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कविता

चौमास : कबिता

जब करिया बादर बरसे, सब तन मन ह हरषे।
चम-चम बिजुरी ह चमके, घड़-घड़ बदरा ह गरजे॥
तब आये संगी चौमास रे…
1. रुमझूमहा बरसे पानी, चुहे ले परवा छानी।
पानी ले हे जिनगानी, हांस रे जम्मो परानी॥
जिनगी के इही आस रे…
2. गली-गली चिखला माते, नान्हे लइका मन नाचे
चिरई चिरगुन ह नाचे, माटी हर महमाए।
भुइंया के बुझाए पियास रे…
3. भीजे ले धरती के कोरा, नाचे मंजूर मन मोरा।
जब आए आंधी बरोड़ा, टूट जाए कतको डेरा॥
झन होहू संगी उदास रे…
4. तरिया डबरी छलकाए नरवा-नदिया उफनाए।
कोरा भुइंया के हरियाए, दादुर राम मल्हार गाए॥
तब बदरा ह आये पास रे…
5. जब बेरा के घाम पाए, रूख-राई लहलाए
किसान के मन हरषाए, तब जांगर टोर कमाए॥
दु:ख पीरा के करे नास रे…

नेमीचंद हिरवानी
मगरलोड, धमतरी