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कविता

कबिता : चना-बऊटरा-तिवरा होरा

शहरिया बाबू आइच गांव म।
खड़ा होइस बर पिपर छांव म॥

दाई ददा के पाव पलगी भुलागे।
बड़ शहरिया रंग छागे॥
ये माघ के महिना।
पहिने सुग्घर गहिना॥
गिरा घुमे फिरे अपन खेत म।
छत्तीसगढ़िया रेंगना रेस म॥
हेमा पुष्पा मन्टोरिया पोरा।
भुंजिस चना बऊटरा तिवरा होरा॥
देख के शहरी बाबू पूछय।
मगन होके मेड़पार म सुतय॥
देख डारिस किरपा डोकरा।
पूछे काहा ले आय हे छोकरा॥
बड़ हमेरी बोलत हे।
किचि पिचि भाखा खोलत हे॥
का मिलथे बाबू शहर म।
धूल गैस के कहर म॥
इहा शुध्द ठण्डा हवा पीले।
निरोगी जीवन जी ले॥
कुहकय कोयली खार म।
बइठ के चा बटर खाले पार म॥
ममता मई होथे महतारी के कोरा।
बड़ मिठ लागथे छत्तीसगढ़िया होरा॥
शहरी बाबू येती आतो।
रंग बिरंग होरा खातो॥
एक बछर म एक घ खाथन।
बर्फी खोवा कस मजा पाथन॥
डोकरा हर बन जाथे छोरा।
चना बऊटरा तिवरा होरा।

श्यामू विश्वकर्मा
नयापारा डमरू बलौछाबाजार