Categories
कविता

बसंत बेलबेलहा

सर सरात हवा संग
जुन्ना पाना झरथे ।
फोंकियाये रूख के फुनगी
बाती कस बरथे ।
रात लजकुरहीन संग
दिन बरपेलिहा ।
दिल्लगी करथे चुपचुप
बसंत बेलबेलहा ।

आमा जम्मो मऊरगे
बउराये मन बऊरगे ।
चुचवाय संगी संऊरगे
ललचाये अबड़ दंऊड़गे ।
सृस्टि दुलहिन बिहाये बर
बरतिया बनगे ठेलहा ।
दुलहा बनके आये हे
बसंत बेलबेलहा ।

हरियर डारा म बइठके
कोइली मन कुहके ।
भौंरा अऊ तितली मन
फूल के रस चुंहके ।
रसरसाय के बेरा आगे
रहय कहूं नइ तनहा ।
फेर गुदगुदावथे रति ल
रितुराज बेलबेलहा ।

गजानंद प्रसाद देवांगन
छुरा
[responsivevoice_button voice=”Hindi Female” buttontext=”ये रचना ला सुनव”]


One reply on “बसंत बेलबेलहा”

Comments are closed.