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कविता

चुनई के बेरा

चुनई के जब बेरा आय
बिपक्षी मन के खामी आ जाय
पांच बछर जब राज करिस
तब काबर नई सुरता देवाय
चुनई के बेरा खामी बताय

राजनीति के खेल ये भइया
सब्बो संग मिलके गोठियाय
वोट मांगे बर सब्बो घर
पांइलाग सबके दुख बिसराय

चार लंगुरूवा ला संग लेेके
अपन नाम के छापा देखाय
वोट छापा मा डारहू कहिके
चंऊक मा भाषण सुनाय

जम्मों कर अपील कहिके
अपील मा मन ला मोहाय
कुरता गहना सोना-चांदी
दरूहा ला दारू पिलाय

बड-बड़े पाम्पलेट छपवा के
घर-घर मा बांटत जाय
बनगे नेता त पुछय नहीं
कुर्सी मा बइठे ठंेगवा दिखाय
चुनाव के बेरा ढोंग दिखाय

Bhola Ram Sahu

 

 

 

 

 

 

 

भोलाराम साहू