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कविता

छत्‍तीसगढी कुंडली : रंगू प्रसाद नामदेव

बासी खाना छूटगे, आदत परगे, चाय
पेट भरे ना पुरखातरे, ये कईसन बकवाय
ये कईसन बकवाय, सबो दुख-सुख मा लागू
देंवता अतरे फूल, चाय तो पंहुचे आगू
कह रंगू कविराय, सुनगा भाई घांसी
सबला होना चाय, बिटामिन छोडे बासी ।
रंगू प्रसाद नामदेव

2 replies on “छत्‍तीसगढी कुंडली : रंगू प्रसाद नामदेव”

आदत पड़ गए गे चाय ,छूटे नई छुटाय, चाय अइसन बकवाय।

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