1 मोर तीर मोर स्कूल के लइका मन पूछिस गुरुजी पहले के बाबा अउ अब के बाबा म काय काय अंतर हे। मय कहेव बेटा “पहिली के बाबा मन सत्याचारी होवय, निराहारी रहय ब्रह्मचारी और चमत्कारी होवय। और अब के बाबा मन मिथ्याचारी, मेवाहारी, शिष्याधारी आश्रमधारी होथे पहिली कबीरदास, रैदास तुलसीदास होवय अब रामपाल आशा राम, रामरहीम असन बलात्कारी होथे। । 2 मंत्री जी ह पेड़ लगाइस बिहनिया बोकरा वोला खा लिस मंझनिया रात म बकरा ह बन गे मंत्री जी भोजन अइसना करिस मंत्री जी ह परियावरण सरंच्छन 3…
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लघुकथा : बड़का घर
जब मंगल ह बिलासपुर टेसन म रेल ले उतरिच तव रात के साढ़े दस बज गय रहिस। ओखर गाड़ी ह अढ़ाई घंटा लेट म पहुंचिस, जेखर कारन गाँव जवैया आखिरी बस जेहा साढ़े आठ छूटथे कब के छूट गे रहिस। ट्रेन ले उतर के वो हा सोचे लगिस के अब का करंव। फेर मंगल ह अपन पाकिट ले पर्स ल निकाल के देखिस, एक ठन पँचसौहा, दु ठन सौ रुपिया अउ दु ठन बिस्सी मने कुल सात सौ चालीस रुपिया वोमा रहिस। कातिक के महिना सुरु हो गय रहिस अउ…
Read Moreजनतंत्र ह हो गय जइसे साझी के बइला
मोटा थे नेता, जनता खोइला के खोइला बिरथा लागथे एला सँवारे के जतन, जैसे अंधरा ल काजर अँजाई हे।। करलइ हे भैया करलइ हे। छोटे -छोटे बात के बड़े- बड़े झगड़ा हे अपन -अपन गीत अउ अपन -अपन दफड़ा हे मनखे-मनखे बीच खाई खना गे हे, भाई के दुश्मन अब होगे भाई हे।। करलइ हे भैया करलइ हे। अंधरा प्रसासन अउ भैरा कानून हवय गरीब के सुनवइयां इँहा भला कउन हवय सब के सब लुटे बर घात लगाय बैइठे हे बुड़ मरे घलो म नहकौनी देवइ हे।। करलइ हे भैया…
Read Moreमहेश पांडेय “मलंग” के छत्तीसगढ़ी कविता
बुद्धि ला खूंटी मा टांग के, भेड़िया असन धँसा जाथन ढोंगी साधु सन्यासी बर, फिलगा असन झपा जाथन कभू आसाराम के झाँसा म कभू निरमल बाबा के फाँसा म कभू रामपाल के चक्कर म कभू राधे माँ म मोहा जाथन बुद्धि ला खूंटी म टांग के, भेड़िया असन धँसा जाथन ढोंगी साधु सन्यासी बर, फिलगा असन झपा जाथन खुद मया मोह के चिखला में नरी उप्पर ले धँसे रहिथे परवचन कहिथे बड़े बड़े निनानब्वे के चक्कर म फँसे रहिथे इन पाखण्डी के चक्कर म, दूध दोहनी दुनो लुटा जाथन बुद्धि…
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