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कविता

बसंत रितु आगे

बसंत रितु आगे मन म पियार जगागे
हलु – हलु फागुन महीना ह आगे
सरसों , अरसी के फूल महमहावत हे
देख तो संगवारी कैसे बर – पीपर ह फुनगियागे
हलु – हलु फागुन महीना ह आगे
पिंयर – पिंयर सरसों खेत म लहकत हे
भदरी म परसा ह कैसे चमकत हे
अमली ह गेदरागे
बोइर ह पकपकागे
आमा मउर ह महमहावत हे
नीम ह फुनगियावत हे
रितु राज बसंत आगे
हलु – हलु फागुन महीना ह आगे
कोयली ह कुहकत हे
मीठ बोली बोलत हे
सखी ! रे देख तो सुरुज ह चमकत हे
सुरु – सुरु पवन ह पुरवाही भरत हे
बसंत रितु आगे
भौंरा ह गुनगुनावत हे
पिंजरा ले मैना बोलत हे
हलु – हलु फागुन महीना ह आगे
नगर म ढोल – नगारा बाजत हे
देख तो सवरेंगी रंग – गुलाल उड़ावत हे
संगी – संगवारी संग बेलबेलावत हे
बसंत रितु आगे मन म पियार जगागे
हलु – हलु फागुन महीना ह आगे

लक्ष्मी नारायण लहरे “साहिल”
डॉक्टर अम्बेडकर चौक कोसीर
सारंगढ़ रायगढ़, छत्तीसगढ़