Categories
कविता

जब बेंदरा बिनास होही

वो दिन दुरिहा नई हे,
जब बेंदरा बिनास होही,
एक एक दाना बर तरसही मनखे,
बूंद बूंद पानी बर रोही,

आज जनम देवैया दाई-ददा के
आँखी ले आँसू बोहावत हे,
लछमी दाई कस गउ माता ह, जघा जघा म कटावत हे,
हरहर कटकट आज मनखे,
पाप ल कमावत हे,
नई हे ठिकाना ये कलजुग में, महतारी के अचरा सनावत हे,
मानुष तन में चढ़े पाप के रंग ल,
लहू लहू में धोही,
वो दिन दुरिहा नई हे, जब बेंदरा बिनास होही।

भूकम्प, सुनामी अंकाल,
जम्मो संघरा आवत हे,
आगी बरोबर सुरुज तिपत हे,
तरिया नदिया सुखावत हे,
पाप अति होगे,
पुन के दुर्गति होगे,
कराही में उसनही भजिया बरोबर,
रही रही के तोला खोही,
वो दिन दुरिहा नई हे, जब बेंदरा बिनास होही।

धान लुये कस
मुड़ी ल काटही,
लहू में प्यास बुझाहि,
काल के बेरा आघू में होही,
ओतके बेर सुरता आही,
पाप पुन जम्मो करनी के,
ओतके बेर हिसाब करही,
पापी मन के नास करे बर,
कलयुग में काली अवतरही।
पापी मन ह जीव के भीख बर, लहू के आँसू रोही,
वो दिन दुरिहा नई हे, जब बेंदरा बिनास होही।

धर्मेन्द्र डहरवाल
सोहगपुर जिला बेमेतरा