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जसगीत अ‍उ छ्त्तीसगढ – दीपक शर्मा

जब भादो के कचारत पानी बिदा लेथे अ‍उ कुंवार के हिरणा ला करिया देने वाला घाम मुड मा टिकोरे ले धर लेथे। धान कंसाये ला धर लेथे ,तरीया के पानी फ़रीया जथे खोर के चिखला बोहा जथे अ‍उ चारो खूंट सब छनछन ले दिखे लागथे । हरियर लहरावत फसल अउ अपन मेहनत ला सुफल होवत देख के गांव गांव म सबे मनखे सत्ती दाई के पूजा म मगन हो जथे, जुगुर-जुगुर जोत चमके लागथे, माता देवाला मा जसगीत अ‍उ मांदर के थाप झमके लागथें।

मांदर के जसगीत से उही नता हे जेन छ्त्तीसगढिया के जसगीत से हाबे।जसगीत छ्त्तीसगढिया के परान हरे त मांदर जसगीत के परान हरे।दुसर लोकगीत असन जसगीत हा घलो जुरीया के गाये जाथे अ‍उ येहर छ्त्तीसगढी मन के जुरमिल से जीये के भावना के उदाहरण हरे।एक झन गाथे बाकि परानी संग-संग गोहराथे । पैरवा ले पंचमी तक महामाया के सिंगार ,पुरान, माता के बीरता के बखान संग कथा मन के बरनन होथे जइसे-

अंगार मोती माँ
तोर पावे पैजनीया बाजै वो
तोर नाक के नथनी हा डोलै वो अंगार मोती मा ॥

हर साल नवरात्री मा मंदिर नही ता घर मा परबीत जगह ले माटी लान के मैय्या के फ़ुलवारी बनाये जाथे नियम विधान के अनुसार चकमक पथरा ले आगी बार के जोत जलाये जाथे येहर नौंमी तक अखण्ड रथे जवारा ला खेतीबाडी के परतीक माने जथे अ‍उ येला देखके फ़सल के सोर बांधे जथे । जम्मो नौ दिन माता-देवाला मे अ‍उ जिंहा जवारा बैठारे जथे तिहा सेवागीत अ‍उ जसगीत गाये जथे । जसगीत मा देवी के संगेसंग लंगुरवा के बरनन घलो जरुरी हे लंगुरवा ला हनुमान जी के रुप माने जाथे जेन हर देवी के सेवा करथे ।वोखर रुप गुण ला बखानत ये उदाहरण देखव-

नहा-खोर के आये लंगुरवा
अंगे मा चंदन कौडे
पांवे मा पहिरे चंदन खडौव्वा
अलिन-गलीन मा दौडे
हो मोरे माया जी के लंगुरे
चौकी फ़िराथे हनुमाने हो मा !!

जब मांदर के थाप परथे अ‍उ मन झुमरै लागथे तब लईका सियान सब्बो संगे-संग गाये लागथे –

मन मोर लंगुरवा महामाई मन मोर लंगुरवा हो
निशदिन झुलावव तोला झुलना होना मा ॥

कोनो गरीबहा मन देवी के संगे-संग देवता ला मनाये लागथे अऊ कहे लागथे –

साहे धारण साहे धारण मोरे माया
निर्धन के होये अधारे हो साहे धारण माया ।

पंचमी के बाद जब धूप बाती ले घर पारा महर-महर माहके ला धर लेथे अ‍उ हमर खेती के निसानी जवारा हरियाये लागथे त जोतकलश ला उंच करे बर वोमा कलशा चढाये जाथे मन हर अपने अपन गाये बर लागथे –

कलशा उपर दिया हे दाई
मोर दिया उपर बरत हे ना
जिहां बैठे हाबे महामाई हो मा ।

पंचमी ले फ़ेर देवी के रौद्र रुप के बरनन शुरु होथे अ‍उ वोखर रन अ‍उ कौशल के बखान होना शुरु हो जथे जइसे –

रण भितर मे काखर घुमे रे तलवार
ये दे रही-रही के बाजत हे निशार
रण भितर मे काखर घुमे रे तलवार

गांव मन आजो देवी के नाम लेके बाना धरे जाथे कोनो कोनो झनकत बाजा के धार मा नाचे ल धर लेथे त मनखे मन कहिती वोला देबी चढ जथे का करबे हपट परे त हर गंगा ।तब येखरो बर डिमाग वाला सियान मन जतन लगा के वोकर करा पुछथे..

राजा घर बाजा बाजै तोर मुड मा चाऊर ढुरै ।
कोन देव अस महाराज ।

आठे के हुमन के पहीली सरी देवता धामी ला सुरता कर-कर के देवता नेवते जाथे जइसे –

देवता नेवत के हो
जग रचे महामाया देवता नेवत के हो
कलकत्ता के काली ल सुमिरौ रतनपुर महामाई
अऊ दंतेवाडा के दंतेशरी ला देवता नेवत के हो
जग रचे महामाया देवता नेवत के हो

देवी विसर्जन के दिन वोखर बिसर्जन बर घलो जसगीत गाये जथे कि –

केवल मैय्या मोर जावत हे अस्नान हो मा
कुकरा के बासा था चिरैय्या बोले माया मोर
मैय्या मोर जावत हे अस्नान हो मा।

जसगीत के एक बिशेषता येहर घलो हरे के येहर आखिरमा सबो भुल-चुक के क्षिमा मांगत हुवे येही चार लाइन मा खतम होथे कि –

सुमर सुमर मैय्या तोरे जस गाये
जै जै बोले तुम्हारे ।
बालक बरुवा कुछु नही जानव
केवल शरण तुम्हारे ।

जवांरा के परब अ‍उ जसगीत के मधुरता छ्त्तीसगढ के एक पहिचान हरे ।इही लोकप्रियता के सेती जसगीत के मनमाने अकन आडियो केसेट बाजार मा पहुंच गे हे !

दीपक शर्मा

 मोर जुन्‍ना खजाना म मोर स्‍वगीय बाबूजी के गाये एक ठन माता सेवा गीत हावय तउन ला हम आप बर इंहा लगावत हन, दीपक भाई के ये लेख ला पढत पढत येखर आनंद लेवव –

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4 replies on “जसगीत अ‍उ छ्त्तीसगढ – दीपक शर्मा”

दसो अंगुरी से मइया बिनती करत हौं, डंडा ओ सरन लागौं पांये हो माय ……. बोलो हिंगलाज मईया की …. जय !

नवराती पाख म हमर जस गीत के सुघ्‍घर बिबरन देहे हावव दीपक भाई, असनहे हमर लोक संसकृति के आरा बार ला पारा पार म बगराना हे । आप ला बहुत बहुत बधई ।

आपके रचना ला पढ के मोरो मन म गांव के सुरता फिलिम कस रेंगें लागिस, मांदर के थाप म झूमें लागिस अउ बइगा बबा ‘बम’ चढे नांचे लागिस ।

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