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कविता

परघनी

जगा जगा बाजत हे, मोहरी अऊ बाजा ।
गांव गांव में होवत हे,विडियो अऊ नाचा ।
बर तरी आके , खड़े हे बरतिया ।
सुघ्घर परघाय बर, जावत हे घरतिया।
बड़े बड़े दनादन , फटाका फूटत हे ।
आनी बानी गीत गाके, टूरा मन कूदत हे।
पगड़ी ल बांध के, दूनों समधी मिलत हे।
घेरी बेरी चकाचक , फोटू खींचत हे ।
कूद कूद के बजनिया मन, बाजा बजावत हे।
गांव भरके मिलके, बरतिया परघावत हे।

महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला — कबीरधाम (छ ग )
पिन – 491559
मो नं — 8602407353
Email – mahendradewanganmati@gmail.com