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किताब कोठी महाकाव्‍य

गरीबा महाकाव्य (चौंथा पांत : लाखड़ी पांत)

धरती माता सबके माता-सब ले बढ़ के गाथा ।
मोर कुजानिक ला माफी कर मंय टेकत हंव माथा।।
अन्न खनिज अउ वृक्ष हा उपजत तोर गर्भ ले माता ।
सब प्राणी उपयोग करत तब बचा सकत जिनगानी ।।
“”कहां लुका-भागे डोकरा?
तोला खोजत हन सब कोती
सुन्तापुर के सब छोकरा ।
कहां लुका भागे छोकरा…?
चुंदी पाक गे सन के माफिक
अंदर घुसगे आंखी
बिना दांत के बोकरा डाढ़ी
पक्ती – पक्ती छाती.
झड़कत रथस तभो ठोसरा…।।
हाथ गोड़ के मांस हा झूलत
कनिहा नव गे टेड़गा
कउनो डहर जाय बर होथय
धरथस कुबरी बेड़गा.
सरकस के भइगे जोकरा…।
हमर मितान आस तब तो हम
आथन तुम्हर दुवारी
घर ले निकल तुरुत आ वरना
खाबे नंगत गारी
अउ हम्मन खाबो बोबरा ।
कहाँ लुका-भागे डोकरा ।।
लइका मन हा नाच गीत गा अब तक खड़े दुवारी ।
पर सुद्धू के पता लगत नइ- कहाँ गीस संगवारी ।।
रंगी जंगी गज्जू गुन्जा, मोंगा संग मं पुनऊ थुकेल
बाहिर मं रहि काय करंय अब, अंदर जाय बढ़ा दिन गोड़.
छोकरा मन घर अंदर घुसरिन, सब ठंव जांचत चोर समान
मुंह रख हाथ इशारा देवत, बंद रखे हें अपन जबान.
देखिन – सुद्धू सुते खाट मं, आंख बंद कर अल्लर देह
हला – हला झींकत चिल्लाइन, पर सुद्धू देवत नइ स्नेह.
लइका मन गुदगुदा डरिन पर, सुद्धू हा नइ लिस कल्दास
नाक मं अंगरी ला रख देखिन, मगर बंद हे ओकर सांस.
अतिक बखत तक लइका मन हा, रहि के बिधुन करत हें यत्न
जेन गरीबा हे अनुपस्थित, ओहर पहुंच गीस ए बीच.
कथय गरीबा बच्चा मन ला – “”काबर करत उदबिरिस व्यर्थ
मोर ददा ला झन केंदरावव, चले फिरे बर हे असमर्थ.
तुम नटखट हठ करे रेहे हव – होय जनउला कथा तड़ाक
तब ओ खेल हा खतमे हो गिस, मोर ददा ला झन केंदराव.”
रंगी कथय -“”डांट झन हमला, ढंगी हवय तोर खुद बाप
ओहर एकोकन नइ बोलत, सोय हवय बिल्कुल चुपचाप.
हाथ गोड़ ला रखे हे अकड़ा, चलती सांस ला रख लिस रोक
ओहर आज बतात बहाना, तब हम अचरज मं हन ठाड़.”
का होगे ? कहि तुरूत गरीबा, देखिस अपन बाप के हाल
जानिस जहां बाप हां मरगे, आंसू हा ढर आइस गाल.
यद्यपि अंतस मं दुख नंगत, पर नइ रोइस धर के राग
लइका मन आंसू ला देखिन, उंकर जीव बस एक छटाक.
गज्जू बोलिस -“”हम सुद्धू संग, एकोकन नइ करेन मजाक
तभो गरीबा आंसू ढारत, हमला समझ लड़ंका खूब.
लेकिन सच बिखेद हम जानत – सुद्धू हवय स्वयं चरबांक
ओहर अइसे ढचरा मारत – लइका मन होवंय बदनाम.”
मोंगा किहिस -“”लहुट हम जानत, पर तंय आंसू ला झन डार
इहां पहुंच के जुरूम करे हन, तेकर बर छोड़त हन द्वार.
हमर पुकार करिस सुद्धू हा, दल बल साथ आय हम दौड़
पर अब खुद हा ढचरा मारत, हमर खेल मं पारत बेंग.
ओहर हा बुजरूग मनखे तब, ओकर लाख दोष हा माफ
इही कुजानिक यदि करतेन हम, नाक कान ला खिंचतिस जोर.”
सुनिस गरीबा केंवरी भाखा, कबिया धरिस मया के साथ
कहिथय -“”यदि तुम बिफड़ के जाहव, तंहने मंय हो जहंव अनाथ.
तुमला फोर बतावत हंव मंय – ददा के निकले हे अब प्राण
तुम्हर साथ खेलन नइ पावय, मिट्टी मिलिहय ओकर देह.”
लइका मन सच स्थिति समझिन, रोय धरिन कलपत बोमफार
कतको छेंक लगात गरीबा, तभो बहत आंसू के धार.
मेहरुला बलवैस गरीबा, पर ओहर नइ अपन मकान
दूसर मनसे कर कलपिस पर, ओमन छरकिन ढचरा मार.
दुब्बर बर असाढ़ दू ठक – कारज कइसे निपटाये ।
लइका मन ला उंहे छोड़ के रेंगिस कपड़ा लाने ।।
डकहर नाम एक झन मनसे, जेन हा पहिली रिहिस गरीब
लांघन भूंखन समय ला काटय, दुख अभाव हा ओकर मित्र.
आखिर मं हताश खा गिस तंह, खाय कमाय मुम्बई चल दीस
लगा दिमाग करिस डंट महिनत, तेकर मिलिस लाभ परिणाम.
अड़बड़ रूपिया उहां कमा लिस, सुन्तापुर मं लहुट के अ‍ैस
इहां भूमि घर फेर बिसा लिस, खोलिस एक ठन बड़े दुकान.
जम्मों जिनिस दूकान मं रखथय – ग्राहक रिता हाथ झन जाय
एमां लाभ मिलत मन माफिक, डकहर के धन बाढ़त खूब.
डकहर तिर मं गीस गरीबा, ओहर कर दिस बंद दुकान
लगथय – उहू दुसर तन जावत, हाथ धरे पीताम्बर वस्त्र.
डकहर पूछिस -“”काय बात हे, दिखत हवस तंय खिन्न उदास
तोर काम का हवय मोर तिर, जमों प्रश्न के उत्तर कोन ?”
कथय गरीबा हा दुख स्वर मं -“”अपन कष्ट मंय काय बतांव
मोर ददा हा सरग चलेगे, मुड़ पर गिरिस बिपत के गाज.
जलगस ओहर जग मं जीयत, मंय आनीबानी सुख पाय
लेकिन आज साथ छोड़िस तंह, ओकर बिन मंय होय अनाथ.”
परिस अचम्भा मं डकहर हा -“”तंय बताय हस दुख के बात
बपुरा सुद्धू भला आदमी, सब संग रखिस मधुर संबंध.
पर ए बात समझ ले बाहिर – सोनू घलो आज मर गीस.
एक दिवस मं दू झन मनसे, क्रूर काल के चई मं गीन.
लगथय के दई हा खिसिया गिस, दिखत गांव के हाल बेहाल
अब काकर पर करन भरोसा, गांव हा बदलत हे शमसान.”
“”मोला देव कफन के कपड़ा, मदद करे बर तंय चल साथ
शव ला उठा लेगबो मरघट, एकर बर जरूरत हे तोर.”
डकहर पीताम्बरी देखाथय -“”मोला तंय बिल्कुल झन रोक
एला सोनू के शव रखिहंव, तब मंय हा जावत ओ ओर.
धनवा अउ मंय भाई अस अन, मंय हा ओकर आहंव काम
जानबूझ के अगर बिलमिहंव, धनवा करिहय तनकनिपोर.
अपन काम साधारण निपटा, व्यर्थ खर्च ला झन कर भूल
ढोंग धतूरा छोड़ गरीबा – रकम बचा के भविष्य सुधार.”
करिस गरीबा अड़बड़ करलइ, पर डकहर कपड़ा नइ दीस
आखिर हार गरीबा हा अब, अपन मकान लहुट के अ‍ैस.
होत कोन दुर्बल के मितवा, सक्षम के सहायक संसार
बरसा जल समुद्र मं गिरथय, खेत हा देखत मुंह ला फार.
अपन ददा के शव पर डारिस, चिरहा धोती एक निकाल
बांस कहां खटली बनाय बर, होन चहत अब शव बेहाल.
ओतिर हवय उपाय एक ठक – झींकिस कांड़ लगे ते बांस
खटली बना रखिस ओकर पर – मरे हवय सुद्धू के लाश.
लाश उठाय के क्षण आइस तंह, करत गरीबा एक विचार-
यदि लइका मसानगंज जाहंय, पालक नइ रहिहंय थिरथार.
मनसे मन बिफड़े पहिलिच के, एमां धरिहय तिजरा रोग
बालक मन ला इहां ले भेजंव, दुख ला लेंव मंय खुद हा भोग.,
शंका ला फुरियैस गरीबा, लइका मन ला चढ़गे जोश
जंगी कथय बढ़ा के हिम्मत -“”तंय डरपोकना अस डर गेस.
तंय हा अड़िल जवनहा लेकिन, हिम्मत तोर बहुत कमजोर
तंय हा हमला मदद नइ मांगत, शक्ति हमर तिर मरघट जाय.
सुद्धू कथा कहानी बोलिस, ओकर संग मं हंसी मजाक
यदि अंतिम क्षण मं हम हटबो, हमर ले बढ़ के कपटी कोन !
यदि डर्रात तिंही घर मं रूक, कैची बन इच्छा झन काट
अपन मित्र के थिरबहा करबो, तब करतब हो जहय सपाट.”
छेंकिस खूब गरीबा पर नइ मानिन बालक बाती ।
मरघट जाय तियार होत काबर के जावत साथी ।।
बालक लघु अउ ऊंच गरीबा, ऊपर नीचे खटली होत
शव उठाय बेवसाय बनत नइ, कइसे करन करत हें सोच.
आगू ला बोहि लीस गरीबा, लइका मन तोलगी धर जात
उंकर खांद हा बहुत पिरावत, बदबद गरुहोत हे लाश.
एक दुसर के मदद करत हें, काबर बोझ उठावय एक !
लइका मन के करनी परखव – करत अनर्थ के करनी नेक !
लइका मन ला बुद्धिहीन कहि, एल्हत आत जवान सियान
लेकिन सूक्ष्म दृष्टि से अब सब, करो भला इनकर पहिचान.
जेंन अपन ला कहत सुजानिक, कहत शांतिवादी मंय आंव
आय उहू मन जनता के अरि, जर ला खोद करावत युद्ध.
पर उपकार के बात ला करथंय, पर करथंय पर के नुकसान
याने कथनी अउ करनी मं, अमृत अउ विष ततका भेद.
लइका मन के हृदय हा निश्छल, अगर सबो झन कोमल शुद्ध
दंगा कपट लड़ाई रिपुता, सब दिन बर हो जहय समाप्त.
मरघट पहुंच उतारिन खटली, कोड़त दर दफनाय बर लाश
साबर रापा बिकट बजावत, थक गिन पर नइ होत हताश.
आधा काम होय अतकिच मं, आत दिखिस सोनू के लाश
रूपिया नावत लाई छितत लाश पर, सोनू रिहिस गांव के खास.
टहलू, रमझू झड़ी उहां हें – डकहर सुखी भुखू धनसाय
बन्जू बउदा हगरुकातिक, केजा बहुरा गुहा ग्रामीण.
मानो सब के ददा हा मरगे, कुल्ह के रोवत आंसू ढार
बदल बदल के खटली बोहत, जइसे के श्रद्धालु अपार.
लाश रखाय नवा खटली मं, ओढ़े हे नव उंचहा वस्त्र
फूल गुलाल छिंचाय बहुत अक, सुद्धू अस नइ हे कंगाल.
जहां लाश हा मरघट पहुंचिस, फट उतार नीचे रख दीन
देख गरीबा अउ बालक ला, मनसे मन कुब्बल खखुवैन.
कातिक अउ बहुरा दूनों झन, अ‍ैन गरीबा के तिर दौड़
बहुरा झड़किस – “”अरे गरीबा, काबर करत अबुज अस काम.
लइका होथंय भोला भाला, नइ जानंय फरफंद कुचाल
इहां लाय ओमन ला भुरिया, का कारण देवत हस दण्ड !”
कातिक बोलिस -“”अरे गरीबा, लइका मन ला काबर लाय
अपन ददा के संग एमन ला, चहत हवस दर मं दफनाय !
तंय जानत मरघट मं रहिथंय – रक्सा दानव प्रेतिन भूत
तंय खुद ला हुसनाक समझथस, पर तंय काबर आज बिचेत !
पर के पिला ला धर लाने हस, कते व्यक्ति हा दिस अधिकार
बालक मन ला इहां ले भगवा, वरना तोर अब खुंटीउजार.”
लइका मन ला हटा गरीबा, जोंगत काम अपन बस एक
जब सब मदद ले भागंय दुरिहा, मनसे करय स्वयं के काम.
धनवा डहर बहुत झन मनसे, अपन अपन ले जोंगत काम
सब ग्रामीण मदद पहुंचावत, ताकि कहय धनवा हा नेक.
लकड़ी रच के चिता बना दिन, फिर रख दिन सोनू के लाश
धनवा किंजर करत परकम्मा, लेवत फुस फुस दुख के सांस.
चिता के आगी धकधक बरगे, तब धनसाय दीस मुंह दाग
आंसू गिरा के रोवत धड़धड़ -“”ददा, मोर अब फुट गे भाग.
तंय मोला छोड़त तब करिहय मोर कोन रखवारी ।
छल प्रपंच नइ जानंव कइसे कटिहय विपदा भारी ।।
डकहर किहिस -“”शांत रह धनवा, वाकई आय तोर पर कष्ट
लेकिन मन ला सम्बोधन कर, तभे हमर दुख होहय नष्ट.
सोनू मण्डल भला आदमी, सिरिफ तोर नइ रिहिस सियान
ओहर सब अतराप के पुरखा, मनसे मन हा पुत्र समान.”
केजा घलो सांत्वना देइस -“”जग मं होथय कई इंसान
मगर कर्म के अंतर कारण, यश मिलथय – होथय बदनाम.
पर उपकारी तोर ददा हा, करिस जियत भर भल के काम
तभो ले कतको जलकुकड़ा मन, मुंह पाछू कर दिन बदनाम.
जेन व्यक्ति हा दुश्मनी जोंगिस, सोनू मदद करिस हर टेम
सबके खातिर हृदय साफ झक, नइ जानिस कुछ छल या झूठ.”
मनखे मन मुंह देखी बोलत, काबर के धनवा धनवान
यदि ध्रुव असन सत्य बोलत हें, धनवा हा लेहय प्रतिशोध.
सोनू रिहिस लुटेरा घालुक, ए रहस्य जानत अतराप
कोन घेपतिस मनसे ला पर – पूंजी के भय करथय खांव.
शासन निहू हे धन के आगू, ए बपुरा मन हवंय अनाथ
सोनू के मरना ले खुश हें, बाहिर मन से देवत साथ.
सिरिफ गरीबा हे दुसरा तन, एको झन नइ ओकर पास
खंचुवा कोड़िस मात्र अपन भिड़, पर कइसे दफनावय लाश !
मदद मंगे बर गीस दुसर बल, करूण शब्द मं हेरिस बोल –
“”अब दर मं शव ला रखना हे, लेकिन होवत मंय बस एक.
अंड़े काम पूरा करना हे, दे के मदद करा दव पूर्ण
मोर ददा हा साऊ अदमी, थिरबहा लागे ओकर लाश.”
टपले सुखी बात ला काटिस -“”तोर शर्म कतिहां चल दीस –
“”सोनसाय के जीव का छूटिस, तंय बिजराये बर धमकेस.
टेम सुघर अक आय तोर बर, मिलगे मुफ्त गांव के राज
अपन थोथना इहां ले टरिया, खुद सम्हाल मरनी के काम.”
भुखू कथय -“”तंय हा जानत हस – हम्मन अभी दुखी गमगीन
जब गंभीर बखत हा होवय, कभू भूल झन होय मजाक.
जेन कार्यक्रम एती होवत, ओला छोड़ अन्य नइ जान
तंय हा अपन काम कर पूरा, हमर आसरा बिल्कुल छोड़.”
गंगा हा जब बहत छलाछल, कोई भी धोवत हे हाथ
जमों गरीबा ला दंदरावत, टहलू तक हा मारत डांट –
“”अतका बखत ले खरथरिहा अस, करत रेहेस उदिम बस एक
काम अधूरा तब दउड़े हस, चल अब पुरो अपन सब काम.”
हटिस गरीबा हा काबर के – हिनहर के नइ हितू गरीब
भंइसा बैर छत्तीस गिनती अस, तलगस ले सुर्हराहय जीब.
जब असहाय होय मानव हा, खुद हा करय लक्ष्य ला पूर्ण
खात गरीबा कहां हार अब, देत परीक्षा होय उत्तीर्ण.
यथा ढेखरा खर खर तीरत, लाश ला लानिस दर के तीर
एकर काम देख के हांसत, दूसर तन के मानव – भीड़.
अपन बहा मं खने जेन दर, उही मं घुस के झींकत लाश
अपन ददा ला भितर सुता के, होत गरीबा दुखी उदास.
बाहिर निकल पलावत माटी, धांसत पथरा मं बड़ जोर
दुसर डहर के मनसे मन अब, चलिन उहां के रटघा टोर.
धनसहाय के घर तिर पहुंचिन, धोइन एक – एक कर गोड़
एकर बाद अपन घर जाये, उहां ले रेंगिन मुँह ला मोड़.
शाम के अउ बैठक जुरियाइस, धनवा बोलिस दुखी अवाज –
“”मंय असहाय अनाथ होय हंव, मोला परिस बज्र के मार.
अड़बड़ जहरित रिहिस बाप हा, कुब्बल उदगरे ओकर काम
ओकर आत्मा पाय शांति सुख, एकर बर मंय करंव उपाय.
लेकिन कते काम ला जोंगव, मोर दिमाग उमंझ नइ आत
नेक सलाह देव तुम मिल जुल, सुलिन लगा के होवय काम.”
सुखी कथय -“”तंय राज ला करबे, अपन बाप के धन में।
ओकर आत्मा शांत होय, तइसे कारज धर मन में ।
मंय उत्तम सलाह देवत हंव – तंय खवाय “भंडारा’ खोल
मनसे जहां कलेवा खाहंय, तृप्ति अमर गाहंय जस तोर.
मृतक के आत्मा तुष्ट हो जाहय, भटकत आत्मा तक हा शांत
यद्यपि होवत नंगत खरचा, पर होवत हे सद उपयोग.”
बन्जू कथय -“”असामी अस तयं, भरे बोजाय चीज घर तोर
तब हम तोला उम्हयावत हन – तंय हा निश्चय कर परमार्थ.”
यद्यपि हगरुहा खुद कंगला, पर असहाय के छोड़त साथ
करत गरीबा के जड़ खोदी, ताकि स्वयं उठ जावय ऊंच –
“”अन्न खाय नइ पाय गरीबा, कंगला हाथ कहां जस – काम
करत अधर्म पुत्र पापी हा, पर सुद्धू हा गिरिहय नर्क.”
धनसहाय स्वीकार लीस सब -“”मंय मानत हंव तुम्हर सलाह
मंय भण्डारा खोल के रहिहंव, खाय पेट भर सब अतराप.
मगर कार्यक्रम हे बड़ भारी, सफल बनान सकंव नइ एक
एकर बर तुम देव आसरा, मंय हा चहत तुम्हर सहयोग.”
डकहर बोलिस -“”तंय निफिक्र रहि, गिरन देन नइ इज्जत तोर
अगर कार्यक्रम मं कुछ गल्ती, हम सब मनखे तक बदनाम.
दस झन के लकड़ी के बोझा, एक के मुड़ पर कभु नइ जाय
तोर काम ला सफल बनाबो, तोर बोझ हा हमरो बोझ.”
बातचीत मं टेम खसक दिस, कब ले खलस रेंग दिस शाम
बइठक उसल गीस तंह रेगिन – मनसे मन हा खुद के धाम.
पल – पल बढ़त रात के फंदा, बाहिर नइ निकलत इन्सान
अपन प्रथम पारी निपटा लिस, कर अवाज कोलिहा परधान.
बिरबिट करिया चारों मुंहड़ा, डर मं सांय सांय अतराप
दूझन जीव गाँव ले निकले, सुद्धू अउ धनवा के बाप.
जे मनसे के नींद हा परगे, सपना मं डर के बर्रात
ओकर तिर मं एकोझन नइ, मगर झझक का का गोठियात.
बहुरा डर मं दुबक के सोये, भूंकिन कुकुर खूब ए बीच
हवलदार बुतकू केंवरी ला, बहुरा हा कर दीस सचेत-
“”टोनही मन हा मंतर मारिन, सोनू सुद्धू पर अजमैन
ओमन ला फिर जीवित कर दिन, धर लिन दुनों कुकुर के रूप
ओमन ला भगाय झन सोचव, तुम झन निकलव बाहिर पार
अगर बात के करत उदेली, तुम पर आहय बड़े बवाल –
सोनू अउ सुद्धू दूनों मिल, रूप बदल के बनिहंय बाघ
तुम्हर प्राण लेहंय थपोल झड़, तंहने बाद मं खाहीं मांस.”
सोय झड़ी हा ओढ़ के चद्दर टकटक देखत आंखी ।
ओहर भय मं लद लद कांपत चुप हे मुंह के बोली ।।
तभे सामने ओहर देखिस – ललिया आंख खड़े सोनसाय
झड़ी कठिन मं बक्का फोरिस -“”मालिक, तोर सदा मंय दास.
बइठक अउ पंचायत होइस, तोर पक्ष मंय भिड़ के लेंव
तोर ले निहू रेहेंव हमेशा, तोर विरूद्ध कभू नइ गेंव.
धनवा ले बाढ़ी मांगे हंव, ओकर ऋण बइठे मुड़ मोर
मंय हा ओला खतम पटाहंव, मोला जिये के अवसर देव.”
थोरिक बाद झड़ी हा देखिस, आगू कोती आंख नटेर
मगर उहां पर एको झन नइ, वातावरण हवय सिमसाम.
ओढ़िस झड़ी हा तुरते चद्दर, मुड़ ले गोड़ रखे हे ढांक
मन मन मं प्रार्थना करत हे – हे प्रभु, बचा मोर अब जान.”
भगवानी तक डर मं कांपत, आगू तन देखत टक एक
तभे एक ठक आकृति उभरिस – सुद्धू खड़े हवय भर क्रोध.
भगवानी रोनहू बन बोलिस -“”लड़िन गरीबा अउ धनसाय
तंहा गरीबा फंस जावय कहि, मंय हा देंव गवाही झूठ.
मंय हा गल्ती गजब करे हंव, पर ए डहर भूल नइ होय
हाथ जोड़ के माफी मांगत, मोर कुजानिक ला कर माफ.”
लघु शंका बर निकल पात नइ, मुश्किल होत रूके बर वेग
तब ले मनखे सुतत कलेचुप-मुड़ ऊपर चद्दर ला लेग.
दू झन वृद्ध गांव मं पहुंचिन, दीन अवाज मंगे बर भीख-
“”हम भिक्षुक अन – भूख मरत हन, हमला देव खाय बर भात.”
उंकर अवाज ला गुहा हा सुन लिस, तंह कैना ला करिस सचेत –
“”सोनू अउ सुद्धू एं एमन, धमकिन इहां बदल के रूप.
ओमन अब बन गीन भिखारी, मांगत भीख गली हर द्वार
भिक्षा दान करे बर जाबो, ओमन हमला दिहीं दबोच.
मरघट तक ले जाहंय झींकत, जिंहा अभी के उंकर निवास
पुनऊ थुकेल झझक झन जावंय, दूनों ला रख बने सम्हाल”
हम कतको शिक्षित ज्ञानिक हन, पर मजबूत अंधविश्वास
जलगस नइ विज्ञान के शिक्षा, छू मंतर नइ भ्रम के भूत.
हर दरवाजा गीन वृद्ध मन, पर कड़कड़ ले बंद किवाड़
भूख मं आंटीपोटा बइठत, कंस करलावत इनकर जीव.
आखिर एक मकान पास गिन, बइठ गीन होके लस पश्त
बुड़ुर बुड़ुर का का गोठियावत, एक दुसर के बांटत कष्ट.
जब देखिन अब जीव हा छूटत, मुंह ला फार दीन आवाज-
“”मंगन मन ला देव खाय बर, वरना पटिया मरबो आज.”
बेंस खोल के अ‍ैस गरीबा, पूछिस -“”रथव कते तुम गांव
परगे बिपत का बोम मचावत, जाय चहत हव काकर छांव ?”
उनकर हाल गरीबा देखिस -“”अंधरा एक – दुसर विकलांग
कुष्ट रोग हा छाय दुनों पर, घिनघिन कपड़ा लटके देह.
अंधरा हवय जेन डोकरा हा, अपन रखे हे “मंसा’ नाम
जेन वृद्ध टेंग टेंग लंगड़ावत, ओकर नाम “पुरानिक’ जान.
किहिस पुरानिक -“”हम मंगन अन, कंगलई करत हमर पर राज
मुंह चोपियात पिये बिन पानी, पेट हा कलपत बिगर अनाज.”
लाला लपटी देख गरीबा, दया देखात – मरत हे सोग
पर सुद्धू मरगे तेकर बर, काठी छुआ अशुद्ध समान.
शंका ला सुन मंसा बोलिस -“”अपन चोचला रख खुद पास
शुद्ध अशुद्ध ला हम नइ मानन, काठी छुआ ला रखथन दूर.
एला अगर मान्यता देबो, ककरो इहां सकन नइ खान
तब तो हमर जीव तक जाहय, तन असक्त पर बहुत अजार.
जे सम्पन्न शक्ति धर – सक्षम, चलथय नियम धियम ला मान
उंकर बुराई कोन हा करही, बेर हा हरदम बर बेदाग.”
अंदर लान सियनहा मन ला दीस गरीबा बासी ।
दूसर मन दुत्कारिन लेकिन खुद काबर दे फांसी ।।
बड़े कौर धर खात वृद्ध मन, कभू खाय नइ तइसे लेत
बुड़त सइकमा मं डाढ़ी हा, तेकर घलो कहां कुछ चेत !
कथय गरीबा -“”देव ज्वाप तुम – काबर किंजरत पर के द्वार
तुम्हर सहायक जेन व्यक्ति हे, का कारण उठाय नइ भार. ?”
किहिस पुरानिक -“”का बतान हम – यद्यपि हवंय हमर संतान
लेकिन कुष्ट रोग के कारण, करथंय घृणा-भगावत दूर.
पुरबल कमई के कारण हमला, घृणित रोग हा सपड़ा लीस
हम ए बखत रतेन निज छंइहा, किंजर के खोजत बासी – छांय.”
किहिस गरीबा -“”कोन हा कहिथय, पाप के कारण कुष्ठ अजार
भ्रम के बात कभू झन मानो, एकर होथय खुंटीउजार.
कुष्ठ रोग ला खतम करे बर, निकल गे हावय दवई प्रसिद्ध
ओकर सेवन करो नियम कर, तंहने तन हो जहय निरोग.”
किहिस पुरानिक -“”बुरा मान झन – तंय बतात हस बिल्कुल झूठ
ज्ञानिक ग्रंथ जेन ला बोलिन, उंकर तथ्य पर मारत मूठ.
पर तंय हा विद्वान बनस नइ, तंय हमला भरमा झन व्यर्थ
जउन हा सच ते दिखत हे संउहत, कुष्ठ रोग नइ होय समाप्त.”
मंसा अपन तर्क ला रखथय -“”मानव पास शक्ति भण्डार
बात असम्भव रहिथय तेला, संभव बर कर देत प्रयास.
धन हा सम वितरण नइ होवय, रहिथंय दीन धनी इंसान
तीर मं तुक्का लग जावय कहि, करथंय समाजवाद के बात.
कुष्ठ रोग हा अजर अमर हे, ओला खतम करत हे कोन
मगर रोग हा मिट जाये कहि, मनखे सक भर करत प्रयास.
एकर ले नइ होय निराशा, जीवन जियत आस के साथ
दूध समुद्र होय नइ जग मं, तभो ले ओकर पर विश्वास.”
कई ठक तर्क गरीबा रख दिस, तभो वृद्ध मन फांक उड़ैन
ओंड़ा आत पेट हा भर गिस, हाथ अंचोय बर उदिम जमैन.
अन्न के नशा छपाइस तंहने, सोय चहत हें दुनों सियान
बोलत हवय गरीबा टुड़बुड़, पर एमन देवत नइ ध्यान.
सिरिफ गरीबा करत जागरण, ओकर मन मं चलत विचार-
“अब मंय हा मनमरजी करिहंव, भल दुसर बोलंय गद्दार.
सब के मान चलत आवत हंव, लेकिन मिलिस मात्र नुकसान
ओमन चहत गरीबा भागय, बेच के अपने माल मकान.’
मनसे जब निराश हो जाथय, या सब डहर ले दुख – बरसात
ओहर मन मं अनबन सोचत, क्रोध देखात – करत आक्रोश.
कतका बखत आंख हा लग गे, कहां गरीबा जानन पैस !
ओकर सुते आंख खुलथय जब, शासन सुरूज देव के अ‍ैस.
लेथय टोह वृद्ध मन कोती, उनकर छैंहा मिल नइ पैस
घर ला जांचिस जहां गरीबा, कतको जिनिस नदारत पैस.
घर ले निकल गरीबा खोजिस, दूनों वृद्ध ला नंगत दूर
लेकिन उंकर मिलिस नइ दउहा, आखिर विवश आत हे लौट.
तभे गुरुझंगलू हा मिल गिस, ओहर रख दिस एक सवाल-
“”तंय फिफियाय हवस का कारण – करत हवस तंय काकर खोज !
मनखे दुख ला कभु बलाय नइ, दुख आ जाथय तब परेशान
तोरो कोई जिनिस गंवा गिस, तभे दिखत अड़बड़ परेशान ?”
कथय गरीबा -“”तंय भांपे हस सोला आना ठौंका ।
ओकर कतका चर्चा छेड़न इहां रोज दिन घाटा ।।
मगर रात के घटना ला सुन, अ‍ैन हमर घर दू झन वृद्ध
उनकर नाम पुरानिक मंसा, कुष्ठ रोग के रिहिस मरीज.
ओमन अपन विचार ए राखिन – पुरबल जनम होय जे काम
ओकर फल ए जनम मं पावत, ईश्वर हा देवत हे दण्ड.
पर मंय उंकर बात फांके हंव – कुष्ठ रोग हा दैहिक रोग
खतम करे बर औषधि बन गिस, मोर वाक्य पर कर विश्वास.
पर डोकरा मन अड़बड़ अंड़ियल, कैची अस काटिन सब गोठ
मंय समझाय करे हंव कोशिश, मगर बोहा गिस जमों प्रयास.”
झंगलू हा समझाय बर कहिथय -“”एमां बुजरूक के नइ दोष
जे मान्यता पूर्व ले आवत, ओहर तुरूत खतम नइ होय.
भूत प्रेत जादू अउ टोना – एमन मात्र काल्पनिक चीज
यदि हम इंकर हकीकत कहिबो, हमर बात पर हंसिहंय लोग.
बैगा तोला टोनहा कहि दिस, मनखे मन कर लिन विश्वास
धन तो दुधे उहां पर पहुंचिस, वरना तंय खाते कंस मार.”
“”वाकई मं हम मुंह मं कहिथन – भूत प्रेत बिल्कुल नइ होय
खुद ला वैज्ञानिक बताय बर, रखथन एक से एक प्रमाण.
लेकिन मन मं स्वीकारत हन – जग मं होथय प्रेतिन प्रेत
तंत्र मंत्र जादू अउ टोना, इंकर शक्ति के रहत प्रभाव.”
एकर बाद गरीबा हेरिस, शुद्ध सोन के चूरा एक
ओहर झंगलू गुरुला बोलिस -“”मोर बात ला सुन रख ध्यान-
मोर ददा हा बचा के राखिस, इहिच सोन के चूरा एक
कतको कष्ट झपैस हमर पर, ओला नइ बेचिस कर टेक.
ददा किहिस के जब मंय मरिहंव, बेच देबे तंय चूरा मोर
श्रद्धा संग गत गंगा करबे, तोर उड़ाहय इज्जत – सोर.
पर चूरा ला तुमला देवत, ले दव पट्टी कलम किताब
ओला दीन छात्र ला बांटव, ओमन पढ़ लिख शिक्षित होय.
भूल करंव नइ खात खवई ला, कोन जाय अब तीरथ धाम
अइसी के तइसी मं जावय – जमों खटकरम गंगा धाम.”
अतका किहिस गरीबा हा अउ, अपन वचन ला तुरूत निभात
झंगलू ला चूरा ला देथय – नगदी दान होत महादान.
झंगलू किहिस -“”होत हे अक्सर – मनखे करत घोषणा बीस
सत्तर ठक आश्वासन देवत, मदद करे बर अस्वीकार.
पर तंय लबरा बादर नोहस, जेन बताय करे हस काम
दीन छात्र मन मदद ला अमरें, पढ़ लिख के बनिंहय गुणवान.”
झंगलू हा चूरा ला रख लिस, एकर बाद छोड़ दिस ठौर
अब ओ तन के कथा बतावत, जेतन होत काम हे और.
सब अतराप के मनखे मन हा, धनवा घर मं जेवन लेत
बपुरा मन हा सदा भुखर्रा, पर अभि पाय सुघर अक नेत.
पेट तनत ले झड़किन कोंहकोंह, हिनिन बाद मं धर के राग
बोकरा के जिव जाथय लेकिन – खबड़ू कथय अलोना साग.
सोचिन के जब सोनसाय हा, पर धन लूट बनिस धनवान
हम्मन बढ़िया पांत पाय हन, काबर छोड़न मूर्ख समान !
यथा सिन्धु के कुछ पानी ला, झटक के खुश हो जथय अकाश
इसने एमन थोरिक उरका, लेवत बपुरा सुख के सांस.
मुढ़ीपार के पुसऊ निवासी, बन्दबोड़ रमझू के गांव
सुन्तापुर के वृद्ध फकीरा, भण्डारा मं भोजन लीन.
पुसऊ हा दूनों झन ला बोलिस -“”धनवा करिस खर्च कंस आज
सब अतराप के नर नारी मन, ओकर घर मं जेवन लीन.
धनसहाय ला पुण्य हा मिलही, सबो डहर ले यश जयकार
सोनू के आत्मा नइ भटकय, ओहर करिहय स्वर्ग निवास.”
रमझू कथय -“”देख झन पर तन, तंय हा बता स्वयं के हाल
धरमिन के शादी रचेस तब, तंहू करे हस अड़बड़ खर्च.
खैन बराती पेट के फूटत, समधी सजन खैन पकवान
हम रहि गेन बाट ला जोहत, मिठई कलेवा कुछ नइ पाय.”
पुसऊ हा मुसका दीस ठोलना -“”जब धनसाय निमंत्रण दीस
तंय भण्डारा मं उड़ाय कंस, मगर अभी तक खाली पेट.
ठीक हे भई, अभी बचे निमंत्रण, तंय हा पहुंच गांव मुढ़ीपार
तोला उंहचे खूब खवाहंव – करी के लड़ुवा – पप्ची – खीर.”
तभे फकीरा प्रश्न फेंक दिस -“” तंय हा बता एक ठन बात
छुईखदान गीस धरमिन हा, जेन आय ओकर ससुराल.
धरमिन अ‍ैस तोर घर मं कभु, या मइके के भूलिस याद
ओहर सुखी या कुछ दुख पावत, बता अपन पुत्री के हाल ?”
किहिस पुसऊ हा मुँह चोंई कर-“” तंय पूछे हस कठिन सवाल
साफ व्यथा मंय कहां ले बोलंव, मंय खुद नइ जानत हंव साफ.
छुईखदान ले धरमिन आइस, झुखे रिहिस हे ओकर देह
जउन हा पहिली हंस हंस चहकय, पर ए बखत बहुत गंभीर.
बेटी ला मंय पूछेंव वाजिब -“”धरमिन, तंय कोंदी अस कार
तोर स्वास्थय हा घलो गिरे अस, यदि तकलीफ बता सच खोल ?”
धरमिन किहिस -“”ददा गा तंय सुन, गलत विचार भूल झन सोच
मइके के जब याद हा आवय, तब सुरता करके मंय रोंव.”
“”कइसे हें तोर सार ससुर मन, हंस बोलिन या करुजबान
ओमन तोला तपे भुंजे यदि, फोर मोर तिर सत्य बयान ?”
मंय हा जब पूछेंव धरमिन ला, तब बोलिस थोरिक मुसकात-
“”सास ससुर मन देवी देवता, सदा करिन सुख के बरसात.
यदि मंय बुता करे बर सोचंव – ओमन छेंकय आगू ।
अपन सामने मं बइठा के खूब खवांय सोंहारी ।।
“”नोनी, तंय अभि जउन कहत हस, ओकर ले कई शंका होत
जब तंय सब प्रकार सुख पावत, एकोकन नइ सहत अभाव.
तब काबर करिया लुवाठ अस, कांटा असन सूखगे देह
तोला का अजार सपड़े हे, वाजिब बात मोर तिर बोल ?”
धरमिन बोलिस -“”ददा मोर सुन, शंका के तरिया झन डूब
मोला संउपे हस धनपति घर, फेर कहां मिलिहय तकलीफ !
मंय जब रेहेंव अपन मइके मं, तब तंय हा भुखमरा गरीब
खाये पिये बर कमती होवय, हुकुर हुकुर मंय भोगंव भूख.
पर ससुराल अचक पूंजीपति, उहां भराय खाय के चीज
मंय हदरही खूब खाए हंव, एक दिवस मं कई कई बार.
आखिर मं नुकसान बता दिस, मोला धर लिस अपच अजार
एकर कारण सुखा गेंव मंय, समझगे होबे तंय सच बात !”
धरमिन हा अतका अस बोलिस, एकर बाद रोय धर लीस
ओकर बहत छलाछल आंसू , कलकल बहिथय नदी के धार.”
रमझू हा अचरज भर पूछिस -“”तंय हा करत बात दू रूप
एक डहर धरमिन सुख पावत, पर तन रोवत आंसू ढार.
आखिर धरमिन हा सुख पावत, या झेलत हे कष्ट अपार
एकर उत्तर साफ बता तंय, ताकि जमों शंका मिट जाय ?”
पुसऊ किहिस -“”शंका उठात हस – मंय तक अचरज मं पर गेंव
धरमिन तिर मंय प्रश्न रखेंव कई, पर ओहर नइ दीस जुवाप.”
किहिस फकीरा -“”पुसऊ आज सुन – मंय बतात हंव जग के गोठ-
मनसे तिर छोटे दुख होथय, ओहर राज खोलथय चौक.
मगर असह्य कष्ट हा आथय, या इज्जत लग जाथय दांव
तब मनुष्य सब भेद लुकाथय, साफ कहय नइ ककरो पास.
यदि धरमिन नंगत दुख पावत, लुका के रख लेथय सब हाल
तब तंय वाजिब तथ्य पता कर, अपन हृदय के शंका मेट.”
पुसऊ किहिस -“”तंय ठीक कहत हस – मंय करलेंव गलत या नेक
धरमिन के शादी रचाय हंव, एकोकन नइ पर के हाथ.
ओहर अब ससुराल मं रहिहय, दुख ला पाय या सुख उपभोग
अगर मोर तिर बिपत बताहय, पर मंय कहां ले करहूँ दूर !
धरमिन हा ससुरार मं अभि हे, मंय हा जाहंव छुईखदान
ओकर बारे पता लगाहंव, आखिर ओकर का हे हाल ?”
अपन गांव तन पुसऊ लहुट गिस, बढ़िन फकीरा समझू शीघ्र
गीन फकीरा के घर तिर मं, करिस फकीरा हा ए गोठ –
“”बन्दबोड़ हा हवय पास मं, काबर करत तड़तड़ी जाय
तंय थोरिक क्षण बिलम मोर कर, कुछ सवाल के लान जुवाप.
एकर पहिली रहत रेहे हस, राजिम नाम तीर्थ स्थान
पर अब ओला छोड़ डरे हस, इही क्षेत्र मं करत निवास
स्वर्ग नर्क के कथा ला जानत, कर्मकाण्ड के जानत पोल
कतका लूट तीर्थ मं होथय, सब के भेद बता तंय खोल ?”
“”स्वर्ग नर्क के झूठ ला रच के, जग ला लूटत कर व्यापार
पाखण्डी के नीच कर्म पर – दूसर ला बांटत उपदेश.
होत तीर्थ मं लूट भयंकर, कर्म निष्ठ करथंय खुद पाप
स्वर्ग धर्म यदि तीर्थ बिरजतिस, काबर आतेंव ए अतराप !”
एकर बाद फकीरा रमझू, दूनों घर के अंदर अ‍ैन
उहां रिहिस ढेरा अउ पटुवा, ओमां गिस रमझू के आंख.
किहिस फकीरा ला रमझू हा -“”ढेरा पटुवा हे घर तोर
मोर इहां हे गाय एक ठक, पर “गेंरवा’ के बहुत अभाव.
तंय गेंरवा बनाय बर जानत, डोरी बटे – कला के ज्ञान
एक गेंरवा बना मोर बर, अपन कला के कर विस्तार.”
मुसका मुचमुच कथय फकीरा -“”तंय लालची बहुत हुसियार
धनवा के घर देखेस जेवन, उहां खाय ओंड़ा के आत.
ढेरा पटुवा पाय मोर घर, तब “गेंरवा’ बनाय कहि देस
ठीक हे भई “गेंरवा’ बनात हंव, तोर बात के होवत मान.”
धरिस फकीरा हा ढेरा ला, पटुवा गुच्छ ला दाबिस कांख
गुच्छा ले पटुवा ला हेरिस, ढेरा मं फांसिस तत्काल.
ढेरा ला घुमात ताकत कर, डोरी के होवत निर्माण
करत फकीरा हा कंस मिहनत, साफ दिखत छाती के पांत.
कड़कड़ आंट चढ़िस डोरी मं, फेर पूर के “भांज’ चढ़ैस
बाद कंसाकस फांसा मारिस, डोरी तिन भंजन बन गीस.
नरियर बूच मं सोंट साफ कर, गेंरवा बांधिस मुड़ी ला बांध
जउन काम के उदिम उचाइस, आखिर देखा दीस कर पूर्ण.
दीस फकीरा हा रमझू ला, अदक नवा गेंरवा बस एक
कहिथय -“”श्रम मं देह पिराथय, पर वास्तव मं मिलथय लाभ.
धनवा के घर खूब खाय हंव, एकर कारण असमस पेट
पर मिहनत मंय हंफर करे हंव, हल्का असन पोचक गे पेट.”
रमझू कथय -“”मिहनती हस तंय, वृद्ध होय जस बर के पेड़
पर तंय कभू व्यर्थ बइठस नइ, तभे ठोस हे अब तक देह.
जे मनसे मिहनत ले भगथय, रहन सकय नइ कभू निरोग
अनबन रोग मं फदके रहिथय, आखिर मरत बिपत ला भोग.”
रमझू पूछिस -“”बता भला तंय – तंय हा करबे बइठ अराम
या कोई अउ काम बचे हे, तेला भिड़के करबे पूर्ण.”
कथय फकीरा -“”जलगस जीवन, तलगस मिहनत सक भर काम
हमर इहां हे मोट्ठा लकड़ी, पर बारे बर मुश्किल होत.
ओमन ला मंय पतला चिरहूँ, ताकि होय बारे के लैक
लकड़ी सिपच के बरही भरभर, बारत तेन कष्ट झन पाय.”
“”तंय हा अब लकड़ी ला चिर भिड़, मंय हा जावत खुद के गांव”
अइसे बोल निकल गिस रमझू, करत फकीरा भिड़ के काम.
लकड़ी चीरत हवय फकीरा धर के घन अउ टांचा ।
साथ मं टंगिया छिनी मदद बर ताकि रुकय झन बूता ।।
लकड़ी ला लकड़ी पर रखथय, टंगिया मार बनैस सुराख
छिनी घुसा के – लगा निशाना, ओकर पर घन मारत ठोस.
लकड़ी कतका एेंठ बतावय, फर फर फटत लगत बर्रास
पात फकीरा के काम सफलता, ओकर मन उमंग उत्साह.
निपटा काम फकीरा बइठिस, पटका मं पोंछत श्रम बूंद
दुनों हथेली भर फोरा हे, तेला देखत टकटक आंख.
ओकर पुत्र सनम हा पहुंचिस, जउन बुड़े हे दुख के ताल
ओकर डहर हथेली रखथय, ताकि देख ले फट ले साफ.
कथय फकीरा -“”देख हथेली, फोरा उपके हे कई ठोक
चंगचिंग दरद हाथ भर घुमरत, मिहनत के तंय देथ कमाल !”
सनम निकालिस गोठ टेचरही -“”तोर हाथ फोरा पर जाय
मिहनत मं चुर चुर थक जावस, या फिर दरद मं कल्हरत जास.
तोर प्रशंसा कभू करंव नइ, तंय हा भोग खूब तकलीफ
तंय हा जइसे कर्म करे हस, फल ला चीख उही अनुसार.”
परिस फकीरा हा अचरझ मं -“”तंय हा विकृति कहां ले लाय
तोर दिमाग गरम हे काबर – बिन छल कपट तंय फुरिया साफ
“”सोनसाय हा बना के राखिस, अपन पुत्र बर धन बेशुमार
तब तो धनवा हा सब झन ला, देइस नेवता झारझार.
धनवा कतको खर्चा करही, मिलिहय तभो दूध घी भात
पर तंय पूंजी नइ जोड़े हस, मारत हे अभाव हा लात.
चरचर परत हाथ भर फोरा, तभे पेट मं अन्न बोजात
करे हवस तंय हा चण्डाली, ओकर दुख हम भोगत आज.”
गोठिया सनम हा मुंह ओथरा लिस, दांत काट फेंकत नाखून
वृद्ध फकीरा थथमरात अब, मानों – ओकर उसलत खाट.
जीवन भर सिद्धान्त बनाइस, एक घरी मं होवत नाश
जइसे बंधिया फूट जथय तंह, जमों नीर हा बोहा खलास.
कथय फकीरा -“”तंय भोजन कर – हेर बड़े टाठी भर भात
पेट जहां पोटपिट ले होवय, तब फिर बाद हाथ कर साफ.”
डोकरा के अंटियहा गोठ सुन, सनम भड़क गे कर के रोष-
“”धनवा घर के नेवता मं मंय, हाही बुतत ले लेंव दमोर.
ओंड़ा तक ले अन्न बोजाये, कइसे सहय पेट अउ भार
तंय हा अटपट काबर बोलत – जब कि हवस बुजरूक हुसियार ?”
जइसे मारे जथय दंतारी, कोरलग असन पाग ला देख
काबर चूक फकीरा जावय, जब सपड़ाय सुघर अक टेम.
कथय फकीरा -“”तंय हा जइसे, सक बाहिर अनाज नइ खास
उसने मंय जरूरत ले बाहिर, धन नइ रखेंव स्वयं के पास.
पर के बांटा के अनाज ला, तंय खाये बर कनुवा गेस
मंय हा स्वयं के स्वार्थ पूर्ति बर, करन पाय नइ पर के घात.
सोनसाय – सुद्धू अउ मंय हा, एक गांव के अन इन्सान
सुद्धू – मोर राह एके ठन, पर सोनू मचैस कंस लूट.
बर के पेड़ – चरोटा अउ अन, जाम खड़ा होथंय संग एक
लेकिन बर हा शोषक होथय, पर के वृद्धि करत हे छेंक.
मात्र अपन उन्नति बर करथय – पाट के भाई के नुकसान
रस अउ जगह झटक के होथय, कई काबा के रूख बड़े जान.
इसने पर के हक ला झींकिस, सोनसाय हा सकलिस माल
हम सब ला अपने माने हन, निछन पाय नइ ककरो खाल.”
रखिस फकीरा हा सुतर्क तंह, सनम के शंका सब मिट गीस
निंदई करे ले खेत हा सुधरत, बन दूबी के घुसरत टेस.
सनम हा उठ नांगर सम्हरावत, करना हे ओलहा के काम
दूसर दिन हा आय चहत तंह, सनम छोड़ दिस करे अराम.
कथरी ओढ़ कोन अब सोवय, मुंह झुलझुल पर पछल गे रात
सुकुवा ऊग ठाड़ होगे अउ, कुकरा कुकरूँग कूं चिल्लात.
गांव गंवई के घड़ी इही मन, बता सकत के समय कतेक !
सरका काम कभू नइ मांगय – हमर मंजूरी देव अतेक.
खटिया छोड़ कृषक मन उठगें, आय टेम ओलहा निपटाय
आंख धोवई ला घलो छोड़ के, धन ला देवत पयरा खाय.
“”मंय बासी ला कभू खांव नइ, कहां तात ला सकत अगोर !
अगर नंगरही टेम मं बिलमत, खरथरिहा कहिहंय – कमचोर.”
बइला मन के पेट हा भरगे, तंहने सनम होत तैयार
जोंता नांगर लउड़ी गांकर, तुमड़ी भर जल धर लिस साथ.
ककरो ले झन पिछुवा जावय, तइसे बढ़त रबारब पैर
धन मन मार कदम्मा दउड़त, भर्री पहुंच के ठहरन पैन.
कांसी बन दूबी बउछाए, हल नइ रेंगत धर के रास
आखिर “राउत’ मड़ा के रेंगत, तब धरती मं धंसथय नास.
कोरलगहा धर चलत सनम हा, पर पठले भुंइया अंड़ जात
हल के मुठिया जमा के दाबत, ढेला मन ऊपर आ जात.
बइला मन हा खंइचत नांगर, उंकरो लोढ़िया – भरगे पांव
तब ले कोंघर के काम बजावत, हारत कहां काम के दांव !
गांकर ला अब उड़ा सनम हा मारत दूसर हरिया ।
नंगत ताकत ला खावत – तब निकलत माटी करिया ।।
देवत देह पछीना कारी, नस मन चरचर दर्शन देत
मुंह चोपियात पियास जनावत, यद्यपि जल ला रूक रूक लेत.
करत क्वांर के घाम बदरहा, होत सनम के चकचिक आंख
पेट पोचक के अंदर चल दिस, मुंह झोइला जस करिया राख.
पाठक मन ले एक निवेदन – तुमन सनम पर दया देखाव
बपुरा कतका देह हा टोरय, अब तो नांगर ला ढिलवाव.
नास लुका के ढेला अंदर, सनम हा वापिस होत मकान
तिही बीच डकहर हा आथय, रोक लीस फट सनम के पांव.
कहिथय -“”जइसे तोर माल मन, काम करे बर बहुत सजोर
उसने बने सपुतहा धन ला, लान लेंव मंय घर मं मोर.
बुतकू ऊपर अ‍ैस बेवस्ता, ओला नाप देंव मंय कर्ज
लेकिन ओहर पटा सकिस नइ, बढ़त चलिस ऋण ब्याज के रोग.
ऋण के बल्दा मं बिसाय हंव, बुतकू के बइला ला आज
अब तो निश्चय सिद्ध तोर अस, बचे हवय जे ओलहा काज.”
डकहर बड़नउकी ला मारत, खुद ला सिद्ध करत हे ऊंच
ओतका तक मं तुष्टि मिलिस नइ , तब अब करत अपन तारीफ –
“”अपन कथा ला मंय बतात हंव, यद्यपि तंय जानत सब भेद
ईश्वर छाहित हवय मोर पर, तब मंय बढ़ेंव बिपत ला छेद –
एकर पूर्व तोर अस कंगला, बिन पूंजी के रेहेंव गरीब
सप सप भूख पेट हा झेलय, स्वादिल जिनिस चिखय नइ जीब.
घर कुरिया तक बिक गिस तंहने, मंय बम्बई कमाय चल देंव
चुहा पसीना मिहनत करके – अड़बड़ अक धन ला सकलेंव.
अब मंय वापिस गांव मं आके, बने चलावत हवंव दुकान
मोला कष्ट दीस तेकर ले, मंय प्रतिशोध लेत हंव तान.”
अतका कहि के डकहर सल्टिस, सनम अपन घर सरसर जात
थोरिक मं बुतकू हा मिलथय, जेकर मुंह दुख के बरसात.
बुतकू रोथय -“”का बतांव मंय, डकहर छीन लेग गे जान
जउन माल मन मोर जिन्दगी, ओमन होगिन आज बिरान.
दूनों धन मन कुबल सपुतहा, लखिया – धंवरा उनकर रंग
लइका मन फोड़ी बदथंय तस, चारा चरंय दुनों मिल साथ.
उनकर पूंछ लाम पतरेंगा, सरग पतालिया मोहक सींग
उनकर मुंह हा लमचोचका नइ, कमई मं ताफड़ टींगे टींग.
ओमन ला वन मं चराय बर, एक दिवस मंय धर के गेंव
एक शेर हा आइस तंहने, मंय हा डर मं चुप छुप गेंव.
बइला मन ला देख शेर हा, पहुंच गीस खब उंकर समीप
देख शेर ला बइला मन हा, आगू बढ़िन खिंचे बर जीब.
आंख बरनिया – पांव ला खुरचत, क्रोध मं भर फर्रेटिन जोर
शेर सुकुड़दुम हो के खसकिस, तब बच पाइस जीवन मोर.
दूनों बइला मन फुरमानुक, काम करे बर त्यागंय ढेर
बिगर मुंहू के रिहिन जानवर, चलन पियारुकाम बजांय.
तेन कमइया ला डकहर हा, लउठिच लउठी झड़किस तान
धन मन सींग हला के रहिगें, पर नइ छोड़िन मोर मकान.
हकिया के डकहर हा बोलिस -“”जब्दा हवय तोर ए माल
करत डायली – खुर ला रोपत, अपन माल ला तिंही निकाल.”
मोरेच सम्मुख मोर प्राण के, डकहर करिस हइन्ता खूब
पर मंय कहां देव कुछ उत्तर, यद्यपि क्रोध हा कंस उफनैस.
दुनों कमइया मन हा मोला, चांटे लग गिन जीब निकाल
ओतका बखत आत्मा कलपिस, मोर शरीर करा अस सून.
धरती माता हा फटतिस ते धंसतेंव तन के सुद्धा ।
अइसन क्रूर समय नइ आतिस – कहां ले दुख के हुद्दा ।।
जब बइला मन हा नइ निकलिन, तब डकहर हा करिस उपाय
बइला मन ला मोठ डोर मं, एकदम कंस के बंधवा लीस.
गाड़ा ऊपर लाश असन रख, धन ला लेगिस डकहर क्रूर
का करतिन बपुरा मूक पशु मन, बन मजबूर – बिगर मन गीन.
जब ले धन मन घर ला त्यागिन, खांव खांव घर कुरिया होत
अन महराज सुहावत नइये, आत्मा रोवत बिगर अवाज.”
चेत लगा के सनम हा सुनिसे, कहिथय -“”कृषक के जीवन बैल
यदि एमन हा हाथ ले निकलत, गिरत कृषक पर दुख के शैल.
डकहर के कुछ कहां ओसला, पहिली रिहिस बहुत कंगाल
लेकिन बम्बई पहुंच के जोड़िस, देखे तक नइ ततका माल.
जतका बिपत अपन हा भोगिस, अब पर ला देवत हे कष्ट
डकहर हा आनंदित होथय, जब दूसर हा होथय नष्ट.
एमां हे मनुष्य के गलती, मगर साथ मं धन के खेल
जेकर पर लक्ष्मी हा छाहित, ओहर देथय पर ला एल.
डकहर कथय -“”जोड़ के धन ला, मंय हा करे बड़े जक क्रांति
लेकिन ओकर तर्क निरर्थक, ओकर सोच भरे हे भ्रांति.
एक दीन हा अगर बाद मं, रूपिया जोड़ बनत धनवान
अइसन कथा एक के होथय, सर मं सती करत उत्थान.
पर समाज मं बचत अउर जन, इनकर जीवन पद्धति हीन
ऊपर के सिद्धान्त तेन हा, इनकर बर बिल्कुल बेकार.
हम हा अइसन चहत व्यवस्था – सब पावंय सम हक कर्तव्य
घृणित होय झन एको मनसे, एक पाय मत मान विशिष्ट.”
चर्चा उरक गीस तंह बुतकू हा चल दिस निज छैंहा ।
उहां दुनों बइला मन हाजिर – मुड़ी निहू कर ठाढ़े ।।
बुतकू हा धन मन पर भड़किस -“”तुम्मन इहां कार आ गेव
स्वामी तुम्हर आय डकहर हा, ओकर घर रहि काम बजाव.
तुम दूनों कोढ़िया डायल हव, मोला अब बनात बइमान
काबर आय – इहां ले भागव, वरना पीट के लेहंव प्राण.
तुम्हर चाल मं परे हे कीरा, काम के डर मं आएव भाग
कइसे रेंगव ऊंच नाक कर, तुम्हर कर्म ले आवत लाज.”
बुतकू हा धन मन पर भड़किस, रूखा स्वर ले करिस प्रहार
मगर उंकर पर प्रेम रिहिस हे, तब दुख मानिस थोरिक बाद.
बइला मन के पीठ ला सारिस, दीस खाय बर पैरा – घास
कहिथय -“”मोर बात ला मानो – मोला झन बनाव बइमान.
तुम्मन अतिथि असन आये हव, तब पेटभरहा खा-पी लेव
पर डकहर के घर फिर लहुटव, करव अंत कर उंहे निवास.”
ओतकी मं डकहर हा दंत गिस, गांव के पंच ला धर के साथ
चोवा नथुवा केजा फेंकन, सुखी साथ मं कई ग्रामीण.
फेंकन हा बुतकू ला बोलिस “”तोर माल मन धोखाबाज
ए दूनों धन ला डकहर हा, रखे रिहिस हे कड़ कड़ बांध .
लेकिन एमन अ‍ैन तोर घर, होय स्वतंत्र टोर के छांद
तहूं हा उंकरे पीठ ला सारत, देत खाय बर कांदी – घास.
एकर अर्थ साफ ए झलकत – एमां हवय तोर बस चाल
बइला मन हा भगा के आगिन, एकर बर हे खुशी अपार.”
भड़किस सुखी -“”माल मन ला जब, बेच देस डकहर के पास
यदि ईमान तोर तिर रहितिस, हिले लगातेस धर के नाथ.
डकहर बइला ला ढूंढत हे, धर के पसिया ला हर ओर
तंय हा खुद धन ला अमराते, तोर सब डहर उड़तिस सोर.”
बुतकू किहिस -“”माल मन आ गिन, तेकर मोला कुछ नइ ज्ञान
इनकर गलत कर्म ले होवत, मोला निहू पदी के भान.
जे उपाय मं एमन जावंय, धर के जाव मरे बिन सोग
यदि मंय बाधा बनत आड़बन, बोंग देव तुम मोर शरीर.”
डकहर किहिस -“”बहुत साऊ हस, हवय तोर दिल चकचक साफ
हम फोकट लगाय हन लांछन, हमर कुजानिक ला कर माफ.”
व्यंग्य शब्द ला सुन के बुतकू, खूब कलबला – लउठी लीस
बइला मन ला कुचर ढकेलत, घर के बाहिर दीस खेदार.
पर धन मन प्रतिशोध लीन नइ, चल दिन डकहर संग चुपचाप
अब बुतकू हा मुड़ धर बइठिस – मानों स्वयं करे महापाप.
आत कमइया मन के सुरता, ब्यापत दुख हराय हे चेत
जे तिर धन के गिरे हे आंसू , एकर आंस गिरिस उहेंच.
हवलदार – केंवरी अउ बहुरा, शहर ले वापिस अ‍ैन हताश
भाई – भौजी अउ महतारी, बुतकू के लागमानी आंय.
हवलदार घर फूल नइ फूलत, याने ओ हे बिन संतान
दउड़त हवय चिकित्सक तिर मं, केंवरी संग मं जांच करात.
बुतकू पूछिस -“”कहि सब स्थिति, तुमन सफलता कतका पाय
जउन चिकित्सक तिर दउड़त हव, ओहर का आश्वासन दीस ?”
हवलदार बोलिस खुजात मुड़ -“”भइगे तंय हालत झन पूछ
रूपिया भर बोहात पूरा अस, पर मृगतृष्णा अस हे आस.
हमर चिकित्सक अनुभवी हावय, जांच करत अउ देत सलाह
मगर लाभ – फल हाथ आत नइ, अब हम होवत हवन हताश.”
केंवरी किहिस -“”रोक देवत हन, अउ कहूं डहर देखाय – सुनाय
जब नइ पुत्र हमर किस्मत मं, व्यर्थ दिखत हे करई प्रयास.”
बहुरा कहिथय आस बढ़ाके, “”तुम सब भले पश्त हो जाव
पर अब तक मंय करत भरोसा – रहिहंव नाती के मुंह देख.
मानव हार जथय सब तन ले, होत बंद हर आस – कपाट
आखिर देव के शरण गिरथय, तब पावत इच्छित फल मीठ.”
केंवरी ला बहुरा उम्हियावत -“”ककरो इहां “जंवारा’ बोय
तब तंय ओकर रखबे सुरता, उही बखत हम देव मनाब.
नीर रूतोबे तंय जमीन पर, चिखला पर सुतबे रख – पेट
करबे देव के स्तुति मन भर, तंहने मोर मनोरथ पूर्ण.”
बुतकू अब तक हवय कलेचुप, पर अब धीरन बात लमात –
“”अगर मनोरथ पूर्ण हो जातिस, रोतिस कार कल्हर इंसान ?
खूब बेवस्ता आय हमर पर – ओला काट सकत हे कोन
सुख – प्रकाश ला भिड़ के खोजत, पर अमरावत दुख – अंधियार.”
बुतकू फोर बता दिस सब तिर, एकर पूर्व घटिस जे दृष्य
सुन के सब झन दुख ला मानत, कोइला अस मुंह हा करियात.
जग के कथा हवय अनलेखे, ओकर ले दुख – कथा अपार
अब हड़ताल करत नौकर मन, नइ जावत धनवा के द्वार.
हगरुकातिक टहलू पोखन, एक जगह मं करत विचार
फूलबती – बोधनी अउ बउदा, यने जमों नौकर हें साथ.
कातिक कहिथय -“”सब जानत हव – मंय हा तिजऊ के अंव औलाद
धनवा मन के काम ला करके, मोर बाप गिस मरघट घाट.
अब मंय धनवा के नौकर अंव, यहू तथ्य तुमला हे ज्ञात
याने पीढ़ी दर पीढ़ी हम, धनवा के पूजत हन लात.
लेकिन उन्नति हमर होत नइ, दिन दिन भटत – होत बर्बाद
हमर बेवस्ता हा पहिलिच अस, कब तक चलन गरीबी लाद ?”
टहलू कथय -“”मोर ला सुन लव, धनवा – हमर मं अड़बड़ फर्क
ओहर स्वर्ग – राज ला भोगत, अउ हम भोगत दुख के नर्क.
धनवा रहिथय महल अटारी, हमर पास बस फुटे मकान
धनवा खाथय खीर सोंहारी, हम हा पेज घलो नई पान.”
बउदा कथय -“”जमों मिल हेरव अइसन सुघर तरीका ।
होय भविष्य उजागर – हालत हा झन होवय फीका ।।
धनवा हा बढ़ाय मजदूरी, ताकि निफिक्र अन्न हम खान
कपड़ा पहिरे बर झन तरसन, होय हमर बर बसे मकान.
अगर मांग ला धनवा मानत, काम बजाबो उठा कुदाल
यदि इंकार करत धनवा हा, हम नइ खतम करन हड़ताल.
जे प्रस्ताव अभी भाखे हन, ओकर परिणति होवय काम
मुंह के थूंक मं बरा चुरय नइ – ना रेमट मं मीठ गुराम.”
होत संगठित जमों श्रमिक मन, इनकर गोठ सुखी सुन लीस
ओहर हंफरत धनवा तिर गिस, जतका बात सुना दिस साफ.
कहिथय -“”कते जगत मं रहिथस, मोर डहर दे थोरिक कान –
चिखला माटी संग जे लड़थय, उही असल मं आय किसान.
जतका अस कमाय के ताकत, ओतका धरती ओकर आय
जेकर तिर सक – बाहिर धरती, देश के दुश्मन ओहर आय.
मेड़ मं बइठ कराथय खेती, कुब्बल अक धर के बनिहार
ओहर ना किसान – ना पोषक, वास्तव मं शोषक गद्दार.”
अतका बोल सुखी अउ बोलिस -“”मंय बताय हंव ऊपर जेन
ओला तोर भृत्य मन बोलत, कृषक के परिभाषा ओरियात.
अपन मांग ला झटके खातिर, नौकर तोर करत हड़ताल
उनकर धुमड़ा ला खेदे बर, बने सोच के राह निकाल.”
धनवा हंसिस -“”मौत जब आथय, छानी पर कुक्कर चढ़ जात
नौकर इतरावत तिनकर पर, मंय करिहंव बम के बरसात.
छेरकू मंत्री तिर पठोय हंव, इहां आय बर खबर अनेक
मोर समस्या उही खेदिहय, उही एक झन रक्षक मोर.
जब छेरकू चुनाव ला लड़थय, धर पसिया मंय करत प्रचार
ओकर सिरी गिरय झन कहि के, अपन पुंजी तक करथंव ख्बार.
एन बखत मंय मदद ला देथंव, तब छेरकू पर हे विश्वास
मोर बनउकी उहू बनाहय, होन देय नइ कभू निराश. ”
मेचका हा बरसा सोरियाथय, धनवा हा छेरकू के याद
वास्तव मं छेरकू आ धमकिस, मरत धानबर बरसा – खाद.
छेरकू किहिस – “”हताश होव झन, काबर फिकर मं तंय बिपताय !
तोर बिपत के टंटा टुटिहय, झख मारे बर मंय नइ आय.
अगर तोर खमिहा हा उखनत, बोहा जहंव मंय धारो धार
जइसे नास बिना नांगर हा, धथुवा बइठ जथय मन मार.”
छेरकू हा फिर सुखी ला नेमिस -“” जमों श्रमिक ला धर के लान
ओमन ला अइसे झुझकाबे – अब नइ खावव दुख के बाण.
छेरकू चाहत तुम्हर दर्शन, आय कठिन मं समय निकाल
जतका दुख पीरा सब खोलव, छेरकू लेहय बिपत सम्हाल.
तुम्हर भविष्य बनाये खातिर, शासन हा निकाल दिस राह
अइसन जिनिस ला फोकट बांटत, जेमां तुम पाहव सुख – छांय.”
पोखन केजा बउदा हगरु, झड़ी भुखू डकहर मन अ‍ैन
टहलू कातिक साथ बोधनी, फूलबती तक संग मं अ‍ैस.
गल मं गुंथे गेंगरूवा रवाथय, तब मछरी के जीवन नाश
नौंकर संग ग्रामीण पहुंच गिन, छेरकू अउ धनवा के पास.
छेरकू किहिस – “”गोहार ला सुन लव, आय हवंव जे करे हियाव
धर्म के काम कराय चहत मंय, छेंक देव यदि कुछ अन्याय.
मंय हा धनवा ला गोहरावत – तंय हा बनवा मंदिर एक
यदि भगवान ला पधरावत हस, धरमी कहिहंय – काम हे नेक.
जिंहा रहय नइ मंदिर देवा, मरघट असन लगत हे गांव
नंदा जथय लक्ष्मी इमान हा, धुंकी बंड़ोेरा करथय रवांव.
ईश्वर – पूजा जिंहा होत नित, लाहो नइ ले मरी मसान
पुछी उठा – सब विघ्न भगाथय, काबर के छाहित भगवान.”
धनवा कथय -“”कसम बइठक के, तुम्हर गोठ नइ सकंव उदेल
धर्म – काम मं सब तियार तब, जाहंव कहां एक झन पेल !
शासन खुशियाली के होवय, हमर गांव बाढ़य दिन रात
दुख ला हरंय देवता धामी, ओमन कभु झन छोड़य साथ.”
केजा हा धनवा ला बोलिस -“”करत हवस जब नेकी ।
तब काबर पुच पुच करथस – कूटत शंका के ढेंकी ।।
देबो मदद अपन ताकत भर, हमरो सुधर जाय परलोक
धर्म के झण्डा ला उचाय हस, बरगलांय तब ले झन रोक.”
छेरकू समय अमर के बोलिस -“”मगर समस्या आवत एक
धनवा के नौकर मन कर दिन, मजदूरी बढ़ाय बर टेक.
जब ओमन मिहनत ले भगिहंय, उठे काम मं परिहय आड़
जइसे सनसन बढ़त धान ला, चरपट करत हे गंगई कीट.
अगर श्रमिक के मांग ला मानत, ओमन सब धन लेहंय लूट
तब धनवा हा कहां ले करही, मंदिर ला बनाय बर खर्च ?
एकर बर तुम राह निकालव – पूर्ण होय ईश्वर के काम
कष्ट प्राकृतिक कभू आय झन, होय सुरक्षित गांव तुम्हार. ”
भुखू जउन धनवा के कोतल, समझगे छेरकू के छल छिद्र
कथय “”सुनव धनवा के नौकर, काबर तुम फुलोय हव गाल !
धनवा के तुम पांव छुएव तब, अपन मांग नइ राखेव कार
मगर काम के गाड़ा रूकगे, थोथना ला ओरमात दड़ांग !
मन के अंदर सत्य सोच लव, करिहव झन पाछू बदनाम
देव – काम मं विध्न करत हव, चुमुक ले बुत जाहय सब नाम. ”
“”ईश्वर हा बनाय हे जग ला, जानत सबके हृदय के बात
ओहर रखे तभे फूलत हन, तोप रखे सबके मरजाद.”
अतका बोल कथय अउ फेंकन -“”तुम बइठे हव तज के काम
एकर तुमला दुष्फल मिलिहय, दैविक सजा हे ओकर नाम.”
“”ईश्वर से झन द्रोह करव तुम, वरना मिलिहय दुष्परिणाम
तुम्हर पिला पर पाप उतरिहय, चुहक पाव नइ सुख के आम.”
झड़ी के बात सुनिन नौकर – डर मं कांपत जस पाना ।
मुड़ ला निहरा दुबक के मानों चहत जान हा जाना ।।
हंफरत हें – मुंह गोठ ढिलत नइ, उंकर करत नइ अक्कल काट
ईश्वर ला मनाय नौकर मन, बदना बदत हवंय प्रण ठान.
फूलबती हा कांप के कहिथय – “”हम जावत हन बारा बाट
हे प्रभु, हमला तिंही बचा अब, हमर कुजानिक ला कर माफ.”
हगरू कथय- “”कराहंव पूजा, भले खर्च लग जावय तान
एकर ले मन शांति पा जाहय, जमों कष्ट के बिन्द्राबिनास”
कातिक हा प्रण ठान के बोलिस- “”मंय कर लेंव भयंकर पाप
एकर प्रायश्चित ला करहूं, मंय खुद ला देहंव तकलीफ.
“सोला सम्मारी’ जे होथय, निश्चय रहिहंव उही उपास
एकर ले सब कष्ट नंदाहय, धनवा तक कर देही माफ.”
टहलू कथय- “”जंवारा बोहंव, भले खर्च मं घर बिक जाय
मोर खेत हा हाथ ले निकलय, पर संकल्प हा खत्तम पूर्ण.
तहां बाद मं देवता छाहित, घर खेती आ जाहय लौट
ईश्वर पहिली लेत परीक्षा, तंहने देवत सुख आनंद.”
कथय बोधनी हा टहलु ला- “”मंय हा तोर छांय अस आंव
तंय हा धार्मिक काम उचाबे, मंय बनहूं सहभागी तोर.
तंय हा जभे “जंवारा’ बोबे, ठंडा करे के जभ्भे टेम
“जोत जंवारा’ ला मुड़ पर रख, हलू चलत मंय जाहंव ताल.”
पोखन घलो अपन ला फोरिस- “” मंहू दुहूं सब झन ला साथ
लोहा के जे होत खड़ौवा, ओकर पर चढ़ चलिहंव चाल.
लोहा के खीला मन चुभहीं, दर्द भयंकर-बहही खून
लेकिन मंय चिंता ले दुरिहा, आगू बर बढ़ जाहय पांव.
दैविक कारज मं ए होथय- पहिली तुमन परीक्षा देव
तंहने देव प्रसन्न हो जाथय-तब फिर मिलत सुखद परिणाम.”
डकहर पैस टेम सुघ्घर अक, नौकर मन ला करिस सचेत-
“”तुम्मन सरल ह्रदय के मनखे, अपन काम पर रखत इमान.
लेकिन अब का भूत पकड़ लिस-बन के उग्र करत हड़ताल
रेंगत राह गलत निर्णय कर, आखिर कते जीव उभरैस ?”
कातिक अपन पोल ला खोलिस- “”हम धनवा के नौकर आन
काम करत पीढ़ी दर पीढ़ी, मानत आत जमों आदेश.
क्रांति काय तेला नइ जानन, हम संघर्ष ले हन अनजान
खूब लड़ंका हगरू टहलू, उहिच दुनों हमला बहकैन.”
टहलू हा सब तर्क ला कोटिस- “”कातिक हा बोलत हे झूठ
खुद ला बिल्कुल साफ करे बर, दूसर पर डारत आरोप.
ओहर दीस उग्र भाषण अउ, धनवा के विरूद्ध भड़कैस
याने जमों दोष कातिक के, हम निर्मल जल अस निर्दाेष.”
नौकर मन मं फूट परे हे, एक दुसर पर डारत दोष
क्रांति करे बर राजू तिनकर, चुपेचाप भगगे सब रोष.
केजा हा अब थाह लगावत, नौकर मन ले मंगत जुवाप
“”खुद ला सब साऊ बतात हव, पर वास्तव मं सब पर दोष.
पर गल्ती ला माफ करत हन, अब बिल्कुल सच उत्तर देव-
तुम हड़ताल अभी टोरत हव, या फिर क्रांति बढ़ावत और ?”
मुंह रोनहू कर टहलू बोलिस- “”उभरउनी मं आयेन आज
हम पापी मन चलत कुरद्दा, हमर कुजानिक ला कर माफ.
धर्म अधर्म कुछुच नइ जानन, अकल पुरिस नइ तुम्हर अतेक
हम्मन आय तुम्हर कोरा मं, पत ला रख दो इहां जतेक.
धनवा के घर काम बजाबो, नइ लगान हड़ताल के आग
मन्दिर ला हम खुद सिरजाबो, अपन मांग पर मांगत रोक.”
सब नौकर मन शरण गिरिन-पर, धनसहाय टरका दिस कान
ऊपर ले सेखी मं अंइठत, मुंह ले छोड़त करू जबान-
“”नौकर मन ला मंय अपना के, कइसे करंव अधर्म के काम !
ईश्वर साथ द्रोह यदि फांदत, मिल नइ पाय शांति आराम.”
ग्राम के वासी मन समझावत, धनवा नइ लेवत कल्दास
डायल बइला हा कर देथय, कृषक के मन ला खूब हताश.
आखिर मं छेरकू पुचकारिस- “”सुन धनवा तंय नेक सलाह
इंकर कुजानिक ला समोख अब, तभे ठीक होहय निर्वाह.
पाल श्रमिक ला बन के घुरूवा, यद्यपि चाबिन बन के नांग
पिला, ददा पर गंदला करथय, पर नइ कटय पुत्र के जांग.”
बड़ मुशकिल मं मुड़ी उठा के धनवा बोलिस ऐसे-
“”गंगा-बीच बइठ के एक झन करंव उदेली कैसे ?
नौकर के मानी तुम पीयत, मोर गोहार घलो सुन लेव-
जतका अभि मजदूरी नापत, ओकर ले ऊपर नइ देंव.”
छेरकू हांक बजा के बोलिस- “”सुनव गांव के श्रमिक किसान
धनवा ला मंय मना डरे हंव, एकर झन करिहव हिनमान.
टिंया ले सुंट बंेध आवत तइसे, जुरमिल रहव इहिच विश्वास
आंटाटिर्रा छोड़ देव तुम, तंहने खतम फूट के बास.
चुगली भेद ला गोरसी भर दव, आपुस रखव मित्रता नेम
मोर कुजानिक क्षमा देव तुम, तुम्हर खाय मंय किमती टेम.”
सब ग्रामीण उसल के रेंगिन, नौकर मन अब काम बजात
धनवा – छेरकू मुड़ ला जुरिया, गुरतुर गुरतुर बात चलात.
धनवा कहिथय – “”कृपा करे हस, तेकर कर्ज होय नइ गोल
लेकिन छुपे रहस्य ला फुरिया, लुका राख झन हृदय के खोल.
नौकर मन के मांग ला ठुकरा, मंदिर ला बनाय कहि देस
दुनों बात मं तालमेल नइ, तब ले तंय हा एक करेस ?”
छेरकू अपन जहर ला बिखनिस – “”कूटनीति के तंय रख ज्ञान
अगर टिंया तक राज चहत हस, जनता संग कर छल बल तान.
मंदिर मठ ला बनवा के हम, लूट सकत हन धर्म के आड़
ईश्वर – नाम मं डरा भुताबो, नवही लोहा लाट अछाड़.
नौकर मन अंटियात रिहिन अउ, करत रिहिन सुंट बंध हड़ताल
मगर धर्म के नाम मं चमकिन, अपन हाथ नीछिन खुद खाल.
काम बजाहंय रटाटोर अब, नइ बइठंय एको छन धीर
बइला ला जहं परत तुतारी, मेड़ फोर चलथय तरमीर.
अगर श्रमिक के मांग पुरोते, अउ खई मंगतिन मुंह ला फार
इसने उनकर मान करत मं, तोर जमों धन होतिस ख्वार.
इंकर भरोसा – मार परोसा, बस तंय फइलावत रह भ्रांति
श्रमिक ला जेवा कमती कमती, भोंक मं जाहय उनकर क्रांति.”
धनवा बोलिस – “”नीतिवान तुम, मोर पास हे बुद्धि – अभाव
ज्ञानिक संग फुल फुलवारी बद, आज लेंव मंय नीति रपोट.
यदि मंय तोर मदद ले वंचित, मंय रहि जातेंव दांत निपोर
नंगरा तक बुढ़ना झर्रातिस, गांव के दुश्मन हंसतिस खोर.”
मंत्री पास काम कतको ठक-तुरते रेंगिस छेरकू ।
कोदई ला निकियाथय ते बेरा – छंटिया जाथय मेरखू ।।
भुखू सुखी मन करिन दलाली, तब धनवा हा बांटिस नोट
डकहर सुखी भुखू तीनों मिल, अभिन जमात कार्यक्रम मोठ.
बोलिस सुखी – “”लोग मन कहिथंय – होत मंद हा बहुत खराब
ओकर पिये मं बहुत बुराई, मनखे के जीवन बर्बाद.
तब वास्तव मं काय बुराई, लेन परीक्षा ढोंक शराब
फेर मंद मं जेन बुराई, मनखे मन ला करन सचेत.”
तीनों झन खलखला के हांसिन, भिड़ के पीयत खूब शराब
नशा बढ़त गनगना के तंहने, उंकर चेत हा होत बिचेत.
आंख के पुतरी ऊपर जावत, लड़भड़ लटकत उंकर जबान
काय बकत तेकर सुरता नइ, भुला गीन इज्जत अपमान.
भुखू लड़भड़ा उठ जाथय अउ, छुअत हवय डकहर के गोड़
डकहर कथय -“”कलंक लगा झन, गोड़ छोड़ भइ-छोड़ तंय गोड़.”
काबर सुनय भुखू मंदी हा, कोन जनी का का तोतरात
आखिर ओ – ओ उल्टी कर दिस, मन्दी के गुन ला ओरियात.
भुखू खूब चलना चाहत – पर, भुंइया मं भर्रस गिर गीस
जेन जगह उछरे हे छर छर, ओकरे ऊपर पटिया गीस.
डकहर ला अब सुखी हा बोलिस – “”अब तो भुखू के उड़गे चेत
मंद ढोकम के पशु अस सोवत, धर चेचकार – खार मं फेंक.”
डकहर हा छिनमिना के कहिथय – “”बहुत हुलास देत हे यार
हमर नाक हा सूंघ पात नइ, नर्क कुण्ड ले तिंहिच उबार.
जमों मंद ला भुखू ढोंक दिस, सुध बुध खो के शव अस सोय
हम तंय पाय मंद एक एक कन, तब तो नशा कुछुच नइ होय.”
सुखी किहिस – “”तंय चिंता झन कर, बचे मंद अउ बोतल एक
ओहर नंगत नशा बताहय, ओला थोरिक पी के देख.”
कभू पिये नइ तइसे ढक ढक, दारुढारिन रख के ग्लास
पिये – बाद मं नशा जनावत, काय करत तेकर नइ भास.
मंदबसी मं कहिथय डकहर – “”मोला तंय दुर्बल झन जान
अगर शक्ति ला अजमे चाहत, बला लान एक अड़िल जवान.
कतको अखरा जानत होहय, तब ले मंय करिहंव मलयुद्ध
टंगड़ी मार – गिरा धरती पर, ओकर वक्ष मं चढ़हूँ कूद.”
सुखी हा काबर पिछू रहय अब, बात मं बढ़ गिस बार हाथ –
“”असली रूप मोर नइ जानस, चल तंय अभिच सुखी के साथ.
मोर शक्ति जाँचे चाहत तब, पंड़वा एक खोज के लान
रद्दा मार के केंघरा ओला, नाथ दुहूं मंय धर के कान.”
अतका बोल सुखी हा खींचिस, डकहर के दू कान ला जोर
तंहने डकहर हा खखुवा के, सुखी ला रचका दिस पंचलोर.
भड़किस – “”मोला तंय का समझत, तोर ले मंय हा धनी सजोर
तोर असन ला बिसा सकत हंव, जेमां करत हवस सिरजोर.
मुंह करिया कर रेंग इहां ले, वरना बिगड़ जहय संबंध
कर हुरमुठी कुकुर अस रूकबे, झड़का दुहूं गिन के दस लात.”
सुखी अकबका फुसफुस रोवत, ढलंग गे भुंइया पटकत गोड़
आंसू ढार कल्हर मिमियावत – “”तोला छोड़ कहां मंय जांव !
भले पेट मं छुरी भोंक दस, चिल कौंवा के जे बर छोड़
पर तन रहत मुहूँ नइ टारों, तोर मित्र के बस ए टेक.”
डकहर ला आ गीस दया अब, कलप के ढारत आंसू धार-
“”गल्ती ला तंय क्षमा दान कर, बल्दा मं फटकार ले लात.
मंय हा रखत शत्रुता पर तंय मित्र मानथस मोला ।
लेकिन आज तोर संग झगरत – कइसे होगे मोला ।।
डकहर सुखी के नश््शा भड़कत, का डम्फाएन के नइ चेत
दूनों एक दूसर ला कबिया, करत हवंय समधी अस भेंट.
उनकर आंसू गिरत टपाटप, कलपत खूब गला ला फाड़
दृष्य उहां के अइसन दिखथय – करूण हास्य रस सौंहत ठाड़.
बहुत समय इसने बीतिस तंह, भुखू जाग के जांचत हाल
दूनों ला हांसत हे मानो – खरी खाय नइ एकर चाल.
जहां कुकर्मी फरी हो जाथय, पर ला देत ज्ञान उपदेश
भुखू दुनों ला पहिली डांटिस, करत हे अब शिक्षा के दान –
“”तुम ए गांव के मुखिया मनखे, जग हंसाय बर जोंगत काम
जब तुम गलत राह पर रेंगत, थू थू कर होहव बदनाम.
तुम्मन करव सही अस करनी, दूसर संहरा के जस गांय
तुम मर के परलोक जाव तब, मनसे मन मुड़ धुन पछतांय.”
देखिस भुखू अपन कपड़ा ला, चप चप होत – देत दुर्गंध
कहिथय – “”मोर देह बस्सावत, घृणा जनावत अंधनिरंध.
कोन मोर पर गंदलो फेंकिस, काकर अनसम्हार अपराध !
एकर भेद अगर नइ खुलिहय, खूब झोरिहंव खुंटा मं बांध.”
डकहर बोलिस – “”हमर दोष नइ, नशा मं तंय खुद करे उछार
हम गवाह के बात मान तंय, करव खलिन्द्री झन सरकार.”
यदपि भुखू ला लाज लगिस – पर ओहर हांसत अइसे ।
हार चुनाव ला नेता पहिरत – फूल हार ला जइसे ।।
भुखू उहां अब काबर बिलमय, लिड़िंग लड़ंग कर चलिस सरेर
जुआ ला हार जुआड़ी भगथय, देख पाय नइ पलट के फेर.
जेन आदमी मिलत तिंकर तिर, भुखू हा मारत अड़बड़ टेस
अपन करे हे निंदित बूता, पर – पर ला देवत उपदेश.
मुंह मं जउन आत फरकावत, समझत स्वयं ला बड़ विद्वान
यदि कोई मनसे हा रोकत, तब ओकर होवत हिनमान.
भुखू ला जाना कहां – कहां गम, बयचकहा अस पांव बढ़ात
हुंकी देवइया एको झन नइ, हरबोलवा अस झुल गोठियात.
भुखू के तिर लइका मन पहुंचिन, रंगी जंगी पुनऊ थुकेल
गज्जू गुन्जा मोंगा तक हें, भुखू ला चिड़हावत हें एल.
गुन्जा कथय – “”सयाना हस तंय, तोर चाल हे अनुकरणीय
तब हम तोर राह पर चलबो, तंहने हम कहवाबो नीक.
तंय हा अभी शराब पिये हस, तब हम्मन तक पिये शराब
तोर पांव हा डगमग होवत, लड़खड़ात हे हमरो पांव.”
रंगी किहिस – “”मंद पीबो हम, मनसे करंय भले बदनाम
घृणा से देखंय – थू थू बोलंय, करबो इही काम हम नेक.
मंद पिये बर हम नइ छोड़न, भले बिकय घर खेत कोठार
उहू ला पिया देबो दारू, हमर शौक ला झिंकिहय जेन.”
मोंगा किहिस – “”पिये हन अमृत, एकर ले बढ़ जथय दिमाग
काम करे के शक्ति बढ़ाथय, मानव के डर – भय हा नाश.
मंय हा आज सत्य बोलत हंव – हे शराब हा गुण के खान
हम हा अभी शराब पिये हन, अउ हम पीयत रबो सदैव.”
सुन्तापुर के लइका मन हा, झुमरत हें लड़भड़ कर गोड़
मंदी मन के नकल उतारत, मुंह तोतरात – किंजारत आंख.
भुखू के बाढ़िस नशा गनागन, क्रोध ला भभका भड़किस जोर-
“”तुम्मन काकर टूरा अव रे, काबर इनसठ करथव मोर !
गुरुपढ़ात हवय का अइसन – मुंह मारव बुजरूक के साथ
यदि शिक्षक तुमला भड़काहय, देख सकत मंय ओकरो टेस.”
भुखू अपन नक्सा बचाय बर, लइका मन तन दौड़ लगैस
पर खुद किंजर गिरिस भूमी पर, एकोकन सम्हलन नइ पैस.
जकर बकर देखत अउ सोचत – मनखे झन पहुंचय नजदीक
वरना नंगत फदिहत होहय, फुर्र थूंकिहय मुंह के पीक.
तभे कोन जन एक कुजानिक, मारिस छींक के ऊपर छींक
भुखू के मुड़ पर गाज हा गिरगिस, चंवतरफा टंहकत चकमीक.
भुखू उठिस हड़बड़ कर हुरहा, जकर बकर देखत जस काग
आगू डहर हबाहब रेंगत, शायद पाय ओलहा के पाग !
मुचमुच हंसत गरीबा पूछिस -“”तंय कइसे गिर गेस दनाक
भूत उठा के पटक दीस या, ऊंचा कूद लगात भड़ाक ?”
बचे नशा हा उड़े चहत अब, सुनिस गरीबा के जब बोल
जइसे ठीक राह पर आथय, मार ला खा के मूरख ढोल.
फट ले भुखू हा ढचरा मारत – “”तोर पास आवत धर – काम
तड़ तड़ चलई मं गोड़ छंदा गिस, तंहने मंय गिर गेंव धड़ाम.
धनवा खभर पठोय तोर तिर – मोर साथ कर ले मिल भेंट
ओकर साथ मित्रता बदिहंव, अपन साथ मंय लुहूं समेट.
मंदिर जउन बनावत तेकर, ओकर हाथ होय बस जांच
लगे हाथ मं धर्म कमाहय, लग नइ पाय पाप के आंच.
करय गरीबा हा झन फिक्कर – के आ जाहय खर्च के भार
सब लागत मंय पूरा करिहंव, कतको रूपिया सकत ओनार.”
किहिस गरीबा -“”हवय खबर शुभ, पर काबर धनवा नइ अ‍ैस
ओकर ले मंय कहना चाहत – वाकई सुघ्घर उदिम उचैस.
लेकिन जेकर तिर मं घर नइ, ओकर बर मकान बन जाय
जेन पोटपोट भूख मरत हे, बिगर फिक्र जेवन मिल जाय.
जीवन ला आवश्यक होथय, तेन जिनिस के होवय पूर्ति
तब धनवा मंदिर सिरजावय, अउ पधराय सोन के मूर्ति.
मोर बात ला धनवा सुनिहय, ओकर बात लुहूं मंय मान
मेहरुकवि तिर लिखवा देहंव, धनवा के नंगत यशगान.”
एकदम भड़कत भुखू हा बोलिस – “”वाकई तंय राक्षस – अवतार
तोर असन के मरना उत्तम, काबर के धरती बर भार.
तब तो तंय हा जन्म लेस तंह उठा के फेंकिन तोला ।
दाई के तंय दूध के वंचित – तंय हस पापी चोला ।।
धर्म विरुद्ध बात हेरत हस, खूब जलत पर के धन देख
तभे तोर तिर मं पूंजी नइ, धनसहाय तिर हवय जतेक.”
कथय गरीबा – “”तंय पुण्यात्मा, खुले हृदय ले मानत धर्म
काबर तरहा तरहा के हस, बता भला तंय एकर मर्म ?
धरती के सेवा ला करथंय, लहू सुखा हंसिया बनिहार
ओमन काय कुकर्म ला करथंय, जेमां पेट सकंय नइ तार ?
असल रहस्य मोर ले सुन तंय – सक्षम धनी करत गुमराह
अपन स्वार्थ ला पूर्ण करे बर, पर ला देथंय गलत सलाह.
जे दिन भेद के खाई पटिहय, तब सदधर्म के वास्तव राज
ईश्वर घलो प्रसन्न हृदय तक, जब सब खाहंय बांट बिराज.”
“महिला पुरूष रात दिन सुख दुख, प्रकृति हा बनाय खुद भेद
तब फिर कहां ले मूंदन सकिहय – कंगला पूंजीपति के छेद ?”
“”प्रकृति के तंय गोठ करत हस, प्रकृति कहां करत हे भेद !
हवा प्रकाश अनाज खनिज ला, सब के हित बर रखे सहेज.
पर कुछ बुद्धिमान स्वार्थी मन, पर के जिनिस ला करत लूट
अपन बनत पूंजीपति सक्षम, याने समाज के सिरमौर.
वाद विचार कला अन जन धन, राजनीति साहित्य विज्ञान
जतिक प्रचार तंत्र सब ताकत, मानत सक्षम के आदेश.
तब सक्षम हा स्वार्थ पूर्ति बर, अउ वर्चस्व सुरक्षित होय
ऊंच नीच पूंजीपति कंगला, भेद के तर्क ला फइला देत.
तब हम ओकर पाछू दउड़त, अपन बुद्धि ला निष्क्रिय राख
अपन जिन्दगी गर्त मं डारत, भावी बर भविष्य अंधियार.
यदि हम सबो यत्न करबो तब, “”सुम्मत राज” ला सकथन लान
वर्ग समाज मं होवय हाजिर, तभो ले सम्भव वर्ग विहीन.
हवा – प्राण नइ दिखय आंख मं, मगर उंकर निश्चय अस्तित्व
ऊपर दिखिहय वर्ग बद्धता, राज ला करिहय वर्ग विहीन.
एक राष्ट्र मं देख सकत तंय, उहां समानता के साम्राज्य
उच्च – निम्न श्रेणी के खाई, मगर भेद मिटिहय कल ज्वार.”
रखिस गरीबा तर्क बहुत ठक, मगर भुखू हा दीस उखेल
परय तुतारी डायल धन ला, पर ओकर पर कहां प्रभाव ?
इही बीच चिंता हा पहुंचिस, जेहर बसत करेला गांव
हाथ मिलैस गरीबा के संग, आगू डहर बढ़ावत गोठ –
“”पथरा पर जल – खातू छिचबे, पर उबजन नइ पाय अनाज
तइसे भुखू ला तंय समझाबे, पर ओकर बर हे बेकार.
अपन बुद्धि ला खर्चा झन कर, मोर बात ला पहिली मान
तोर शब्द के इज्जत होवय, अपन तर्क ला उंहचे राख.”
कथय गरीबा हा मुसकावत – “”एकर अर्थ जान मंय लेंव
मोर पास हे तोर काम कुछ, हां, अब बता – काय हे काम ?
चिंता बोलिस – “”झन टकराबे, तंय चल हमर करेला गांव
सांवत – भांवत दुनों लड़त हें, एक दुसर के देखत दांव.
यथा महाभारत झगरा हा, वास्तव मं पारिवारिक युद्ध
मगर राष्ट्र हा चरपट होगिस, उन्नति मार्ग तुरूत अवरूद्ध.
तइसे दूनों भाई झगरत, झंझट उंकर गांव पर गीस
ग्रामीण मन मं फूट परे अउ, क्रोध देखात दांत ला पीस.
बीच बचाव अगर नइ होहय, गांव हा बनही मरघट घाट
मोर साथ तंय हा चल झपकुन, बचा गांव ला कर के न्याय.”
चलिस गरीबा हा चिंता संग, गांव के बाहर दिखिस तलाब
चिंता कथय -“”पार कर एकर, मंय हा दुहूं इनाम निकाल.”
कथय गरीबा – “”डुबक लेत हंव, पर धनवा के बात कुछ और
मेहरु- सनम घलो तउरत पर, धनवा हा उंकरो सिरमौर.
एक बार हम सब हुम्मसिहा, आएन इहां करे इसनान
एक दुसर ला एल्हत हांसत, डुबक डुबक लग गेन नहान.
तब मेहरुहा चंग चढ़ा दिस – “”तुम्मन सुन लव लटका मोर-
जे तरिया ला प्रथम नहकिहय, पाहय उहिच इनाम सजोर.”
सब जवान तउरत ताकत कर, धनवा तरकत सांस ला खींच
सक ले अधिक जोर मारिस तंह, पहुंच गीस तरिया के बीच.
धनवा के पाछू मंय तउरत, पर नइ पावत ओकर पार
मंय बोलेंव – “”अगोर ले थोरिक, मोला करन दे पहिली पार.
यदि मंय बाजी हार जात हंव, मोला हंसिहंय जमों मितान
जिते इनाम तोर मन होवत, ओकर पूर्ति ला करहूँ लान.”
लेकिन धनवा काबर मानय, बढ़ सर्राटा कर लिस पार
ओहर स्पर्धा जीतिस अउ, हमर गला मं हार के हार.”
चिंता कथय -“”समझ नइ आवत, धनवा – तोर चलत हे द्वन्द
ओकर करतेस मरत खलिन्द्री, लेकिन लिखत प्रशंसा छंद.”
किहिस गरीबा – “”हे धनवा हा, ठंउका मं तारीफ के लैक
ओहर रथय नशा ले दुरिहा, अउ चरित्र हा दगदग साफ.
ओकर – मोर शत्रुता कुछ नइ, ओकर बर मन फरिहर – शुद्ध
पर धनवा हा शोषण करथय, तब होथय सैद्धान्तिक युद्ध.”
बोल गरीबा हा चुप हो गिस, पहुंचिस जहां करेला गांव
यद्यपि सांवत घर जाना हे, पर चल दिस दसरुके छांव.
होत गरीबा के विचार हा दसरुला झुझकाना ।
बसदेवा मन गाथंय तिसने गात गरीबा गाना ।।
“”छेरी के पुछी भठेलिया के कान
बुढ़ुवा बैला ला दे – दे दान.
जय गंगा . . . ।
तंय दसरू के बेटा आस
मंय सुद्धू के बेटा आंव .
जय गंगा . . . ।
निश्छल हिरदे दुनों मितान
तइसे हम तुम एक परान .
जय गंगा . . . ।
तंय हा बसत करेला गाँव
नाम करू पर मीठ सुवाद.
जय गंगा . . . ।
तोर पास मंय आय मितान
मोर खाय बर बासी लान
जय गंगा . . . ।
ओमां अमसुर मही ला डार
चिखना बर चटनी ला लान .
जय गंगा . . . ।
भरे पुरे हे घर हा तोर
झन मर एको कनिक कनौर.
जय गंगा . . . ।
कोठी भर भराय हे धान
Ïक्वटल एक हेर के लान.
जय गंगा . . . ।
पर मंय जानत तंय कंजूस
अगर गलत सब झन ला पूछ.
जय गंगा . . . ।
यदि तंय हा नइ करबे दान
छिन के लेग जबो सब धान.
जय गंगा . . . ।
गावत हवे गरीबा हंस हंस, मारत हवय व्यंग्य के फूल
दसरुहा भाखा ला ओरखिस, जानिस तंह मुसकत दिल खोल.
एल्हत हवय गरीबा ला अब – “”तोला कुछुच सरम नइ आय
सांगर मोंगर अस जवान हस, तब ले घर घर मांगत भीख !
मोर सलाह मान ले तंय हा – “”गिरा पसीना महिनत जोंग
तेकर बाद पेट भर जे तंय, इज्जत साथ जिन्दगी पाल.
मोर मकान मं झन घुस तंय हा, जाव मंगे बर पर के द्वार
तुमला मंय हा नइ पहिचानंव, बइठे रहव झनिच मुंह फार.
तुमला कार बलांव मंय अंदर, तुम्मन हा अव चोर – चिहाट
यदि सांई पूंजी धर भगिहव, चले जहंव मंय बाराबाट.”
किहिस गरीबा – “”ए घरखुसरा, परघउनी बर बाजा लान
बहुत दूर के सगा आंव मंय, तंय कर मोर बहुत सम्मान.
सोचत हस के घर झन आवय, पर मंय आवत टोर के बेंस
यदि तंय हा नुकसान चहत नइ, मान तुरूत तंय आज्ञा मोर.”
काबर रूकय गरीबा बाहिर, भितरा गिस दसरुके पास
दसरुओकर स्वागत करथय, खुल खुल हंसत – मनावत हर्ष.
बोलिस – “”मंय मुसुवा ला कहिथंव – बासा अपन रखव घर मोर
लेकिन ओमन झूठ मानथंय, पलट घलो नइ झांकय थोर.
लेकिन आज कमाय खूब अक, सगा खवाय रखाय अनाज
चल तंय पहिली जेवन ला कर, तोला देखत अन महराज.”
तब आइस सांवत हा रोवत – “”भइया, काय कहंव निज हाल
मोर बात भांवत नइ मानय, अलग होय बर ठोंकत ताल.
ओकर खटला रजवन आइस, तब ले लगे फूट के आग
सुम्मत हमर रटारट दरकिस, पोल बताय मं आवत लाज.
भांवत के सब भार सहत हंव, पर अब काबर सहंव प्रपंच !
तंय हा बांटा हमर करा दे, बने आय हस बन के पंच.”
एकर बाद हेर के रूपिया, दीस गरीबा ला तत्काल
कहिथय -“”मंय रिश्वत नइ देवत, देत खाय बर मीठ पदार्थ.
पुत्र तखत फुरनाय पाय नइ, ओकर पर देखाव तुम प्यार
नाट – छांट के तंय हा कर दे, मोर नाम मं खेत कोठार.”
सांवत करत विचार अपन मन-देकर घूंस करे हंव नेक
मोर पक्ष ला लिही गरीबा, करिहय पूर्ण मोर जे टेक.
सांवत गीस प्रसन्न ओंठ धर, पाछू चल भांवत हा अ‍ैस
ओहर पंच के तिर मं कलपत – “”सांवत हवय निसाखिल क्रूर.
मंय हा ओला देव मानथंव, लछमन अस मानत आदेश
तब ले गरुगाय अस पिटथय, ऊपर ले करथय धन नाश.
ओकर खटला बेलगहिन हा, मोला लड़थय शत्रु समान
चना गहूं ला चोरा बेंचथय, हमला थोरको नइ डर्राय.
खटिया सेवत रहिथय हर छिन, चांय चांय कर लूथय बात
सूनंव नइ बारागण्डाएन, सांवत के संग रहि नइ पांव.”
दीस गरीबा ला भांवत हा, कड़कड़ रूपिया झपकुन हेर
सोचत – एला पटा डरे हंव, अब नइ होय मोर नुकसान.
कहिथय -“”घर धरती ला करबे, बने छांट लाखा मं मोर
टुरी चुटुम हा फुदरत खाहय, हो कृतज्ञ जस गाहय तोर.”
दीस गरीबा हा आश्वासन – “”तंय हा अपन फिकर ला टार
तोर टुरी के जीवन बनिहय, ओहर खाहय सुख के आम.
जउन सनातन मं नइ होइस, तइसन बूता करिहंव आज
तोर भविष्य बना के रहिहंव, कभू परय नइ दुख के घाम.”
मीठ बात ला करिस गरीबा, तंह भांवत के मन दलगीर
मुड़ ला उठा के लहुटत जइसे – युद्ध जीत लहुटत रणवीर.
किहिस गरीबा हा दसरुला – “”तंय हा बता – करंव का काम
यदि दूनों रूपिया खावत, बट्टा लग जाहय तन मोर.
जब एमन हा धन ला छींचत, लगथय के हें पुंजलग ठोस
पुरखा जोर के धन ला छोड़िन, तभे करत नइ एमन मान ?”
दसरू किहिस “” गलत सोचत हस, इंकर पास गिनती के खार
फसल अभी हे खेतखार मं, ओकर ऊपर लेत उधार.
जब कोठार मं अन्न पहुंचिहय, दन्न ले आहय साहूकार
जमों अनाज रपोट के लेगिहय, सांवत मन हो जहंय खुवार.
पर उभरवनी मान के बाजत बजनी भाई भाई ।
इंकर लड़ई हा गांव बगर गिस, जस खजरी अउ लाई ।।
कथय गरीबा -“”दुनों मुरूख मन, जानत नइ जीवन के नेत
एमन ला मंय पाठ पढ़ाहंव, ताकि रहंय झन कभू बिचेत.”
दसरुकथय -“”वसूलत हस तंय, दूनों पक्ष ले कड़कड़ नोट
परिहय चोट न्याय ऊपर अउ, होबे परलोखिया बइमान.
तंय हा अपन इमान खोय हस, कइसे करबे सुघर नियाव
तोर चाल हा समझ ले बाहिर, मोला बता खोल के साफ ?”
सिर्फ हंसत रहि गीस गरीबा, ओहर सांवत के घर गीस
सांवत – भांवत स्वागत करथंय, राखिन खाय मिठई नमकीन.
कथय गरीबा – “”इहां आय हन, जउन काम ला धर के आज
ओहर पहिली सफल होय तंह, खानच हे फिर बांटबिराज.
अपन खेत ला चलो देखावव, उंकर करन हम पहिली जांच
तब निष्पक्ष हो सकथय बांटा, काबर निकलय ककरो कांच.”
ओतिर मनखे मन सकला गिन, जेमन सांवत भांवत आंय
चिंता – मानकुंवर अउ बांके, हवय गरीबा तक हा साथ.
जमों धान के खेत पहुंच गिन, हवय टंगरहा उनकर खेत
खोधरा डिपरा – समतल तक नइ, उहू मं बन मन लाहो लेत.
ओमन “परसा खेत’ ला देखिन, अरझे रिहिस अधिक अस धान
ओला निज हक मं लाने बर, सांवत भांवत देवत जान.
देत गरीबा डहर इशारा, अलग अलग आंखी चमकात –
“”तोर खिसा ला भरे हवन हम, इहिच खेत झन होय बेहाथ”.
काबर पाछू रहय गरीबा, मुड़ ला हला के उत्तर देत
मुंह ले कुछ नइ बोलत लेकिन, हाव भाव ले समझा देत.
भर्री देख दंग रहि गिन सब, उहां गड़े नइ हल के नास
जबकि पास के दुसर कृषक मन, जोंतई काम ला करिन खलास.
सोयाबीन बोहावत आंसू, बन बंखर जमाय अधिकार
जमों पंच मन भाई मन ला, सुंट बंध के देवत दुत्कार.
मानकुंवर हा दीस ताड़ना -“”कोन कथय – तुम आव किसान !
सच मं कोन किसान कहाथय, ओकर परिभाषा ला जान-
अपन देह के सुध बुध खोथय, करथय मात्र खेत के फिक्र
ओकर देखभाल करथय अउ, रखथय ध्यान सदा दिन रात.
लेकिन तोर खेत मन बेबस, बिन मालिक के जस असहाय
अइसन मं कभु अन्न होय नइ, तुम पाहव हर समय अभाव.”
गारी देत पंच मन पहुंचिन, सांवत अउ भांवत के द्वार
घर के हालत ला देखत हें, सबो पंच मन आंखी खोल.
भिड़िंग भड़ंग घर होत खंडहर, मुंह उलिया भसकत दीवार
कांड़ – कोरई मन हा गतमरहा, सहत कहां खपरा के भार !
अब का करंय पंच मन ओतिर, लहुट गीन फट अपन मकान
जेन कर्म ले हीन हो जाथय, ओहर घृणा पात हर ओर.
हेरत हवय उपाय गरीबा – इंकर साथ छूटन झन पाय
गिरत गृहस्थी सम्हल जाय अउ, जेवन बर झन मिलय अभाव.
मन मं अरथ भंजात गरीबा, पर नइ निकलत सुघ्घर राह
एक तरीका ला सोचिस पर – ओमां खतम होत उत्साह.
“जब मंय बने चेतलग रहिहंव, रहि हुसियार बढ़ाहंव गोड़
तब काबर होहय दुर्घटना, बुड़ नइ पाय जसी के नाव’
सांवत – भांवत ला फट बोलिस -“”स्वादिल जिनिस खाय रंधवाव
मंय हा बइठ तुम्हर संग खाहंव, तुम्मन घलो प्रेम रख खाव.
एकर बाद मं अलग हो जाही – घर धरती गरुगाय मकान
एक दुसर ला देख थूंकिहव, पर अभि खावव बांट बिराज.
मंय दसरुके घर जावत हंव, ओकर पास करत गप – गोठ
जेवन हा चुर जाहय तंहने, सब झन खाबो बइठ अराम.”
भांवत ला चुप दीस इशारा – ताकि करय अलगेच मं भेंट
समझ के भांवत मुड़ी हलावत, सोचिस – आय लाभ के नेत.
कुछ दुरिहा मं बिलम गरीबा, देखत के भांवत कब आय ?
कुछ बेरा चल पहुंचिस भांवत, अपन साथ दूसर नइ लाय.
चुप चुप का गोठियात गरीबा, भांवत ओरखत कान टंड़ेर
आखिर जब मुरथम ला जानिस, आंख खोल के दीस पंड़ेर.
कहिथय – “”मोर लइक तंय बोलत, एमां कहां मोर नुकसान !
पर तंय जेन राह फुरियावत, चले जहय सांवत के जीव.”
कथय गरीबा – “”संसो झन पर आन देंव नइ बद्दी ।
हम तोला उबार के रहिबो, पाबे सुख के गद्दी ।।
हर्ष मनात रेंग दिस भांवत, तब सांवत आइस चुपचाप
इनकर बात चिरई नइ जानिस, तइसे रचिन दुनों झन पाप.
फुरसुद बाद गरीबा पहुँचिस, दसरुला सब कथा बताय
दसरुसुनिस तंहा घबरागे – मुड़ पर आवत आफत धांय.
कहिथय – “”तंय उपाय सोचे हस, ओहर खतरनाक भरपूर
एमां मंय सामिल नइ होवंव, मोला आफत ले रख दूर.”
कथय गरीबा -“”तंय झन घबरा, मंय हा घोख लेंव हर ओर
काम के सफ्फलता होवत तक, रहिहंव बहुत टंच हुसियार.
मोर बात पर कर यकीन तंय, ककरो पर आफत नइ आय
हमर नियाव सफलता पाहय, भाई मन हा खुशी अराम.”
दीस गरीबा नेक भरोसिल, तंह दसरुहो गिस तैयार
जहां खाय बर अ‍ैस बलौवा, एमन हा नइ बाधिन बार.
भोजन बर जब एमन बइठिन, सांवत मिठई लान लिस हेर
ओला भांवत के तिर रख दिस, ताकि उड़ाय टपाटप हेर.
भांवत घलो अपन कुरिया गिस, उंहचे ले लानिस नमकीन
ओला सांवत के तिर परसिस, ताकि गफेलय झप झप बीन.
सांवत – भांवत मन सग भाई, देखव कतका मया देखात-
लेकिन एमां भेद छुपे हे, धैर्य रखव तंहने खुल जात.
अब तब खाय शुरुकर देतिन, तभे गरीबा हेरिस बोल –
“”काबर लकर लकर लेवत हव, भागत हे का तुम्हर ओल ?
हम्मन जेवन खत्तम लेबो, लेकिन रखव भला कुछ धैर्य
अन्य जीव हा पहिली खाहय, तब मिल जथय पुण्य के लाभ.
अगर इहां हे कुकुर बिलाई, लान बलाके मार अवाज
ओमन ला खावन दव पहिली, तब फिर खाव मनुष्य समाज.
अगर मूक प्राणी ला देहव, भोजन खाय मनुज के पूर्व
तुमला पुण्य लाभ मिल जाहय, भूल के झन छोड़व शुभ नेग.”
भांवत बिलई के आगू रख दिस, मीठ मिठई ला ओकर खाय
सांवत हा नमकीन राख दिस, एक कुकुर के सक भर खाय.
बिलई खैस तंह कहां सुरक्षित, ओकर छुटगे हांसत प्राण
उसने कुकुर घलो टप खाइस, तब चूरी अस तज दिस जान.
एकदम चिल्ला डरिस गरीबा -“”एको झन झन छुवव अनाज
सांवत अउ भांवत दूनों मन, जेवन मं विष डारिन आज.
लाय हवंय नमकीन मिठाई, तेमां जहर हवय सच बात
दुनों बन्धु मन पाप रचिन हे जब प्रत्यक्ष त व्यर्थ प्रमाण.
एमन एक लहू सग आवंय, मगर मुरूख मन चलत कुचाल
एक दुसर के प्राण हरे बर, काल बलावत करके मान.”
सुनिन गरीबा के अवाज तंह, वासी मन भर भर ले अ‍ैन
बांके मानकुंवर अउ चिंता, एमन घलो रूकन नइ पैन.
ओमन जब नाटक ला जानिन, थुवा थुवा कर हंसी उड़ैन
पापी मन के करत खलिन्द्री, ताकि कटाय दुनों के नाक.
कथय गरीबा – “”आज करे हंव, पाठ पढ़ाय बर नाटक एक
नाटक मं कुछ दम नइ लेकिन – मूरख फंस गिन बिगर विवेक.”
किहिस गरीबा ग्रामीण मन ला – “”जानत महाभारत के बात
कौरव – पाण्डव पासा खेलिन, उही खेल हा कर दिस घात.
पासा के घटना ला यदि सब, हंसी उड़ा के देतिन पेल
युद्ध भयंकर तेहर रूक तिस, द्धेष के बदला होतिस मेल.
तइसे इंकर बात झन मानो, वरना मिलिहय दुष्परिणाम
तुम सब मन मं फूट हो जहय, प्रेम बीच लग जहय विराम.”
मानकुंवर खखुवा के बोलिस – “”सच मं इनकर नीति खराब
इंकर चाल हा घृणा के लाइक, एमन फूट करा दिन गांव.
अ‍ैस गरीबा ठीक समय पर, हमला कर दिस तुरूत सचेत
अब ले इंकर बात नइ मानन, दूर ले देख के परबो पांव.”
किहिस गरीबा दुनों बन्धु ला – “”वास्तव मं तुम बहुत अलाल
तभे खेत मन परिया पलटत, घर के हालत हा दयनीय.
एमां पर के कुछुच दोष नइ, तुम कमचोर के आव प्रमाण
स्वयं गरीबी ला बलात हव, अपन हाथ मं मंगत अभाव.
बली हवव पर श्रम ले भगथव, पर के ऊपर मढ़थव दोष
अब ले अपन काम ला देखव, तुम्हर लहू ले उझलत जोश.
जब तुम भिड़ के महिनत करिहव, खेत उबजहिय बहुत अनाज
तुम सम्पन्न सुखी हो जाहव, दूसर तक करिहंय तारीफ.”
मुंआ धरे सांवत भांवत ला, ओमन करे हवंय अपराध
उनकर नसना टूट गिस रट, मुंह हा लटकिस खाल्हे कोत.
मगर गरीबा प्राण बचा दिस, ऊपर ले समझउती दीस
उंकर कपट हा छरिया गिस खब, बैर भाव तक छिन के छान.
एक – दुसर ला बंहा पोटारिन, सांवत किहिस बढ़ा के प्रेम –
“”हम हा हवन बिरिजबंधन मं, कहत पेट के कपट निकाल.
अपन बीच हम द्धेष रखन नइ, अब सुधारबो खेत के हाल
गांव मं रहिबो सग भाई अस, उन्नति बर देबो सहयोग.”
भांवत कथय – “”क्षमा मांगत हंव, हम रखबो एका सदभाव
मिहनत करके बासी खाबो, आलस ला देवत हन त्याग.”
कथय गरीबा – “”हम नइ मानन, आत्मग्लानि अउ पश्चाताप
तुमला अवसर एक देत हन, जेमां चलव एक अस राह.”
चिंता बोलिस – “”पहुंच गरीबा कर दिस आज भलाई ।
भाई मन ला एक बना दिस हम ओकर आभारी ।।
मानकुंवर हा दीस हुंकारु- “”अगर इहां आतिस धनसाय
ओहर न्याय ला घुमवा देतिस, तंह शत्रुता हा बढ़तिस जोर.
बेंदरा अस बांटा ला बांटतिस, माल उड़ाय के धरतिस पांत
दुनों कोत ले मुंहचलका धर, सुन्तापुर चलतिस मुसकात.”
धरे गरीबा नोट तउन ला, दुनों बन्धु ला लहुटा दीस
बोलिस -“”गलत सलाह सुनव झन, अपन हाथ टोरव झन फांस.
कहना मोर अगर जम जाए, करव आज ले अइसन काम-
ओ मनखे ले दूर रहव तुम, जे उभरावय बन के राम.”
उहां हवंय जतका झन मनसे, करत गरीबा के तारीफ
पर दसरुगंभीर अभी तक, रखे बुद्धि ला स्थिर भाव.
दसरुकिहिस -“”न्याय अभि होइस, तेकर फल भविष्य मं मीठ
पर अपराध होय तेकर तन, एको व्यक्ति देव तो ध्यान !
जे नियैक हा नेक न्याय दिस, ओहर पात प्रशंसा – सोर
पर ओहर अपराध करिस हे, तेकर बर का देवत दण्ड ?”
उहां के भीड़ परिस अचरज मं, समझत नइ दसरुके अर्थ
बांके हा नोखिया के पूछिस -“”तोर बात हा समझ ले दूर.
अ‍ैस गरीबा सुन्तापुर ले, ठोस न्याय कर कर दिस एक
पर ओहर अपराध का कर दिस, तिंही बता सब भेद ला खोल ?”
तुरुत गरीबा आशय समझिस, ओकर मुंह करिया के लुवाठ
जमों दोष ओकरेच आवय कहि, अंदर हृदय सहत संताप.
मनसे मन ला कथय गरीबा -“”दसरुरखिस तेन सच गोठ
मंय निश्चय अपराथ करे हंव, अंत&करण करत स्वीकार.
मनसे के हर कष्ट हरे बर, ओकर स्वार्थ सुरक्षित होय
मूक जीव के बलि देवत हन, उनकर प्राण हरत बन क्रूर.
सांवत भांवत एक सुंटी बंध, खाहंय पिहंय लिहीं आनंद
कुकुर बिलई के जान निकल गिस, जेहर कभू लहुट नइ आय.
यदि मनुष्य के हत्या होतिस, मिलतिस आजीवन कारावास
पर पशु के मंय प्राण हरे हंव, एमां सजा मिलत हे काय ?
याने हम्मन स्वार्थ पूर्ति बर, मारत हन पशु पक्षी पेड़
प्रकृति के सन्तुलन हा बिगड़त, जेहर आय महा अपराध.
वास्तव मं मंय जुरूम करे हंव, ओकर फल मं मांगत दण्ड
चार पंच मिल न्याय करव अब, मंय हा कहत क्रोध ला त्याग.”
चिंता बोलिस – “”हम टोटकोर्राे, तोला कहां करन हम माफ !
दण्ड घलो हम कहां ले देवन, भावी बर निर्णय रख देव.
हम अतका सलाह दे सकथन – कुकुर बिलई के “गत’ बन जाय
ओमन बिन कसूर मारे गिन, ओमन ला अब “माटी’ देव.”
गुनत गरीबा मन के अंदर – अब मंय करिहंव कोई काम
काम के पूर्व समीक्षा चिंतन, अउ फल – ऊपर गहन धियान.
पर के नेक सलाह ला सुन लंव, खुद ला श्रेष्ठ समझना बंद
दुश्मन के सदगुण अपनाहंव, तभे सफलता आहय हाथ.”
सब मनखे के साथ गरीबा, कुकुर बिलई के “क्रिया’ बनात
उन ला “माटी’ दिस माटी रख, ओमन दुनों स्नेह के पात्र.
सब रटघा ला टोर गरीबा, लहुट गीस सुन्तापुर गांव
तभे उहां आरक्षक आइस, ओकर रिहिस हे भोला नाम.
ओला जब मनसे मन देखिन, ओ तिर ले छंट के चल दीन
बस बांके हा अंड़े उहां पर, ओहर रिहिस निघरघट जीव.
भोला हा बांके ला बोलिस -“”मंय हा बहुत सरल इंसान
कोई ला दमकाये नइ हंव, एको ला लगाय नइ डांट.
तब ले मनसे मोला देखिन भरभर भागिन पल्ला ।
आखिर मोर काय ए गल्ती फुरिया तुरते ताही ।।
बांके किहिस -“”हटिन मनसे मन, ओमां उंकर कुछुच नइ दोष
हे गणवेश तुम्हर खुद अइसे, एला देख डरत हे लोग.”
“”हम्मन जनता के रक्षक अन, रक्षा करथन खुद ला होम
दंगा लड़ई अगर कुछ होवत, हम्मन जाथन ओतिर दौंड़.
बिगड़े हालत ला सुधारथन, खुद दुख भोग कराथन शांत
तभो ले मनसे यदि डर्रावत, तब तो आय बहुत बेकार.”
“”यद्यपि कतको ठक विभाग अउ, मगर भिन्न हे तुम्हर विभाग
तुम कई ठक अधिकार पाय हव, तेकर कारन तुम हव ऊंच.
कोई ला मुजरिम बनात हव, धारा लगा देत निर्बाध
तुम्हर पिछू न्यायालय चलथय, तुम्हर लेख के करथय जांच.
तुम मुजरिम ला छोड़ सकत हव, सुधुवा ला सकथव तुम धांस
खैर छोड़ बारागण्डाएन, कहां जात तेला कहि देव ?”
“”बन्दबोड़ मं भेखदास हे, ओला देना हे सम्मंंस
बन्दबोड़ के पथ नइ जानंव, तंय हा बता सरल अस राह ?”
“”हम हा इहां जउन ठाढ़े हन, एहर नवा करेला आय
इहां ले जावव जुन्ना करेला, ओकर बाद एक ठक बांध.
ओकर तिर ले होवत निकलव, आगू मं हे बर के पेड़
ओकर असलग जउन गांव हे, ओला “बन्दबोड़’ तंय जान.”
भोला आगू डहर सरक गिस, बन्दबोड़ पहुंचिस कुछ बाद
ओहर बुलुवा ला बलवाथय, जेहर आय गांव कोतवाल.
पल्टन भेखदास अउ बल्ला, मालिक जगनिक तक आ गीन
“आरक्षक हा काबर धमकिस ! अइसे सोच भीड़ बढ़ गीस.
भोला ला पल्टन ला पूछिस – “”भेखदास के का अपराध
तंय ओकर विरूद्ध लिखवाये, थाना पहुंच के ओकर नाम ?”
पल्टन किहिस -“”मोर सच सुन लव – रिहिस मोर तिर कुकरा एक
ओला भेखदास हा लेगिस, बिगर बताय कलेचुप चोर.
कुकरा ला लहुटा देवय कहि, मंय ओला समझउती देंव
लेकिन ओहर घेक्खर मनसे, मोर बात ला मारिस लात.
आखिर मंय हा हार गेंव तंह, थाना गेंव प्राथमिकी लिखाय
भेखदास हा कुकरा लेगिस, सब आरोप उहां कहि देंव.”
आरक्षक के बरनी चढ़थय, भेखदास ला पास बलैस
भड़किस -“”तंय गरूवा अस दिखथस, नीयत के लगथस दस साफ.
कुकरा खाय लार यदि टपकत, तंय ला सकते एक खरीद
लेकिन तंय नीयत के छोटे, कुकरा के चोरी कर लेस.”
भेखदास इन्कार दीस खब -“”सत्य कहत – मंय हा नइ चोर
पल्टन आय पुराना दुश्मन, मोला धांसत रच षड़यंत्र.
मंय निर्दाेष साफ पानी अस, गलत काम ले रहिथंव दूर
मोर भेद “बन्छोर’ जानथय, जेहर सबके रक्षक देव.”
लेकिन भोला बात सुनिस नइ, कहिथय -“”तंय बोलत हस झूठ
पल्टन हा पगला नइ जेहर, डारत हवय तोर पर दोष.
ठंउका मं तंय हा चोरहा हस, मोर साथ चल थाना रेंग
समझउती ला काट देत हस, तंय हा बंड निसाखिल जीव.”
भेखदास हा बिछल गीस फट -“”मंय नइ करेंव जुरूम के काम
तब मंय काबर थाना जाहंव, उहां मोर नइ थोरको काम.
तंय शासन के आरक्षक अस, एकर मतलब ए नइ होय –
तंय कोई ला दपकी मारस, या थाना लेगस धर बांध.”
भेखदास के ओरझटी सुन, भोला के तन लग गिस आग
ओहर भेखदास ला दोंगरत, कोदई ला परथे मूसर मार.
मनसे मन टकटक ले देखत, उंकर हृदय मं ब्यापत सोग
पर डर मं खुद थरथर कांपत, नइ कर पावत बीच बचाव.
भेखदास ला भोला बोलिस -“”सच मं तंय चोरी कर लेस
मोर साथ उठमिलवई करथस, काटेस शासन के आदेश.
तंय हस खतरनाक अपराधी, पर तंय होना चहत अजाद
मोर चई मं तंय ना रूपिया, तब मंय तोला करिहंव माफ.
यदि तंय ओरझटी कुछ करबे, थाना लेग जहंव तब झींक
उहां तोर बुढ़ना झर्राहंव, टोर के रहिहंव नसना तोर.”
भेखदास ला मार परे हे, पश्त होत हे ओकर देह
ओहर जगनिक के तिर पहुंचिस, अपन व्यथा ला खोलिस साफ –
“”तंय हा सत इमान जानत हस – मंय हा अंव बिल्कुल निर्दाेष
पर पल्टन हा दोष लगा दिस, थाना चल दिस मोर खिलाफ.
आरक्षक हा मोला झड़कत, करत हवय रूपिया के मांग
मंय हा चोरी कहां करे हंव, तब ले सजा मिलत भरपूर.”
जगनिक कथय -“”सलाह देत हंव – यदि आरक्षक मांगत नोट
ओकर हाथ राख दे रूपिया, पाछू डहर गोड़ झन लेग.
यदि तंय नहि मं मुड़ी हलाबे, तब तोरेच होहय नुकसान
क्रूर व्यक्ति ले साफ बचे बर, ओकर गलत मांग ला मान.”
भेखदास हा कथय निहू बन -“”तंय हा देवत नेक सलाह
मगर मोर तिर रूपिया नइये, मंय हा अभी विवश लाचार.
अगर तोर कर नगदी रुपिया, मोर मदद कर दे तत्काल
तंय मनमरजी ब्याज लगाबे, मंय हा देहंव बिन इन्कार.”
जगनिक हा रूपिया गिन दिस तंह, भेखदास के बनगे काम
ओहर आरक्षक तिर पहुंचिस, रुपिया रख दिस ओकर हाथ.
बल्ला हा ओकर ले हटथय, पहुंच गीस घुरूवा के पास
भेखदास के ददा ए ओहर, तेकर पास कहत सब बात –
“”तंय निÏश्चत असन बइठे हस, भेखदास के हाल खराब
ओला आरक्षक हा कुचरत, ऊपर ले मांगत हे नोट.”
घुरुवा हा अचरज मं परथय -“”मोर पुत्र के काय हे दोष
आरक्षक हा काबर पीटत, कुछ तो बता – बात ला साफ. ?”
“”तोर पुत्र कुकरा चोराय हे, पल्टन मढ़त हवय आरोप
इही सूचना ला अमरे बर, भोला आरक्षक हा आय.
ओहर हा कत्र्तव्य छोड़ दिस, करत निसाखिल अत्याचार
ओला कोई छेंक सकत नइ, पुलिस के डर तो होथय खूब.”
घुरुवा घटनास्थल पर गिस, ओकर रुंवा हा होथय ठाढ़
आरक्षक भोला हा मिलथय, करथय बरन चढ़ा के बात –
“”ठंउका मं अन्याव करे हस, भेखदास बिल्कुल निर्दाेष
ओला झड़क के मांगे रुपिया, फोकट के बताय हस रोष.
तुम सम्मन्स इहां देतेव चुप – वापिस जातेव भाई ।
शासन के बूता हा पूरा – नइ उठतीस झमेला ।।
पर न्यायालय ला लगाय हव, जबकि तोर अधिकार ले दूर
शासन ले हक पाय हवस का, गांव पहुंच कर अत्याचार !
तंय अभि गल्ती जेन करे हस, ओकर करिहंव अवस रपोर्ट
यदि थाना हा दुरछुर करिहय, पर मंय हा निराश नइ होंव.
उहां के हट न्यायालय जाहंव, करिहंव प्रकरण दर्ज तड़ाक
मगर तोर धुमड़ा खेदे बर, मंय हा पागी कंस तैयार.”
अतका अकन बोल घुरुवा हा, थाना चलत रिपोर्ट लिखाय
ओहर सुन्तापुर पहुंचिस अउ, सब तिर अपन बिपत ओरियात.
उही तीर मं बात सुनत हें, बिरसिंग मगन साथ बिसनाथ
ततके मं भोला हा पहुंचिस, फिकर मं सिकुड़त ओकर माथ.
कहिथय -“”देखव तो घुरुवा ला, थाना जावत मोर खिलाफ
एला रोक के समझा देवव, मोर कुजानिक कर दे माफ.”
कहिथय मगन -“”मंगे हस रिश्वत, भेखदास ला थप्पड़ देस
तंय अनियाव करे हस नंगत, पर अब काबर घुसरत टेस !”
भोला लाला – लपटी करथय, तब तीनों झन हेरिन राह
किहिस बीरसिंग हा घुरुवा ला -“”तंय झन धर थाना के राह.
जान लेन हम सच बिखेद ला, आरक्षक के हे अनियाव
पर तंय ओला क्षमा दान कर, ओकर रोटी ला झन छीन.
अगर रिपोर्ट लिखावत तंय हा, सिद्ध हो जाहय सब आरोप
भोला के जीविका छिनाहय, ओकर पर दुख के बरसात.
लेकिन तंय कुछ लाभ पास नइ, तेकर ले जिद्दी पन छोड़
भोला के गल्ती माफी कर, अपन बुद्धि ला रख ले शांत.”
घुरुवा बड़ मुश्किल मं मानिस, भूल गीस खैरागढ़ जाय
तंहने भोला कपट ला मन रख, हाथ मिला के वापिस गीस.
खैरागढ़ मं पहुंच के देखिस, आय बीरसिंग घलो इहेंच
सोचत हे भोला हा मन मन – “”बच नइ पाय मोर अब घेंच.
घुरुवा खैरागढ़ नइ आइस, मगर बीरसिंग ला भेजीस
अब एहर रिपोर्ट लिखवाहय, मोर विरुद्ध मं तथ्य सहेज.
एकर पूर्व जांव मंय थाना, उहां करंव मंय उल्टा जिक्र
तब आफत हा मुड़ी आय नइ, मंय निबरित होहंव सब फिक्र.”
भोला हा थाना मं झप गिस, उहां मुलू हे थानेदार
पन्थू अउ हूमन मन हाजिर, उंकर साथ आरक्षक और.
भोला झूठ शब्द ला मेलिस, प्राथमिकी ला दर्ज करैस –
“”मोला घुरुवा मगन बीरसिंग, अउ बिसनाथ खूब गुचकैन.
तोर प्राण ला हम्मन लेबो, अइसे चारों धमकी दीन
दइया – मंइया घलो खूब बक, शासन काम मं बाधा दीन.
ओतिर रिहिन गांव के मनखे, पल्टन अउ बुलुवा कोतवाल
लेव उंकर ले फुराजमोरवी, मोर बात के दिहीं प्रमाण.”
थाना मं रिपोर्ट लिखवाथय हर दिन कतको प्राणी ।
मगर पुलिस नइ झांकय उनकर होवय नइ सुनवाई ।।
पर भोला हा आरक्षक ए, ओहर कलपिस ढाढ़ा कूट
थानेदार मुलू हा सुनथय, तंहने कथय क्रोध मं कांप –
“”दंगा हा भड़कत आगी अस, तेला दउड़ कराथन शांत
आंदोलन ला हमीं दबाथन, जनता के सेवक हम आन.
लेकिन आज होय हे उल्टा – होय हमर पर अत्याचार
भोला के मरुवा ला धर के, देहाती मन झोरिन खूब.
तब देहाती सजा पांय अब, ओमन ला धर के झप लाव
उंकर इहां रगड़ा ला टोरव, एको कनिक मरव झन सोग.”
पन्थू – हूमन अउ आरक्षक, डग्गा मं बइठिन तत्काल
खैरागढ़ ले वाहन रेंगिस, पहुंचिस बन्दबोड़ देहात.
आरक्षक मन घुरुवा के घर गिन, ओतका बखत रात के टेम
पन्थू हा घुरुवा ला बोलिस, मीठ शब्द मं कपट ला मेल –
“”तंय हा हमर साथ थाना चल, उहां हवय तोर अभी बलाव
हम आरक्षक तोर हितू अन, एको कनिक अहित नइ होय.”
घुरुवा पूछिस -“”बता भला तंय – मंय हा थाना काबर जांव
उहां मोर कुछ बूता नइये, तब का कारण चक्कर खांव !
आरक्षक पर रिहिस हे गुस्सा, जावत रेहेंव रिपोर्ट लिखाय
पर समझौता होगिस तंहने, छोड़ देंव खैरागढ़ जाय.
भोला से नइ कुछुच शिकायत, ओकर दोष क्षमा कर देंव
भोला अगर मोर घर आहय, दुहूं खाय बर गांकर साग.”
हूमन किहिस – “”निष्कपट अस तंय, भोला ला माफी कर देस
लेकिन हम्मन कइसे छोड़न, हम मानत हन अति गंभीर.
आय पुलिस जनता के रक्षक, कई करतब हे ओकर पास
अतियाचारी – अपराधी ले, ओहर करत सुरक्षा दान.
पर भोला ए गांव मं धमकिस, करिस स्वयं अपराधिक काम
ओकर गलत काम ले होवत, पुलिस विभाग बहुत बदनाम.
थानेदार क्रोध मं उबलत, भोला पर हे सख्त नराज
भोला खत्तम सजा पाय कहि, ओहर करत उदिम गंभीर.
साहेब हा बलाय हे तोला, हमर साथ तंय निश्चय रेंग
सत्तम बात ला उंहचे ओरिया, एको कनिक लुका झन राख.”
घुरुवा हा डग्गा मं बइठिस – वाहन रेंगिस आगू ।
आरक्षक मन खुशी मनावत – सफल चले हें पासा ।।
एमन अब सुन्तापुर पहुंचिन, आरक्षक मन खेलत दांव
मगन अउर बिसनाथ ला बलवा, उंकर साथ बोलत हे मीठ.
पन्थू हा ओमन ला बोलिस -“”थाना मं हे तुम्हर बलाव
हमर साथ डग्गा मं बइठव, लेग जबो इज्जत के साथ.”
मगन किहिस -“”हम कहां लड़े हन, ककरो संग नइ होय विवाद
सब मनखे संग हली भली हन, तब फिर काबर थाना जान !”
हूमन बोलिस -“”लुक लेव तुम, पर रहस्य हा खुलगे साफ
गीस बीरसिंग हा थाना मं, खोल दीस भोला के पोल.”
अब बिसनाथ हो जाथय चकरित – “”यदि सच तब बताव तुम खोल
थाना मं अभि बीरसींग हे, मगर करत का ओइसन ठौर ?”
पन्थू पुलिस जाल ला फेंकिस -“”हमर बात पर कर विश्वास
एतन आय राह पकड़े तब, थानेदार – बीरसिंग साथ.
ओमन हंस – हंस चाय ला पीयत, करत रिहिन भोला के गोठ
उंहे बीरसिंग फोर बता दिस, बन्दबोड़ घटना के हाल.”
बोलिस मगन -“”होय ते होगे, प्रकरण पर अब परगे छेंक
मान – मनौव्वल होय दुनों मं, भोला घुरुवा बनिन मिलान.
तब प्रकरण ला कार बढ़ावत, ओमां अब लग जाय विराम
भोला ऊपर कष्ट आय झन, ओहर सुख के बासी खाय.”
हूमन कथय -“”बोल झन हमला, यदि भोला पर दया देखात
सोचत – बचय जीविका ओकर, तब फिर चलव हमर संग दौड़.
थानेदार ला जम्मों कहि दव, ओहर मान लिही सब गोठ
तब भोला के अहित होय नइ, ओला तुम बचाव मर सोग.”
अब बिसनाथ कथय ताकत कर -“”मनसे के मनसेच मितान
काबर ककरो जीवन बिगड़य, भोला घलो बिपत झन पाय.
चल हम खैरागढ़ तक जाबो, साहब ला समझाबो साफ
भोला भुला कुजानिक कर लिस, ओला करय हृदय ले माफ.”
जब बिसनाथ मगन मन बइठिन, डग्गा धरिस सरसरा राह
अंदर म घुरुवा हा हाजिर, तीनों धोखा ले अनजान.
एमन जहां अमरथंय थाना, भोला दउड़ उंकर तिर अ‍ैस
ओहर घुरुवा ला बकथय अउ, गाल पीठ पर मुटका दीस
भड़किस -“”मोर विरुद्ध लिखा अब, गांव मं बोलेस तेन रिपोर्ट
मोर नौकरी तुरुत छीन अउ, मोला देखा कछेरी – कोर्ट !
कान खोल सुन – एहर थाना, चलथय इहां पुलिस के राज
आज रात गुचकेला खाबे, तेकर हवय कुछुच अंदाज !”
तीनों झन ला हवालात मं डारिन तुरतेताही ।
उहां बीरसिंग हाजिर जेकर मुंह पर दुख के रेखा ।।
थोरिक बखत गुजरथय तंहने, थानेदार मुलू हा अ‍ैस
इंकर बलउवा फिर होथय तंह, एमन पहुंचिन बंधे कतार.
देखा हथकड़ी ओहर कहिथय -“”देखव काम होत शुभ नेक.
अपन हाथ मं बेली पहिरव, मुड़ निहरा न्यायालय जाव
उंहचे होहय तुम्हर जमानत, तेकर बाद अपन घर जाव.”
तब बिसनाथ किहिस घबरा के -“”तंय हा भले मांग ले नोट
लेकिन बेली ला झन पहिरा, वरना पत पर परिहय चोट.
जेकर हाथ हथकड़ी लगथय, अउ यदि ओकर होथय जेल
ओकर हंसी गांव अउ सब तन, मुड़ ला उठा रेंग नइ पाय.”
मुजरिम मन के मदद करे बर, चंदन भुलाराम मन आय
ओमन रुपिया ला गिन दिन तंह, हाथ मं बेली लग नइ पैस.
भुलाराम, मुजरिम ला बोलिस -“”तुम्मन रहव फिकर ला टार
हम्मन तुम्हर जमानत लेबो, तुम्मन होहव आज अजाद.
अजम वकील बहुत गुनवन्ता, रखथय ज्ञान नियम कानून
ओला अपन वकील करे हन, विजय देवाहय हे विश्वास.”
थोरिक मं आरक्षक संग मं, मुजरिम मन न्यायालय अ‍ैन
पहिली बखत आय ते कारण, मन मं धुकुर पुकुर घबरैन.
अगनू हा ए बैंक प्रबंधक, उहू हा न्यायालय मं आय
ओकर विरुद्ध दर्ज हे प्रकरण, तउन ला खोलत इनकर पास –
“”जल धारा के जउन योजना, पावत कृषक मुफ्त मं नोट
ओमां कृषक कुआं बनवाथय, ताकि खेत मं सिंचई हा होय.
कृषक बिसाल अ‍ैस अगनू तिर, अपन समस्या ला रख दीस –
“नवा कुआं ला मंय बनात हंव, पारित हे ओकर प्रस्ताव.
अब मोला रुपिया भर चहिये, बैंक ले तंय कर दे भुगतान
काम के बदला राशि ला चाहत, गुप्त बात ला कहि दे खोल.”
अगनू किहिस -“”तंहू जानत हस, लेन देन बिन अरझत काम
बी. डी. ओ. अउ ग्राम सहायक, मांगत हें दस प्रतिशत नोट.
अगर शर्त स्वीकार करत हस, तुरते करहूं सब भुगतान
हम्मन आर्थिक लाभ अमरबो, नवा कुआं बन जाहय तोर.”
हुंकिस बिसाल – “”कहत हस ठाहिल, मंय जात रहस्य सब गूढ़
भ्रष्टाचार के विरुद्ध जेहर, अपन बचा के करत कुकर्म.
हे अपराध निरोधक शाखा, उंहचे अगर तोर कुछ काम
ओमन हांक बजा – धन मंगथंय, कोन हा करही उंकर बिगाड़!
चिखला ले जे भगथय दुरिहा, तेन फसल पर भाषण देत
श्रमिक लगा के पेड़ कटाथय, हरियर जग बर किरिया खात.
मनसे करथय गलत आचरण, तेकर जड़ मं धन के मार
अर्थ के बिन हे जगत निरर्थक, मानव हा कोलवा असहाय.
तंय हा मंगत नोट दस प्रतिशत, मंय सब शर्त करत स्वीकार
पर भुगतान देर झन होवय, मोला सच आश्वासन देव.”
अगनू अउ बिसाल दूनों झन गुपचुप बदिन मितानी ।
पर अगनू पर बिपत झपा गिस – ओहर खा गिस धोखा।।
अगनू घूंस के रुपिया झोंकिस, तभे बिसाल रचिस षड़यंत्र
ओहर अगनू ला पकड़ा दिस, ताकि भविष्य छाय अंधियार.”
अपन बिखेद कलप के अगनू, अपन बिपत ला खोलत फेर-
“”मंय अपराध करेंव तेकर बर, न्यायालय मं प्रकरण ठाड़.
ओकर निर्णय आज हे निश्चित, निर्णय हा लटके अधबीच
मंय निर्दाेष या सजा ला पावत – शंकित हृदय हा धक धक होत.”
अब अगनू अउ मुजरिम मन हा, न्यायालय के अंदर गीन
पक्षकार अधिवक्ता बाबू, उहां रिहिन हें कतको जीव.
उंचहा कुर्सी पर बइठे हे, मोतिम महिला न्यायाधीष
अब ओहर निर्णय ला देवत, जेला सुनत उहां के भीड़ –
“”अगनू हा रिश्वत ला मंगिस, याने करिस बहुत अपराध
पांच (एक) (डी) व पांच (दो) धारा, अगनू पर लग गिस निर्बाध.
सब आरोप प्रमाणित होगिस, करन पाय झन शंका – वास
गल्ती कारण दण्ड भोगिहय – गिन दू साल के कारावास.”
इही दृष्य यदि फिल्म मं होतिस, अगनू हा चिल्लातिस जोर –
मंय हा रिश्वत नइ मांगे हंव, एको कनिक मोर नइ दोष.
तभो ले मोला दण्ड मिलत हे, मोरे पर होवत अन्याय
अब मंय मोर विरोधी मन ला, पहुंचा रहिहंव यम के धाम.
मगर इहां के दृष्य हे दूसर – अगनू हवय सुकुड़दुम ठाड़
अंदर हृदय बहुत कलपत पर, कहन पात नइ मुंह ला फार.
उहां हमर अभियुक्त खड़े हें, सन खा देखत दृष्य जतेक
अपन जमानत ला करवाइन, नंगत अक रुपिया ला फेंक.
भुलाराम हा लीस जमानत, चंदन करिस मदद बर दौड़
अजम इंकर प्रकरण अधिवक्ता, जेकर बुद्धि हा बहुते तेज.
जहां कार्यवाही हा निपटिस, मुजरिम मन बाहिर मं अ‍ैन
कथय बीरसिंग तुरुत अजम ला -“”हम बिन कारण के फंस गेन.
तब ले हम एक बात चहत हन – भोला संग समझौता होन
ओकर गोड़ तरी गिर जाबो, पर प्रकरण हा वापिस होय.”
अजम कथय -“”तीन सौ एकचालीस, पांच सौ छै (बी) धारा ठोस
तीन सौ तिरपन – दू सौ चौरनबे, ए धारा मन बहुत कठोर.
भोला ला मनाव बिनती कर, या तुम धरव बहुत ठन राह
पर समझौता होन पाय नइ, प्रकरण चलिहय धर रफ्तार.
लेकिन तुम हिम्मत झन हारव, लड़व अदालत पेशी आव
तुमला दण्ड मुक्त होवय कहि, मंय करिहंव हर किसम प्रयास.”
खेदू साथ मगन हा मिलथय, केंघरिस मगन होय गंभीर-
“”हमर गला मं फासी लगगे, तभे आय न्यायालय तीर.
पर तंय काबर प्राण देत हस, तंय का करेस जघन्य अपराध
अपन असन हमला यदि समझत, साफ कथा ला कहि निर्बाध ?”
खेदू चारों तन ला देखिस, कहिथय -“”मोर कथा झन पूछ
बलवा – आगजनी अउ डाका, यने करे हंव कई अपराध.
कई ठक धारा लगे मोर पर, न्यायालय मं घोषित बंड
मंय बेदाग छूट पावंव नइ, मोला निश्चय मिलिहय दण्ड.
पर छेरकू हा आश्वासन दिस, ओकर ऊपर हे विश्वास
मोर नाव ला उही बचाहय, सब आरोप ले मंय आजाद.”
घुरुवा फांकिस -“”गलत बोल झन, तंय बन झनिच हंसी के पात्र
छेरकू हा मंत्री राजनीतिक, जानत राजनीति ला मात्र.
तोला कहां ले छोड़वा सकिहय, छेरकू हा नइ न्यायाधीष
अउ ना कुछ दबाव कर सकिहय, जब न्यायालय पूर्ण स्वतंत्र ?”
खेदू बोलिस – “”ठीक कहत हस, हवय भविष्य कुलुप अंधियार
साफ बात ला कोन हा कहही, जीवन जब बोहात बिच धार.”
खेदू हा दुखड़ा रोइस अउ, छोड़ दीस अब इनकर साथ
एमन चारों काबर बिलमंय, इनकर खाय चुरे नइ भात.
कांजी हाउस ले स्वतंत्र हो – रड़भड़ भागत गरुवा ।
एमन घलो उहां ले टसकिन – बचा के अपने मरुवा ।।
४. लाखड़ी पांत समाप्त