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कविता

आगे-आगे बसंत के महीना

आगे-आगे बसंत के महीना
झूमो नाचो रे संगी जहुंरिया।
बइसाख-जेठ म धरे झांझ-झोला
पानी बिना तरसे सबके चोला।
डाहर चलईया हा
खोजत हे छैहा।
धुर्रा के उड़े बड़ोरा। आगे…
अगहन-पूस ठिठुरन महीना
खेती किसानी म भदराये हे धनहा।
कोलिहा बपुरा हा
देवत हे पाहरा
भुर्री तापत बइठे सियनहा। आगे…।
मांग-फागुन बसंत के महीना
सरसो ह फूले अऊ फूले हे परसा।
आमा बगीचा हा
महक मारे।
कोइली मार हावे कुहकिया।
बलौराम कोसा

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