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कविता

कोन जनी कब मिलही..?

जुग-जुग ले आंखी म आंसू, अउ हिरदे म घाव।
कोन जनी कब मिलही तिरिया, जग म तोला नियाव।।

होइस कभू तोर अंचरा दगहा, कभू मिलिस बनवास,
तइहा जुग ले देवत परीक्षा, जिवरा होगे हदास।
कोनो हारथे खेलत पासा, तोला लगाके दांव।। कोन जनी…

कोन ल अपन बताबे इहां तैं, कहिबे कोन बीरान,
तोर सनमान ल कोनो रंउदथे, लेथे कोनो परान।
बनय नहीं कभू सुख के छइहां म, दुखिया तोर थिरभाव।। कोन जनी..

जिनगी म तोर दुख अउ पीरा, पांव-पांव म कांटा,
देथस सुख तैं ज मो ल फेर, दुख ह तोरे बांटा।
पर के अधिनी मुड़ी खुसेरे, होथय तोर निभाव।। कोन जनी…

रीता विभारे
मोहदी (मगरलोड)
जिला-धमतरी (छ.ग.)

One reply on “कोन जनी कब मिलही..?”

सिरतोन बहूत सुंदर रचना हे

जिनगी म तोर दुख अउ पीरा, पांव-पांव म कांटा,
देथस सुख तैं ज मो ल फेर, दुख ह तोरे बांटा।
पर के अधिनी मुड़ी खुसेरे, होथय तोर निभाव

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