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कविता

धान बेचई के करलई

किसान के पीरा ह जग हँसई होगे।
मंडी म धान के बेचई करलई होगे॥
अधरतिहा ढिलाइस बईला-गाड़ी।
जुड़ म चंगुरगे हाथ-गोड़ माड़ी॥
झन पूछ भूख, पियास नींद के हाल।
चोंगी, माखुर तको जइसे, होगे बेहाल॥
होटल के गरम वोहा दवई होगे।
मंडी म धान के बेचई, करलई होगे॥
लोग हे मंडी म धान के ढेरी।
खचित हे हमर पर होही गा देरी॥
नोनी के दई ह बने त केहे रिहिस।
दू ठन चाउर के चीला, चटनी संग जोरे रिहिस॥
ऊहू गठरी कती गिरिस, मोर रोवई होगे।
मंडी म धान के बेचई, करलई होगे॥
किसान के दु:ख-पीरा कोन ह समझीही।
कोन ह ओखर संही, दु:ख ल सइही॥
तभो ले संतोष हे तियाग अऊ तपस्या म।
अन्नदाता नांव धराय हे तभे त दुनिया म॥
हमरे त जांगर म, पर के बड़ई होंगे।
मंडी म धान के बेचई, करलई होगे॥
गणेश राम पटेल
साहित्य सेवक
ग्राम व पो. बिरकोनी
जि. महासमुंद (छ.ग.)