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कविता

बेटी मन

बेटा कहूं जिनगी के डोंगा,
त पतवार ए बेटी मन !
जेठ के सुक्खा परिया जिनगी,
त सावन के फुहार ए बेटी मन !!

नांगर के थके जांगर ल,
एक लोटा पानी म हरियाथे !
चोंट लगथे दाई-ददा ल ,
पीरा उन ल जनाथे !!
बहु बेटा के गारी बीच.
मया दुलार ए बेटी मन..
बेटा कहूं……

नान्हे पांव के छुनुर पैरी,
दुरिहा ले सुनाथे !
दाई ददा ल अइसे लगथे,
जइसे जेठ म पुरवइय्या आथे !!
मोर टुटहा कुंदरा के
सिंगार ए बेटी मन…
बेटा कहूं……….।

बाप हिरदय मा पथरा रखके,
करेजा के चानी ल बिदाथे !
गोधुरी बेरा म बेटी देके,
बाप धरम निभाथे !!
बाप बर.
होरी देवारी अउ हरेली तिहार ए बेटी मन….
बेटा कहूं…..।

परिवार के सेवा करके ,
मइके के नाव जगाथे !
खुद ह लांग्हन रहिके,
भरपेट सबला खवाथे !!
सिरतोन म अन्नपूरना के
अवतार ए बेटी मन…
बेटा कहूं जिनगी के डोंगा,
त पतवार ए बेटी मन !

राम कुमार साहू
सिल्हाटी (स. लोहारा)
कबीरधाम
मो नं. 9977535388
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