर्न, वाटर फर्न के नामों से भी जाना जाता है। यह पशुओं के लिए एक उत्कृष्ट वैकल्पिक चारा है। इसमें 27 प्रतिशत क्रूड प्रोटीन होता है लेकिन कर्बोहाइड्रेट और वसा की मात्रा बहुत कम होती है। अजोला को पचाना आसान होता है क्योकि इसमें रेसा तथा लिग्रिन की मात्रा कम होती है। अजोला में ज्यादातर सभी आवश्यक एमीनो अम्ल, मेंगनी प्रोवोमोरिस्क बायो पालिमर्सतथा बीटा कैरोटीन पाए जाते हैं। अजोला की पूरक आहार के रूप में भी प्रयोग करने पर 15-20 प्रतिशत कुल दुग्ध उत्पादन बढ़ जाता है। देश के विभिन्न प्रदेशों एवं क्षेत्रों में चारे एवं पोषक तत्वों की कमी को पूर्ण करने के लिए अजोला उत्पादन को वृहद स्तर पर प्रोत्साहित किया जा रहा है।

एजोला उत्पादन की विधि

एजोला उत्पादन के लिए 15-20 से. मी. गहरे पानी युक्त गड्ढे की आवश्यकता होती है। गड्ढे का आकार 1.5 मी. चौड़ा, 4 मी. लंबा तथा 20 से.मी. गहरा हो। इसके उपरांत गड्ढे की सतह पर प्लास्टिक बिछा देते हैं, जिससे गड्ढे में रिसाव द्वारा बाहर का पानी नहीं पहुंचता तथा गड्ढे का तापमान भी नियंत्रित रहता है। लगभग 10-15 ग्राम छानी हुई मिट्टी प्लास्टिक के ऊपर सामान रूप से डाल देते हैं। इसके उपरांत 5 किलो गोबर, 20 ग्राम एसएसपी का 10 लीटर पानी में घोल बनाते हैं और इस घोल को गड्ढे में डालते हैं, इसके बाद और अधिक पानी लगभग 8 से. मी. स्टार तक डालते हैं। इसके उपरांत 1-2 कि.ग्रा. ताजा अजोला का बीज गड्ढे में डालते हैं। 7-10 दिन उपरांत अजोला पूर्ण वृद्धि प्राप्त कर गड्ढे में भर जाता है। इससे 4 वर्ग मीटर गड्ढे से 2 कि.ग्रा. अजोला प्रतिदिन प्राप्त कर सकते हैं। प्रत्येक 7 दिनों के अंतराल पर गुबार 2 कि.ग्रा., अजोफास 25 ग्राम, 20 ग्राम अजोफर्ट को 2 लीटर पानी में घोलकर गड्ढे में डालते रहें जिससे अजोला का उत्पादन अधिक एवं टीकाऊ बना रहता है।

एजोला के फायदे

  • एजोला में मौजूद महत्वपूर्ण पोषक मूल्यों में यह पशुओं के लिए एक फीड सप्लीमेंट का काम करता है।
  • दुधारू पशुओं में अजोला खिलाने से दूध के पोषक मूल्यों में वृद्धि होती है।
  • एजोला आसानी से पशुओं में पचता है इससे 10-15 प्रतिशत तक दुग्ध उत्पादन में वृद्धि होती है।
  • एजोला कच्चा खाद निर्माण में भी केचुओं को खिलाने में भी इस्तेमाल होता है।
  • एजोला रासायनिक उर्वरक की क्षमता की भी बढ़ाता है।
  • एजोला धानत के खेतों में छोटे मोटे खरपतवार को निकलने नहीं देता है।
  • एजोला दुग्ध उत्पादक पशुओं तथा मुर्गियों के लिए प्रोटीन का एक अच्छा स्रोत है।
  • एजोला की कई प्रजाति पाई जाती हैं, परन्तु भारत में अजोला पिनाटा प्रजाति प्रमुखता से मिलाती है। अजोला नैपियर घास की तुलना में चार से पांच गुना अधिक प्रोटीन मिलता है।

राज्य में पशुधन में कुपोषण के कारण पशु उत्पादन की क्षमता गिरती जा रही है। अजोला पशु पोषण के लिए उच्च गुणवत्ता युक्त चारे की पूर्ति कर सकता है जिससे पशु उत्पादन में बढ़ती लागत को कम किया जा सकता है। अजोला उत्पादन एक बहुत ही सरल व सस्ती तथा लाभदायक तकनीक है जिससे कम लागत तथा थोड़ी मेहनत से पौष्टिक तत्वों से भरपूर हरा चारा उत्पादन किया जा सकता है। अजोला की उत्पादन लागत प्रति 1 कि.ग्रा. पर 1 रू से कम आती है इसलिए यह किसान व पशु पालकों के बीच तेजी से लोकप्रिय हो रहा है और यही कारण है कि दक्षिण से शुरू हुई अजोला की खेती का कारवां अब पूरे भारत में फैलता जा रहा है। अजोला की खेती किसान भाई अपने आस-पास के खाली जमीनों के अलावा अपने घरों की छतों पर भी इसका उत्पादन सरलता एवं सुगमता से कर सकते हैं।

www.krishakjagat.org  से साभार

 

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