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किताब कोठी महाकाव्‍य

गरीबा महाकाव्य (सतवया पांत : चनवारी पांत)

गांव शहर तुम एका रहिहव राष्ट्र के ताकत दूना ।
ओकर ऊपर आंच आय नइ शत्रु नाक मं चूना ।।
गांव शहर तुम शत्रु बनव झन रखत तुम्हर ले आसा ।
करत वंदना देश के मंय हा करत जिहां पर बासा ।।
ऊगे ठाड़ ‘गाय धरसा’ हा.पंगपंगाय पर कुछ अंधियार
खटियां ला तज दीस गरीबा, पहुंच गीस मेहरू के द्वार.
मेहरु सोय नाक घटकत हे, तेला उठा दीस हेचकार
बोलिस-“तंय अइसे सोवत हस- बेच देस घोड़ा दस बीस.
लगथय- तोर मुड़ी पर चिंता, याने रिहिस बड़े जक बोझ
लेकिन ओहर जमों उतरगे, तब सोवत हस फिक्कर त्याग?”
मेहरु कथय- “ठीक बोलत हस- जानत घुरुवा मन के हाल
उंकर व्यथा ला लिख डारे हंव, होय पाण्डुलिपि तक तइयार.
ओला भेजेंव क्रांति प्रकाशन, पुस्तक हा छप जाय तड़ाक
मोर परिश्रम पाय सफलता, अउ साहित्य नाम चल जाय.
पुस्तक के मंय नाम का राखंव- मंय रहि रहि के करंव विचार
पर अंतिम मुरथम पहुंचे हंव- क्रांति से शांति रखागे नाम.
ठौंका मंय निद्र्वन्द निफिकरी, हे फिलहाल काम सब बंद
तभे नींद गहगट मारत हंव, लेवत कहां उठे के नाम !
हां, अब बता अपन तंय हालत- काबर आय मोर तिर दौड़
मोर पास हे यदि कुछ बूता, तंय बेझिझक भेद ला खोल?”
हंसिस गरीबा-“उंचहा कवि अस, जमों जगह तोरे भर पूछ
हवय भिलई मं कवि सम्मेलन, उहां के श्रोता करत पुकार.
अपन साथ रचना धर के चल, एकोकन ढचरा झन मार
पारश्रमिक मं तोला मिलिहय- कड़कड़ रुपिया आठ हजार.”
मेहरु हा तइयारी करथय, तुंगतुंग जाय पहिर लिस वस्त्र
चलत गरीबा संग लम्हा डग, अपन साथ धर रचना अरत्र.
गीस गरीबा घर मेहरु हा, पर नइ उहां अन्य इन्सान
तभे गरीबा हा पकड़ा दिस, चुंगड़ी एक गंहू ला लान
धरिस गरीबा बइला नांगर, भर्री गिस मेहरु के साथ
ओहर भेद समझ नइ पावत, तर्री अस फइलावत आँख.
बोलिस- “तंय जे काम करे हस, ओकर ले मंय चकरित होय
वाजिब भेद बता दे मोला, ताकि जमों शंका मिट जाय-
फुरिया कहां पढ़ंव मंय कविता, कहां लगे मानव के भीड़
मंय रचना ला काय करंव अब, इहां लाय तंय काबर झींक?”
कथय गरीबा-“”कर नइ पावत, गंहू ओनारी ला मंय एक
तब तोला झींकत लाने हंव, झूठ बोल करके हठ टेक.”
मेहरू कहिथय- “”काम नेक तब, काबर करत व्यर्थ तंय देर
तोर मदद मंय निश्चय करिंहव, हवय समर्थ मोर अभि देह.
कवि मन लोखन के रचना मं, पर ला कथंय-करव तुम काम
मगर स्वयं महिनत ले भगथंय, कथनी करनी पालत भेद.
आज आय बूता के अवसर, मंय नइ लेगंव पाछू पांव
अपन शक्ति भर महिनत करिहंव, देखंव तो श्रम के परिणाम!”
मेहरू बना लीस फट झोली, भरथय गंहू किलो बस तीन
झोली अपन गला मं बांधिस, काम बजाय करत तनतीन.
हल ला जहां गरीबा खेदिस, मेहरू शुरू करिस अब काम
भर भर मुठा गंहू ला ओइरत, याने होत काम नइ ठीक.
नांगर रोक गरीबा बोलिस-“”कवि लेखक मन बहुत उदार
अपन लेख कविता मं तुम्मन, करथव अधिक शब्द के दान.
पर उदारता इहां देखाहव, बिगड़ जही बोये के काम
एक जगह बीजा घन होहय, दूसर जगह परय नइ बीज.
नेत लगा के काम बजा तंय- गंहू गिरा तंय सतत हिसाब
पौधा उगही एक बरन अस, बिरता तक होही भरपूर.”
मेहरू हंफर हंफर के रेंगत चिमिक करत हे बूता।
कवि हा ढेलवाही मं रेंगत बनत जांग के बूता।।
बउग लगा कुंड़ चिरत गरीबा, मुड़ निहरा के कुछ मुसकात
अगर माल के खुर हा छरकत, लानत ठीक तुतारी मार.
सांस पाय बर बीच रूकिन कुछ, मंझन बखत बढ़ागे काम
बिगर बिहाय छोड़ नइ भागिन, यदपि जनावत चड़चड़ घाम.
मेहरू ढलगिस गोड़ ला छितरा, धुंकनी असन चलत हे सांस
कहिथय-“”पता चलिस अब मोला, कइसन होत खेत के काम!
भला थूंक मं बरा हा चुरथय, जांगर हा पाथय कंस कष्ट
तब किसान हा अन्न ला पाथय, जउन ला खाथय सब संसार.”
कथय गरीबा-“”व्यर्थ चढ़ा झन, हम किसान ला उपर अकास
गलत प्रशंसा मं भूले हन, तब तो बनथन भ्रम के ग्रास.
व्यापारी मन अपन जिनिस के, भाव बनात सोच के लाभ
पर किसान मन अपन जिनिस ला, बेंच पाय नइ खुद के दाम.
मर मर अन्न जउन उपजाथंय, मूल्य बनाहंय स्वयं किसान
उही दिवस वाजिब हक पाहंय, बोनस मं मिलिहय सम्मान.”
मेहरू बात दहावत मन मं- किहिस गरीबा बिल्कुल ठीक
ओहर अब उठके घर जावत, काबर के ब्यापत कंस भूख.
मेहरू श्रम के करत प्रशंसा- महिनत ले तन होथय पुष्ट
कभू रोग हा तिर नइ आवय, दवइ दूर भगथय हो रूष्ट.
लेखक यने बुद्धिजीवी मन, काम देख के भगथंय दूर
मांछी ला खेदन नइ पांवय, अपन शत्रु बनथंय खुद हाथ.”
उदुप मेहरू बात ला छेंकिस, आगुच मं धनवा के खार
ओहर काम करत नइ थोरको, बइठे मेड़ पालथी मार.
ओकर चलत जुहा पर नांगर, नौकर मन निपटावत काम
बड़े बड़े बइला छाती भर, ओमन सरलग आगू जात.
नौकर मन हा हल नइ ढीलत, धनवा के डर मं चुपचाप
हरिना रथय बाघ के हक मं, कभू करन नइ सकय विलाप.
घुरूवा के दिन नइ बदलत नइ पावत सुख बरवाही।
कोन बताय एदे दिन उनकर दुख अंधियार भगाही।।
आगू बढ़िन गरीबा मेहरू, पर धनवा के रेंगत काम
ओकर काम खतम ओ बेरा, कातिक गस खा गिरिस धड़ाम.
बउदा हा उठाय बर धरतिस, पर धनवा छेंकिस ललकार-
“”कातिक हा डायल कोढ़िया हे, इसने देथय मुंहू ओथार
यदि मर जहय तभो ले बढ़िया, जीयत तब का देवत लाभ!
अनसम्हार जनसंख्या बढ़गे, दुसरा बर जग चतरा साफ.”
कातिक ला तज सब वापिस गिन, धनवा घर आ जेवन लीस
तंह टहलू ओकर तिर रोवत-“”अपन हाथ लाने हंव काल.
फुलवारी मं घर फूंके हंव, तेकर फल ला भुगतत आज
केंवरी मोला खूब बखानत… मोर धनी ला तंय हा खाय.
हवलदार ला बच जावय कहि, अपन भूमि ला सुपरित देंव
लेकिन ओला मृत्यु लेग गिस, एमां मोर कहां कुछ दोष!
मोर हाथ ले खेत निकलगे, तेकर याद आत दिन रात
तंय खइ देथस काम के बदला, लेकिन भूख मिटन नइ पात.
धनवा के तेवर हा चढ़गिस- “”तंय हा करे धर्म के काम
यद्यपि खर्चा मरत लगे हे, पर अकास तक चलदिस नाम.
हमूं बनाय हवन एक मंदिर, ओमां लगिस कुबल अक खर्च
पर बाजा धर नइ चिल्लाएन, मन मं जमों बात रख लेन.”
धनसहाय हा झन भड़कय कहि, टहलू ढिलिस बात ला मीठ-
“” ठाकुर, मोर प्रार्थना सुन ले, मोला तुम झन समझव ढीठ.
तोर सिवाय मोर नइ दूसर, तंय मारत या राखस जान
मोर बिपत ला तंय हा छरका, धर के आय एक ठक आस-
यदपि कमावत तोर इहां मंय, तंय हा रखे अभी तक पाल
लेकिन पेट तरन नइ पावत, तब मंय बम्बई भगत कमाय.
अड़चन एक आत जमगरहा- टिकिट कटाय नोट नइ पास
मोर सहायक तंय हा बन जा, बदला मं जे चाहत सोंट.”
धनी उच्च पद हें ततका मन, पहिली देखा देत हे क्रोध
लेकिन जहां लाभ हा दिखथय, बात करत मंदरस अस मीठ.
“”तोर मदद मंय करत हमेशा, कब लहुटे हस जुच्छा हाथ
करू जबान दुसर मन देथंय, पर मंय देत अंत तक साथ.
स्वाभिमान हे तोरे तिर मं, बात ले छरकस नइ तिनकाल
मोर पास मं तोरेच घर हे, ओला मोर नाम मं डार.
मोर चौंक के रूप सुधरिहय, तोर सरकिहय अरझे काम
मंय हा फोकट मं नइ मांगत, तोला दुहूं चोख अस दाम.”
टहलू जे घर मुड़ी छुपावत, उही मकान होत बेहाथ
जउन जंवारा ला डंट मानिस, दुख के बखत छोड़ दिस साथ.
धनवा हा घर बिसा लीस अउ गिन दिस ओकर रूपिया।
टहलू हा वापस हो जाथय दुख मं रोवत आत्मा।।
टहलू भिड़ के टक्कर लेवत, धनसहाय के करत विरोध
कूटनीति चल ओला खेदत, तुरूत छोड़ात शत्रु ला गांव.
कातिक हा भर्री ले लहुटत, टहलू संग हो जाथय भेंट
टहलू किहिस-“”गांव छोड़त हंव, मोर इहां ले मटियामेट.”
कातिक बोलिस- “”तोर असन मंय, सक ले अधिक पात तकलीफ
लेकिन कभू गांव नइ छोड़ंव, करना हे शोषक ला नाश.”
कातिक हा धनवा घर जाथय, धनवा हा तिर मं बइठैस
बहुत प्रेम से बात चलावत, करत प्रशंसा चढ़ा अकास.
धनवा हा फगनी ला बोलिस- “”भूख मरत कातिक के पेट
एकर खाय हेर तंय जेवन, एकोकनिक समय झन मेट.”
फगनी हा कातिक ला देइस, बने जिनिस ओकर भरभेट
कातिक ओंड़ा आत ले खाइस, पुन& कमात क्रोध ला भेट.
टहलू बोधनी गांव ला छोड़त, उंकर कहां हे खार मं खेत
सुन्तापुर ले नता हा टूटत, दुख अउ चिंता जिव ला लेत.
मेहरु तिर टहलू हा बोलिस-“काय कहंव मंय अपन बिखेद
एक सुजी भर भुंइया तिर नइ, खुंटीउजार होय घर खेत.
मुम्बइ मं मिलिहय बूता धन, काम करे बर श्रमिक बलात
मोर असन अउ कतको मनसे, गांव छोड़ बस उंहे भागत.
इहां करत हम काम मरत ले, पर पसिया बर होत अभाव
लेकिन बम्बई मं मिल जाहय, जीवन के रक्षा बर दाम.”
मेहरु किहिस- “”सत्य बोलत हस, पर बर्बाद होत हे देश
नगर मं बाढ़त भीड़ रात दिन, मनखे बिगर गांव सुनसान.
बिन मजदूर अन्न नइ उपजय, लगे हवय तुम पर सब भार
जमो श्रमिक मन गांव ला त्यागत, कोन कमाहय खेत कोठार!”
डकहर हा टहलू ला ठेलिस-“”यदि विचार तब निश्चय भाग
खजूर के एक गोड़ हा टूटत, तब ले ओहर रेंगत खूब.”
मेहरु छरिस-” भगत हें मनसे, मरघट असन सांय हे गांव
दुसर भरोसा तीन परोसा, चिखला परिस तोर कभु पांव!
भाव बढ़ाके जिनिस ला बेचत, बइठ के झड़कत किसमीस दाख
केंदुवा चरत परिश्रम ला कर, तब तंय खरथरिहा हुसनाक.”
डकहर किहिस- “ज्ञान झन बांटव, कर डारेंव बम्बई मं काम
ओकर फल ला अब पावत हंव, खात पेट भर पात अराम.”
डकहर अपन प्रशंसा करतिस मोटर आगे गप ले।
टहलू बोधनी दूनों चढ़गिन मोटर मं टपझप ले।।
डकहर खड़े दांत ला पीसत, चहत उतारे बर अउ झार
मेहरु हा हटगिस ओ तिर ले, डकहर हा लहुटत मन मार.
झंगलू शिक्षक लकड़ी चीरत, डकहर कहिथय ओला देख-
“अइसन बुता खभय नइ तोला, एको झन नइ बोलंय नेक.
कुर्सी टोर के वेतन लूटत, काबर देत देह ला कष्ट
पर के पास काम ला करवा, अपन बइठ के बढ़िया खाव.”
“”तोर अतिक मंय कहां कमावत, जेमां करंव नोट ला नाश
महिनत मं तन फुरसुद रहिथय, श्रम ला देख भगत हे रोग.”
झंगलू छोड़िस व्यर्थ उलझना, रखिस अपन तिर कड़ा जुवाप
ततके मं केवरी हा पहुंचिस, फिकर मं जेकर हाल खराब.
केंवरी हा डकहर ला बोलिस- “”तुम्मन सुन लव मोर बिखेद
मोर साथ उठमिलवइ करथय, जबकिन मंय ओला सुख देत.
तुम ओला थोरिक समझ देव, ताकि होय झन व्यर्थ नराज
बुतकू मोर मया नइ छूटय, सत्य कहत हंव तज के लाज.”
डकहर भगिस- “”परंव नइ फरफंद, हमला तंय ढाठी झन डार
पर के न्याय ला काबर टोरंव, दूसर तिर तंय मार पुकार.
बुतकू के आदत मंय जानत- ओहर बहुत बण्ड इंसान
तुम्हार बीच यदि न्याय भंजाहंव, बुतकू हा चढ़िहय मुड़ मोर.
मंय बिसाय ओकर बइला ला, तब के जानत ओकर हाल
स्वयं कुजानिक काम ला करथय, पर दूसर पर डारत दोष.”
डकहर भड़क उहां ले सल्टिस, केंवरी खड़े मुड़ी गड़ियाय
झंगलू हा केंवरी घर जाथय, सास बहू के लड़ई मड़ाय.
बहुरा वृद्धा हा सच बोलिस- “”बुतकू केंवरी करत अनर्थ
देवर भउजी आय दुनों झन, मगर धर्म तज करत कुकर्म.
हवलदार के व्यथा ला जानत, पुत्र आस मं जीवन दीस
ओकर सुरता आवत जे छन, आत्मा मं बरछा के मार.
केंवरी बिन पति के रांड़ी हे, रहिना चहिये बन गंभीर
लेकिन हंसत पेट भर खावत, अपन चरित्र के खोलत पोल.”
झंगलू हा पर जथय दुसंधा, कइसे टोरय न्याय विचित्र
रहड़ा धर के बुतकू आइस, इनला देख के रोकत पांव.
झंगलू गुनिस- उदुप आ जाथय, कठिन प्रश्न हा जाल समान
जउन गुणी ला छांद के राखत, उबर जाय बर बुद्धि नठात.
खाय पिये निश्चिंत जिये बर सब झन हें अधिकारी।
यदि केंवरी के मन आनंदित कार बनंव मंय आड़ा।।
एकर प्रेम चलत बुतकू संग, यदि छोड़त हंव उनकर साथ
केंवरी के चरित्र अउ गिरिहय, तंहने सकिहय कोन सम्हाल!
विधवा व्याह मान्यता पावत, एहर बांटत नवा प्रकाश
बहुरा आय पुरातन मनखे, मंय समझांव धर्म अनुसार.
झंगलू हा बहुरा ला बोलिस- “”बीच मं भेंगराजी झन पार
देवर भउजी संग मं रहिथंय, तब तंय मुंह ला झनिच ओथार.
असल मं सड़पत हे तोर ऊपर- जग के डर मं फिकर के रोग
मगर चुरी परथा सतजुगिहा, जउन ला शास्त्र हा कथय-नियोग.
खाली हाथ रहय औरत हा, लेकिन तलफत बिन संतान
अपन वंश के वृक्ष बढ़य कहि, देवर संग जोड़य संबंध.
पर अब एमां आत समस्या- पहिली ले बदलत संसार
होत पुत्र मां देवर भउजी, यने होत मर्यादित स्नेह.
मंय हा साफ कहन नइ पावत, एमन रखंय कते संबंध
तंहू अपन मुंह ला चुप रख ले, एमन रहंय अलग या साथ.”
झंगलू हा बहुरा ला बोलिस, तंह वृद्धा रहिगे चुपचाप
भिरहा के भुरकू ले होथय, गरूवा के घाव हा चट साफ.
समय सदा कर्तव्य निभाथय, बइठ पाय नइ गड़िया खाम
धान लुए बर देत निमंत्रण, होवत धान लुवई के काम.
चलत कृषक खुद के डोली तन, फुरसुद नइ बोले गोठियाय
धान हा आय कोठार मं जल्दी, कृषक भुलाय नहाना खाय.
लइका मन भिड़ सिला ला बीनत, जउन मेर के उठथय धान
सीला मींज दूकान मं जावत, ओकर बदला मुर्रा खात.
दुखिया भिरे कछोरा कंस के, सुर बोहि भारा झपझप लात
वजन जनात गोड़ लोढ़ियावत, मगर काम हा सरलग जात.
जउन पिलारी मांईलोगन, शिशु ला दूध पिया नइ पात
अनमहराज कोठार मं लानत, भारा रख फिर दउड़त खेत.
धनसहाय हा बड़े गोंसइया, नइ सकलात जल्द सब खार
मुड़ी नवा कुबरी कर कनिहा, काम बजात बहुत बनिहार.
कातिक फूलबती दूनों झन, शर्त लगाइन आपुस बीच-
जउन ददरिया मं जीतत हे, ओहर लेगय घर मं खींच.
याने फूलबती यदि हारत, पंइठू घुंसिहय कातिक पास
यदि कातिक हा शर्त ला हारत, तब बनिहय घरजिंया दमांद.
दुनों बीच अब चलत ददरिया, दूनों रखे विजय के आस
उहां श्रमिक हाजिर तेमन हा, सुनत ददरिया टेंड़िया कान-
“”चितावर मं राम चिरई बोले
चितावर मं राम चिरई बोले
तोला कोन बन मं खोजंव मोर मैना मंजूर
जोड़ी मोला तार लेबे रे दोस…।
जोड़ी मोला तार लेबे रे दोस…।
कातिक-
धाने हा दिखत ठाहिल पोक्खा
पर भीतर मं फलफल हवय गा बदरा
देखव मं सूरत बरत अस गा
पर हिरदे के कपट हा कुलुप करिया.
फूलबती-
आमा लगाएंव खाहुंच कहि के
पर बमरी के कांटा गड़त छाती ला
बोलेंव मंय हंस के मया ला अमराय
तेहा दुश्मन अस बोलत दिहिच धोखा गा.
ऊपर मं जे गैन ददरिया, हिरदे बेध बना दिस घाव
अब संबंध होय मिश्री कहि, पंक्ति ढिलत कर मीठ अवाज.
कातिक –
करके गा मिहनत झड़क बासी
तोला देख लेथंव क्षण भर जुड़ाथय छाती.
फूलबती-
तंय जिंहा जाबे मोरो हे रद्दा
तंय सुबहो के सूरज मंय सांझ के चंदा.
अब के स्पर्धा सैद्धान्तिक, कठिन प्रश्न के उत्तर ठोस
दुनों पक्ष हा करत तियारी, ताकि विजय हा ओकर ओर.
फूलबती हा भिरिस कछोरा, कातिक हा पगड़ी सम्हरैस
निर्णायक के बुद्धि टंच अस, श्रोता हेरिस कान के मैल.
कातिक-
बघवा के मुंह मं दबे हे हरिना
जन जन के भविष्य ला खावत हे लुटेरा
फूलबती-
सुख पाना हे तब उदिम कइसन
सब भाई बहिनी रेंगव एकेच रस्ता
अब कातिक के पांत पहुंच गिस, पर ओहर धथुवा चुपचाप
फूलबती सरियत जीते बर, अपन पक्ष ला करथय पोख.
फूलबती-
धनहा रे खेत मं बाजथे बंशी
याने क्रांति के बेरा निमंत्रण ला देवत
फूलबती-
गाये के बछरू पियत हवय दूध
जनता के युग आगे खावत दही बासी.
कातिक हा आगू नइ बोलिस तंहने हारिस बाजी।
टूरा हा टूरी घर जावय कोन परय भेंगराजी।।
हगरू हा कातिक ला बोलिस- “”होगिस खतम पुरूष के राज
फूलबती घर तंय हा रहिबे, कर उंहचे रांधे के काम.”
कातिक किहिस- “”बदलगे युग हा, तब चलिहंव ओकर अनुसार
फूलबती अउ मंय दूनों झन, उठा के चलबो घर के भार.”
कलुवा नाम भिलइवाली हा, सुनत ददरिया टेंड़िया कान
बइठ फटफटी आय हे ओहर, लगत हवय पुंजलग इंसान.
सोचत हवंय श्रमिक बाटुलमन… कलुवा कहूं के बड़हर पात्र
एकर स्थिति हमर ले उंचहा, वस्त्र कीमती पहिरे झार.
कलुवा सब के चित्र खिंचिस अउ, कहिथय- “”मंहू आंव मजदूर
लोहा के कल मं जूझत हंव, देह दरद मं चकनाचूर.
जांचे आय तुम्हर हालत ला, लेकिन इहां होत अफसोस
तुम्मन मोरे पर भड़कत हव, का कारण होवत आकोश?”
“”नान्हे बुध ला एल्ह भले तंय, पर तंय नोहस धगड़ा मोर
हमर बंहा धर कोन उठाहय, टोरत हे रगड़ा दुख भूख.
अगर पाट भाई अन हम तुम, अंतर कार दुनों के बीच
सब ला एक बरोबर सुविधा, काबर भेद कमल अउ कीच?”
कातिक हा करला के बफलत, कलुवा मानत बन गंभीर
सत्य शब्द ला हर क्षण मानत- गुणी आदमी मति के धीर.
कलुवा बोलिस- “”मंय पतियावत, कोन ला बिपत पाय के साध
लेकिन क्रांति करे बर लगिहय, तब फिर पूर्ण जमों के साद.
तुम्हर साथ मंय हठ कर चलिहंव, साथ चलव बनिहार किसान
जोरफा देख टिकन नइ पावय, गिने गिनाये घर के मान.”
धनवा हा छुप बात सुनत हे, दउड़िस बाद खूब बगियात
कलुवा ला मुटका हकराइस, छाती पर चढ़ नरी दबात.
कलुवा के आंखी हा छटकत, रूके चहत हे ओकर सांस
ओहर दुनों गोंड़ ला खुरचत, थोरिक बचे बने बर लाश.
नौकर मन ला करलइ ब्यापत, लेकिन डर मं बंद जबान
धनवा खुद कलुवा ला धूंकत, खेत होय झन मरघट घाट.
बाद मं कलुवा के बुध जागिस, झांझर आंख लोरमगे देह
चले चहत पर गोड़ थम्हत नइ, उही पास बइठिस मनमार.
धनसहाय कलुवा ला एल्हिस- “”वह रे अलख जगइया जीव
झोंका एक थाम नइ पावत, कहां उखनिहय शोषक नींव!
अब कभु बरगलाय बर आबे, पानी बुड़े बचन नइ पास
बोकरा के खंड़री अस निंछिहंव, खाहंय चील तोर चिथमांस””
धनवा हा कलुवा ला खेदिस, यद्यपि कलुवा हे कमजोर
ओहर रेंगत लिड़िंगलड़ंग कर, मन मं हवय क्रांति पर मोह.
दंउचे हे तब कुटकुटी पीरा, तभो चलत हे हिम्मत तान
एक बियारा तिर जा देखत- मींजत हवय गुहा हा धान.
भारा छोर धान ला छीतत, गड़िया रखे बीच मेड़वार
बइला मन के फंदे हे दौंरी, गुहा हा खेदत लउठी मार.
पुनऊ थुकेल दउड़ के आइन, खेलत उलाण्डबांटी खेल
गुहा हा कतको डर्हुवा बरजत, पर लइका मन देवत पेल.
गोबर करथय बैल पखरिया, उचक छटारा मारिस जोर
पुनऊ उड़ा थुकेल पर गिरगिस, रोवत दुनों कल्हर चिरबोर.
दस महिना तक पेट मं रोखेंव कहां जियानिस मोला।
तुम रोवात हव लइका मन ला- तुम हव निष्ठुर चोला।।
कैना आय गुहा के खटला, तेन करिस कलकल कर क्रोध
ओहर लइका मन ला पाथय, ओकर बाद किहिस कुछ सोध-
“”तुम्मन अब थोरिक सुस्ता लव, तरपंवरी मं होवत दर्द
तुम्मन महिनत जोंगे हव तब, काम करे के करतब मोर.”
कैना हा अब दंवरी खेदत, पति लेवत हे बइठ अराम
पत्नी हा गूहा पर भड़किस, ओकर मन मं नइ दुर्भाव.
कलुवा प्रेम देख के सोचत- “”एमन लड़मिल काम बजात
यदि समान हक सब झन पातिन, स्वर्ग असन बन जातिस गांव.
यदि आर्थिक स्थिति हा उत्तम, भगतिस कोन गांव ला छोड़
शहर नगर के रूप सुघर अक, देश के नक्शा मं सुख हर्ष.”
दुसर कोठार ला कलुवा देखत- झिंकत कलारी धर पछलोर
बइला मन बर कोलिहा कातिक, दाना नावत पेट दमोर.
दंवरी ढिल पयरा ला तिरिया, अन सकलत खरहेरा मार
धान कूत हा ठीक उतरिहय, खुश होवत हे जुगुल हा सोच.
सूपा उठा ओसावत तनिया, खुद किंजरत जस रेंगत वायु
अन्न हा रदरद पास गिरत हे, थोरिक दूर गिरत हे भूंस.
तीसर ठंव जा कलुवा जांचत- रास रखे परछिन अस्थान
सिलियारी फुल गोबर मोखला, उपर कलारी तीन निशान.
एक के बदला राम ला बोलिस, कृषक हा नापत हवय अनाज
Ïक्वटल बाद कुढ़ी एक राखिस, करथय पुन& नपई के काम.
छितरे अन्न गरीबा सकलत, कलुवा आथय ओकर पास
ओखर आंख धंधमंधा जाथय, तंह भुंइया पर गिरिस दनाक.
झझक गरीबा ओला देखत, पर नइ करन सकत पहिचान
उठा गरीबा घर मं लानिस, ओकर जतन करत हे तान.
दुखिया तक पाछू नइ सल्टिस, करथय कलुवा के उपचार
दिन कर्तव्य पूर्ण कर लेथय, कलुवा देखिस नैन उधार.
हल्का लगत तन मं कम पीरा, होगिस हवा फिकर डर क्रोध
एक हा ओला मरत ले झोरिस, दूसर जतन करिस तिर ओध.
कलुवा हा कुछ पूछे रहितिस, उदुप ऐस मानव के भीड़
ओमन धरे अरत्र अउ लउठी, क्रोध देखात करत तरमीर.
किहिस गरीबा हा ओमन ला- “”तुम सच फोरव अपन विचार
हमर तुम्हर नइ झगड़ा झंझट, काबर आय पकड़ हथियार?”
पूर्व बात कहि कातिक बोलिस- “”चहत सुने कलुवा के हाल
धनवा एकर छटठी गिन दिस, रोष बता अगिया बयताल.
हम्मन रेहेन मगर नइ छेंकेन तब मांगत हन माफी।
अब हम कते काम ला फांदन- तुम बताव सत रस्ता।।
कातिक के मुंह हा चोंई अस, मांगत क्षमा प्रकट कर क्षोभ
अब तब प्रायश्चित तक करिहय, अइसे दिखत उहां के दृष्य.
कथय गरीबा हा कातिक ला- “”तंय हा करत क्षमा के मांग
अपन कुजानिक ला स्वीकारत, पर वास्तव मं एमन व्यर्थ.
कलुवा रोय हवय अपमानित, ओहर खाय रचारच मार
लुटे प्रतिष्ठा हा लहुटय नइ, अमरबेल अस मन के घाव.
ककरो प्राण हरत हे हिंसक, बाद करत माफी के मांग
पर प्रार्थना निरर्थक जाहय, मृतक हा नवजीवन नइ पाय.
धनवा हा कलुवा ला पीटिस, तब तंय हा जस दर्शक मात्र
इहां अमर के ढाढ़ा कूटत, एहर आय गलत अन्याय.
पश्चाताप प्रायश्चित रोना, क्षमा मांगना आशिर्वाद
श्राप-रोष कर दया देखाना, एमन सब यथार्थ से दूर.
जब उद्वेग भावना बहिथय, तब उपरोक्त तथ्य के दृष्य
पर कुछदिन हा कट जावत तंह, नष्ट होत हे इंकर प्रमाण.”
कातिक ला अउ कथय गरीबा- “”मंय बोलत अतका अस गोठ
ओकर सफ्फा कारन सुन ले, दगदग समझ जाव सच अर्थ.
हम परिवर्तन करे चहत हन, क्रांति के बाद आय फट शांति
अपन विचार साफ कर पहिली, गोड़ फूंक रेंगव नव राह.
जतिक बुराई पूर्व बताएंव, सच के दुश्मन के कर त्याग.
उहिच धार मं अगर बोहावत, सब उदेदश्य बोहा जहि धार.
तुम्मन क्रांति धान बोये हव, रक्षा करव डार जल खाद
तिरिया रख भ्रम भूल बहाना, तब कट सकिहय ठोस अनाज.”
सुनिस गरीबा के कथनी ला, कलुवा ला होवत विश्वास-
“”हवय गरीब मंथिर ज्ञानिक, कड़क ठोस सिद्धान्त विचार.”
मिलिन गरीबा अउ कलुवा मन, आपुस मं करथंय पहिचान
अलग अलग तन बरन रूप हा, मगर राह सम निरमामोल.
कलुवा कहत गरीबा ला अब- “”मंय हा राखत एक सवाल
तंय धनवा ले टक्कर लेवत, शोषक ला मानत हस शत्रु.
क्रांति करे बर लुकलुकाय हस, तेन क्रांति के कइसन रूप
क्रांति के बाद व्यवस्था कइसन, खोल बता तंय ओकर नाम?”
कथय गरीबा- “”तंय चेतलगअस, तभे रखत हस कठिन सवाल
अपन बुद्धि तक मय ओरियावत, हम उद्देश्य रखे हन जेन.
हम संघर्ष करत शोषक संग, एकर कारन दगदग साफ-
गांव के सब जन सुख ला पांवय, ककरो हक हा झन मर पाय.
जउन व्यवस्था ला चाहत हम, ओकर सुम्मत राज हे नाम
एमां मानव के व्यापक हित, निश्चय पाहंय सब झन लाभ.”
कलुवा कथय- “”जउन तुम सोचत, वास्तव मं जनहित के राह
सुम्मत राज पर रखत भरोसा, दिखत चकाचक भावी साफ.
अरि के धुमड़ा खेदव सुंट बंध, क्रम अनुसार राख मन धीर
कृषक धान ला जांच के काटत- हरूना बाद मं मांई धान.
महाकाव्य बर लगत बछर कइ, नइ कोड़ाय एक दिन मं ताल
मगर हवय विज्ञान असन सच- झुखिहय अवस भेद के ताल”
कलुवा हा समझाइस तंहने सुम्मत बांधत साथी।
कातिक मन ओतिर ले उसलिन मन मं रख प्रण थाथी।।
कथय गरीबा हा कलुवा ला- “”कातिक मन हा लीन सलाह
धनवा तिर रहस्य खुल जाहय, क्रांति काम के खुंटीउजार?”
कलुवा कथय- “”टिंया ले होवत, शोषित रहस्य ला बगरात
पर शोषक मन कहां ओनारत, तभे उंकर मुड़ पहिरत ताज.
मगर एक ठन बात घलोसच- तिर मं होथय भेदिया एक
शत्रु के गुप्त भेद ला फोरय, तभे उखनिहय रिपु के भेद.”
एकर बाद खाय बर बइठिन, ओकर बाद नींद हें नींद
कलुवा बड़े फजर जागिस अउ, अपन भिलाई वापिस गीस.
सनम, गरीबा तिर आ बोलिस- “”परलोदसा होय हे आज
एक व्याक्ति हा मरे परे हे, गिरगे गांव बिपत के गाज.”
मंगत गरीबा पूरा उत्तर, मगर सनम नइ देत जवाब
झीकं गरीबा ला धर लानिस, जिंहा भीड़ हा खड़े बिचेत.
थोथना फारे सब अचरज मं, धुंकनी असन चलत हे सांस
माछी भिन-भिन कीरा बिल बिल, पिच पिच मांस कुबल गंधात.
लाल लहू चप आंखी गायब, डेना अंगरी नख नइ साथ
अतड़ी पोटा छिदिर बिदिर हे, जनन तंत्र हा दूर अनाथ.
मनसे मन सूंघन नइ पावत, मन भिरगात लगत ओकियास
सब के रूंआ ठाड़ डर कारण, बात करे बर शक्ति खजार.
मनखे मन निरघा के चीन्हिन- एहर आय भुखू के लाश
जानिन तंहने चेत उड़ा गिस, हवा अमर के देव कपास.
एक दुसर ला अंखिया पूछत, पर कोई नइ देत जुवाप
शंका करत होय हे हत्या, लेकिन करे कोन हा पाप!
आखिर धनसहाय हा बोलिस- “”भुखू रचय सब बर फरफंद
ओकर होश हमेशा गायब, दिन अउ रात पिये बस मंद.
खवईपियई तक ला तज देवय, करय जान के नइ परवाह
पीलिस होहय मंद पेट भर, तभे उखड़गे एकर प्राण.
गांव के तिर मं दहपट जंगल, घूमत हें वन पशु आजाद
ओमन शव ला चीथदीन तब, लाश के गति एकदम बर्बाद.
थाना मं यदि देत सूचना, सबला थुरिहय थानाध्यक्ष
भुखू जियत भर सबला घालिस, भूल लेव झन एकर पक्ष.
इहां जतिक झन सब अपने हन, भूंज देव फट एकर लाश
गांव के कुकुर भुंकत गांवे तन, आंच आय नइ ककरो पास.”
शव के दहन होत लकलउहा, राख बना दिन शव ला फूंक
जुगनू नंदा जथय बुगबुग बर, तइसे भुखू सदा बर नाश.
मनसे मन घर तन झप भागिन जइसे गरूवा छेल्ला।
डर मं आपुस मं टकरावत यदपि जगा हे मेल्ला।।
धनसहाय के सीगं हा बाढ़त, जइसे अमरबेल के बाढ़
अपन शक्ति पूंजी जोड़े बर, खेलत हे क्रूरता के खेल.
राजबजन्त्री हुम्मसिया बन, धान उघावत घुसर कोठार
दसहत धाक जमे कहि राखे, अपन साथ मं दू ठेंगमार.
बइठे झड़ी रास के तिर मं, नापत हवय कमइ के धान
धनवा ओकर तिर मं पहुंचिस, झड़ी ला बोलिस टांठ जबान-
“”झख मारे बर नइ आये हंव, झप लहुटा बाढ़ी के धान
तिंहिच एक झन कर्जीला नइ, मंय जाहंय अउ कइ खलिहान.”
बपुरा झड़ी सुकुड़दुम होथय, बाघरूप धनवा ला देख
कहिथय- “”सत्य बात एहर हा- मांगे हंव बाढ़ी मं धान.
ओमां खेत निंदाई होइस, डोकरी के होइस उपचार
पर सब खर्चा व्यर्थ बोहागिस, मोर संगिनी छोड़िस साथ.
बिस्वासा हा बच नइ पाइस, लीस रोग हा ओकर प्राण
ओकर तिर पंयकड़ा अउ सुंतिया, जेकर पर ओकर अति प्रेम.
ओ गहना ला धर के मंय हा, तोर पास मंय दउड़त गेंव
तोर हाथ मं सुपरूत करके, छूट डरे हंव जम्मों कर्ज.
लेकिन तंय हा फिर मांगत हस, तब मोला होवत आश्चर्य
तंय हा पुरे गोंसइया खुद हस, नीयत ला रख बिल्कुल साफ.”
खाता खोल देखाइस धनवा, झड़ी हा देखत मुंह ला फार
ठंउका मं नइ कटे कलम हा, ऋण हा अंकित पूर्व समान.
धनवा कथय- “”धान लेगे हस, ओकर कर्ज छूट नइ पाय
लेकिन तंय हा कहत लबारी- मंय हा पटा डरे हंव कर्ज.
ऊपर ले लांछन डारत हस, झन बिगाड़ तंय वृद्ध जबान
स्वंय घोख के सच ला फुरिया- मंय सच बोलत के बेइमान?
“”तुम्हर हाथ मां राईदोहाई, करव रक्सहूं ला भण्डार
पर अब भरत पाप के गगरी , बइठ जहय झप चलत बाजार.”
झड़ी हा अतका दीस सरापा, टुकना मं नापत हे अन्न
धनवा पढ़त हवय अब होले, भिड़े तान बुढ़ना झर्राय-
“”अभी छूट दे कर्जा ला तंय, तोर मोर संबंध मिठास
अगर एक कन होत उदेली, लेग जहंव सब धान ला तोर.”
धनसहाय हा खखुवा जाथय, झड़ी ला मार दीस चेचकार
बुजरूक झड़ी असक ते कारन- अत्याचार सहिस झखमार.
धनवा जबरन धान ला लेगत, रेंगत हे छाती ला तान
धनवन्ता लूटत हिनहर ला, लवा ला जइसे जिमथय बाज.
धनसहाय हा निहु ला लूटत, पुख्ता करत क्रूरता हाड़
इसने सबला कपसाये बर, दड़ंग पहुंचगे मौसम जाड़.
मनसे मन खड़भुसरा फेंकत नाक ले सुड़सुड़ पानी।
रूंआ ठाड़ मुंह सीसी बोलत कष्ट पात जिनगानी।।
परवा ले जल गिरत टपाटप, पत्ता पर मुसकावत ओस
यने क्रांतिकारी हा हर्षित, शोषक मुड़ चढ़ खुशी मनात.
प्रात& सूर्य ओस ला चुहकत, तब फइलावत अपन प्रकाश
लेखक के पारश्रमिक ला खाथय, धन बढ़ जथय प्रकाशक पास.
धाम के दादागिरी चलत नइ, हवा बढ़त बरछी तहि तूत
दिन हा झपकुन फुस ले भागत, पर रतिहा के उमर अकूत.
झरिहारिन गुंड़री बन सोए, रखे गली ला वक्ष चिपोट
पुत्र हा सोवत फिर जग जागत, झरिहारिन रक्षा कर लीस.
गली ला एकदम जाड़ बियापत, झरिहारिन हा करिस उपाय
पहिरे लुगा तउन ला हेरिस, बिगर वस्त्र होथय जस गाय.
गली ला लुगरा ओढ़ा दीस अउ, ओला पकड़िस पुन& चिपोट
अपन जाड़ मं ठरठर कांपत, पुत्र बचावत हे हर ओट.
बड़े फजर तंह कोदिया आइस, बोलिस- “”सुन रतिहा के हाल
तन ला कंपा डरिस जाड़ा हा, मिंहिच आंव कहि लाहो लीस.
घेक्खर जाड़ा ले निपटे बर, गोरसी भरे करे हंव काम
छेना-लकड़ी के छिलपा रख, कोदो के भूंसा भर देंव.
जहां सोय के बेरा आइस, मंय गोरसी ला सिपचा देंव
खटिया तरी राख गोरसी ला, मंय लेवत हंव ओकर आंच.
रूसुम रूसुम कर आंच हा आवय, पर जाड़ा ले खागे हार
मोला नंगत जाड़ बियापिस, पूरा रात नींद नइ ऐस.”
झरिहारिन तक दीस हुंकारू- “”मुंह के बात तिंही छिन लेस
अपन बेवस्ता ला यदि कहहूं, तंय मोला कहिबे बेशर्म.
पुत्र गली हा जाड़ मं कांपत, रक्षा बर मंय करेंव उपाय-
ओला घुमघुम ओढ़ा देंव मंय, अपन जमों लुगरा ला हेर.
मंय होगेंव बिना कपड़ा के, अब नइ कहंव साफ अस गोठ
यद्यपि मंय केवा तापे हंव, पर बताय मं आवत लाज.”
“”जेहर दुख विपदा नइ भोगे, जेन पाय नइ कमी अभाव
तोला दुश्चरित्र कहि सकिहय, निंदा करिहय चारों ओर.
मगर पुत्र के रक्षा खातिर, जउन करे हस तेहर ठीक
ककरो जीवन के रक्षा बर, अच्छा बुरा सबो हा माफ.”
तभे उंकर तिर पुसऊ हा आइस, कथय को दिया ला ए बात-
“”अमरउती के हाल ला जानत, ओहर गरभवास ए टेम.
बच्चा जने बखत तक आगे, अमरउती हा दुख ला खात
पर बच्चा हा गरभ मं अटके, ओहर हा बाहिर नइ आत.
तभे उहां हे तोर जरूरत, मुढ़ीपार चल मोरेच साथ
यदि तंय हा नटबे बिन सोचे, बदनामी आहय मुड़ तोर.”
बात सुनत कटखागे कोदिया- “”तंय हा देस खभर गंभीर
चल मंय चलत तोर तोलगी धर, एको कनिक करंव नइ देर.
तंहू सुना अपनो किस्सा ला, कइसे चलत तोर परिवार
लछनी ला कब तक घर रखबे, ओहर कब जावत ससुरार.”
बोलिस पुसऊ- “”आय हे जइतू, लछनी ला लेगे बर साथ
मंय हरहिंछा बिदा ला करिहंव, एकोकनिक परंव नइ आड़.”
उहां ले रेंगिन पुसऊ अउ कोदिया, मुढ़ीपार मं आके ठाड़
गोस कोदिया अमरउती कर, जांच करत हे ओकर हाल.
अमरउती के स्थिति नाजुक, बयचकही अस कुन्द दिमाग
जीवन मृत्यु बीच मं झूलत, देखत भारत के तस्वीर.
कहिथय- ककरो घर झन टूटय, हर छन फूलय खुशी के फूल
चुरी अमर तिरिया के होवय, बच्चा नाचय अंगना झूल.
भारत, तंय हा देश भक्त अस, शत्रुराष्ट्र के सिरी गिराय
देश के रक्षा होय उचित कहि, तंय हा खुद के प्राण गंवाय.
लेकिन फुरिया अब का होहय- सती गती तोर खुद परिवार
हमर कोन होहय अब रक्षक, हम बोहात हन धारो धार.”
अमरउती हा मनचलही अस हेरत अटपट बानी।
पर के घर ला जेन बनाइस- ते खुद पावत हानी।।
अमरउती के चिंतित स्थिति, लइका अटके अंदर घाट
गांव मं जचकी निभ नइ पावत, करत न ककरो अक्कल काट.
आखिर सब मिल रददा हेरिन- मुढ़ीपार नइ साधन ठीक
जिला चिकित्सालय मं लेगव, उंहचे होहय नीक प्रबंध.
पुसऊ अपन लछनी ला भेजत, सादा अस जइतू के साथ
किहिस पुसऊ हा जइतू ला सच- “”पहिली फुंकगे पूंजी मोर.
मोर पास बांचे लछनी हा, उही ला डारत असलग तोर
मंय हा तोला धन नइ देवत, एकर मोला हे अफसोस.”
जइतू कथय- “”करव झन चिंता – तोर चहत बस आशिर्वाद
मंय विश्वास देत ऊपर ले- कष्ट पाय नइ पुत्री तोर.”
तभे पुसऊ ला रिवघू तिखारिस- “”जइतू ला तंय गलत बनास
मगर देख ओकर चाला ला- कइसे निश्छल सरल सुभाव!”
बोलिस पुसऊ-“”जेन मनखे के, गरम दूध मं मुंह जर जात
ओहर दही फूंक के खावत, हर अच्छा पर शक के वार.
नोनी धरमिन ला खोये हंव, सदा रथय घटना के याद
मंय शंका करथंव सबझन पर, अमृत ला मानत बिख तीख.
पर जइतू ला परख डरे हंव, ए अदमी नइ धोखादार
एकर घर लछनी सुख पाहय, सितराजुड़ा जही जुग जोड़.
जइसे सेना के मनसे मन, रखथंय ऊंच देश के शान
जइतू हा परिवार चलाहय, सब ला कहिहय अपन समाज.”
अमरउती ला धर के लेगत, जिला चिकित्सालय तत्काल
जइतू लछनी अउ कोदिया मन, नांदगांव पहुंचिन बिनबेर.
अस्पताल मं जइतू बोलिस- “”जे भारत हा होय शहीद
ओकर खटला ए अमरउती, जचकी निभा देव झप ठीक.”
पिनकू घलो उहें पहुंचिस अउ, अपन डहर ले करत गोहार
पर बिनती हा व्यर्थ बोहावत, सिर्फ मिलत घुड़की के मार.
अलग लेग गैंदा हा बोलिस- “”तुम्मन रहव शांत चुपचाप
अगर चिकित्सक मन संग लड़िहव, मिल जाहय परिणाम खराब.”
जइतू खखुवा जथय भयंकर- “”अमरउती के जावत जान
टेम हा खसकत हे ऊपर ले, देत चिकित्सक मन नइ ध्यान.
कब तक अत्याचार सहंव मंय, होना चहत हमर नुकसान
युद्धक्षेत्र मं झगरा उठगे, उहां देखाएंव शक्ति कमाल.
बइरी मन के प्राण हरे हंव, बोइर असन पटागे लाश
उही काम अब इंहचे करिहंव- कइके लेहंव जीयत जान.”
पिनकू हा जइतू ला छेंकिस- झन कर बुद्धिहीन अस काम
हवय स्वारथी अधिकारी मन, देश प्रगति तब काम तमाम.
इही देश के लइका सबझन, भूल के झन पहुंचा नुकसान
थोरिक टेम देख लेवत अउ, करबे काम अपन अनुसार.”
छेरकू अउ मुख्यमंत्री पहुंचिन, अस्पताल के होवत जांच
अधिकार लोरत उंकरे तिर, निकल जाय झन गलती कांच.
अस्पताल मं कतको रोगी, ओमन देखत हें बस राह
पर उपचार उंकर नइ होवत, सनसन बाढ़त रोग अजार.
अस्पताल के जांच हो जाथय, मुख्यमंत्री हा रखिस विचार-
“”करत चिकित्सक करतब पूरा, सब रोगी मन पात इलाज.
यद्यपि दोष निकाले जाथय पर मंय करत प्रशंसा।
जब कर्तव्य पूर्ण होवत तब कार झूठ के कंसा।।
अमरउती के पेट मं बच्चा, तेकर पहिली निकलगे जान
जहर हा जच्चा के तन भीनिस, अमरउती के उड़गे प्रान.
छेरकू जहां खबर ला जानिस, मुंह ओथरा कहिथय दुख साथ-
“”भारत देशभक्त हा हमला, पहिलिच कर दिस दीन अनाथ.
साथ छोड़ दिस अमरउती हा, लेकिन रखबो ओकर नाम
अमरउती के प्रतिमा बनवा, पधरा देब चौंक के बीच.”
मंत्री मन ला रखे सुरक्षित, पुलिस आय धर के बन्दूक
छेरकू के निचतई गोठ सुन, कोदिया के बढ़ जाथय क्रोध.
कोदिया आरक्षक तिर पहुंचिस, झटक लीस ओकर बन्दूक
छेरकू पर बन्दूक ला तानिस, अबतब देतिस धड़धड़ धूंक.
तभे दूसरा आरक्षक हा, कोदिया तन तानिस बन्दूक
धड़ धड़ मार प्राण ला हर लिस, कोदिया गिरिस तरी जस पूक.
छेरकू लछनी अउ पिनकू मन, उंहचे खड़े हवंय गमगीन.
यद्यपि जइतू हा भन्नावत, पर काकर संग ले प्रतिशोध
अपराधी मन तुरूत भगागें, उहां हवंय निर्दाेष अबोध.
पिनकू जइतू मन मं सोचिन- तुरूत उठान दुनों ठक लाश
वरना इहां हवंय अउ रोगी, उन पर परिहय गलत प्रभाव.
बइसाखू मन मदद करिन तंह, दुनों लाश हा मरघट गीस
उहां बने हे चिता तउन पर, बर के लाश बदल गे राख.
जइतू लछनी गीन रायगढ़, पिनकू बइसाखू के छांव.
बइसाखू सम्बोधन देवत, पिनकू के दुख होय समाप्त-
व्याख्याता पिनकू ला पूछिस- “”मेहरू करत हवय का काम
ओकर पुस्तक हा अप्रकाशित, या फिर पूरा छपई के काम?”
पिनकू बोलिस- “”छपिहय पुस्तक, मेहरू रखे रिहिस हे आस
मगर प्रकाशक वापिस कर दिस, उहिच पाण्डुलिपि मेहरू पास.
गीस प्रकाशक तिर पाण्डुलिपि हा, पुलिस जान लिस ओकर भेद
दउड़त पुलिस प्रकाशक तिर गिस, वाजिब तथ्य करे बर ज्ञात.
घुड़किस- “”आय पाण्डुलिपि जे अभि, ओमां हे सरकार विरोध
न्यायालय के हाल लिखे हे, फोरत साफ पुलिस के पोल.
हम किताब के नाम ला जानत- क्राति से शांति हे ओकर नाम
तंय अउ लेखक लुका के राखव, लेकिन जान लेन सब भेद.
यदि पुस्तक हा होत प्रकाशित, तोर मुड़ी पर आहय कष्ट
पहिली पुस्तक जप्त हो जाहय, लगही प्रेस मं तारा रोंठ.”
धमकी अमर प्रकाशक डरगे, ओहर बदलिस अपन विचार
मेहरू पास पाण्डुलिपि भेजिस, ओकर साथ एक ठक पत्र-
मेहरू मोर सलाह मान तंय, फोकट आफत झन ले मोल
जेकर पास दण्ड के ताकत, उनकर पोल भूल झन खोल.
अगर लिखे बर किरिया खाये, तंय लिख सकत विषय कई और
ओकर पुस्तक खत्तम छपिहय, पहिलिच ले बांधत अनुबंध.”
बइसाखू हा बीच मं छेंकिस- “”मेहरू के रूकगे सब काम
ओहर आस छोड़ दिस होहय, याने लिखई के साद हा पूर्ण?”
“”होथय जिजीविषा के ताकत, कृषक श्रमिक मन मं भरपूर
कतको भूख बिपत ला भोगत, पर जीवन पर रखथंय आस.
मेहरू उंकर बीच मं बसथय तब नइ छोड़य आसा।
पहिली ले अउ अधिक लिखत हे लिखिहय जलगस स्वांसा।।
बइसाखू कहिथय- “”मंय जावत, अभी रायपुर धर के काम
होत समीक्षक मन के बैठक, होहय बहस कपट ला छोड़.
साहित्य मं धांधली होवत, ग्रामीण लेखक के नइ पूछ
उंकर पक्ष मंय लेहंव भिड़ के- ऊपर उठय प्रतिष्ठा मूंछ.”
बइसाखू हा राजू होके, जावत हवय चढ़े बर रेल
चुनू साथ उरभेटटा होथय, लगे हथकड़ी जेकर हाथ.
बइसाखू हा चुनू ला पूछिस- “”तंय का करे हवस अपराध
आरक्षक मन धर के लेगत, लोहा के बेली हे हाथ?”
कहिथय चुनू- “”सत्य मंय कहिहंव, मगर कोन करिहय विश्वास
तुम मोला टकटक जानत हव, तुम्हर पास बोलंव नइ झूठ.
खोरबहरा के हत्या होगिस, ओला मारिस अउ इसान
पर मंय बिन कारन फंसगे हंव, अबनइ बांचय जीवन मोर.
खोरबहरा हा रिहिस जउन तिर, उही पड़ोस मं मनसे और
ओमन मोर खिलाफ बता दिन, यद्यपि मंय हाजिर नइ ठौर.
किहिन गवाह- चुनू हा पहुंचिस, खोरबहरा ला दीस अवाज-
मंय अंव चुनू दउड़ आए हंव, तोर पास आवश्यक काज.
उही अधार दीस न्यायालय, मोर विरूद्ध मं निर्णय आज
मृत्युदण्ड के सजा पाय हंव, बिन अपराध बिपत के गाज.”
ओतके मं नंदले हा दिखथय, जउनजात रिक्शा मं बैठ
ओकर स्वास्थय गिरे हे एकदम, हरदी असन पिंयर हे देह.
नंदले रोवत चुनू ला बोलिस- “”अस्पताल जावत हंव मित्र
उहां अपन मंय जांच कराहंव, मगर एक ठन बिपत बिचित्र.
उहां दवाई लेना परिहय, मगर मोर तिर अर्थ अभाव
इही वजह मंय आस ला छोड़त, बूड़ जहय जीवन के नाव.”
चुनू के तिर मं जतका रूपिया, सबला नंदले ला गिन दीस
कहिथय- “”मंय हा जेल मं खाहंव, मोर होय नइ अब कुछ खर्च.
तंहने मंय चढ़ जाहंव फांसी, अपन समीप बलाहय काल
पर तंय अपन इलाज ला करवा, किसनो कर जीवन ला पाल.”
चुनू हा अउ कुछ बोले रहितिस, पर आरक्षक लेगत झींक
बइसाखू स्टेशन पहुंचिस, सोचत न्याय होय नइ ठीक.
रेल हा आइस तंह बइसाखू, ओमां बइठिस मुश्किल बाद
रेल हा पहिली धीरे रेंगिस, छुक छुक कर बाढ़त हे चाल.
नांदगांव ले कुछ दुरिहा गिस, तंय होगिस दुर्घटना एक
रेलचाक हा पांत ला छोड़िस, उही पास गिरगे कर टेक.
डब्बा पर डब्बा मन चढ़गें, होवत उहां दृष्य वीभत्स
मनसे मन के लाश पटावत, घायल मन कल्हरत चिरबोर.
तन मं कई ठक घाव उदलगे, खून बोहावत तुर्रा देत
कतको हाय हाय चिल्लावत,कतको झन के उड़गे चेत
एकर खबर सबो तन फइलिस सुनिन हठील अंजोरी।
दुर्घटना स्थल में पहुंचिन करत जिनिस के चोरी।।
घायल मनसे मन हा कल्हरत, एमन लूटत ऊंकर चीज
गहना रूपिया जे मिल जावत, फटले करतअपन अधिकार.
बइसाखू ला मार परे हे, किहिस हठील ला करके क्रोध-
“”विवश दुखी के मदद ला करते, पर तयं करत भयंकर लूट”
पर हठील हा कान धरिस नइ, लूटमार के वापिस गीस
नांदगांव मे पहुंचिस तंहने, रख दिस लुका लाय जे चीज.
बुल्खू चइती दुकली टैड़क, एमन गिन दुर्घटना ठौर
घायल मनला देत पिठैंया, अस्पताल मं लानत दौड़.
जहरी पास गीस चइती हा, उहा कथय दुर्घटना हाल
किहिस हठील के क्रूरता ला, पर जहरी हा देइस टाल.
बोलिस- “”मंय हठील ला जानत, ओहर हवय भला इंसान
क्रूरकर्म ले घृणा करत हे, तंय हा ओकर झन हर मान”.
शांतिदूत में खबर हा छपगे, पर हठील के लुप्त हे नाम
नांग हा डस के जीव ला लेवत, पर पावत पूजा अउ दूध.
चइती हा कार्यालय छोड़िस, पहुंचिस चकलाघर के पास
उहां ले मनसे मन हा निकलत, पापर चटनी धर के साथ.
चइती फट ले अंदर घुसगे, उहां के जाने बर सच हाल
माला ओला देक के हर्षित, झप पहुंचिस चइती के पास.
माला कथय- “”चलत हे अब तक, सरलग अस पहिली के काम
हम बेचें के काम करत हन, यने बेंच के लेथन दाम.
लेकिन पहिली देंह बेंचावय, पर अब बदले ओकर रूप
पापर बरी अचार बनावत, धंधा धरलिस दूसर रूप.”
रूपा किहिस- “”हमर जीवन अब, पहिली ले खुश सुख भरपूर
जे समाज इज्जत ला लूटय, ओहर देत बला के मान.
एकर संग अउ काम करत हन- जे औरत बेबस लाचार
ओला देवत काम अपन अस, ताकि अपनला लेंय उबार.”
चइती हा प्रसन्न मन बोलिस- “”तुम्हर काम ले होवत गर्व
मांई लोगन मन स्वावलम्बी, उही दिवस आजादी पर्व.
मात्र पुरूष पर दोष लगाथन, वाकई ओहर गलत अनीत
खुद के पांव खड़े यदि तुम अस, पुछी उठा भगिहय दुख दाह.”
चइती उहां ले हट के निकलिस, पिनकू संग हो जाथय भेंट
चइती हा सफ्फा ओरिया दिस, कइसे बीतिस ओकर साथ!
पिनकू कथय- “”समाज शास्त्री मन, एदे किसम के रखत विचार-
यदि वेश्यालय बंद हो जाहय, बढ़ जाहय बलत्कार कुकर्म.
वेश्यालय हा चलत तभे तक, करथय मरद काम ला शांत
कामावेश प्राकृतिक होथय, छेंक सकय नइ कानून धर्म.”
चइती काटिस- “”तर्क गलत हे, मोला बता एक ठक बात-
गांव मं वेश्यालय नइ होवय, काबर उहां ठीक निभ जात!
जेन व्यक्ति हा नशा ला करथय, ओहर रखत गलत विश्वास-
यदि मंय नशा करेबर तजिहंव, जीवन मोर बचन नइ पाय.
मगर नशा ला छोड़त हे तब, ओकर जीवन पात प्रकाश
औरत मरद एक हक पावंय, देश विश्व हो सकत विकास.”
छेंक शहर के कथा ला मंय हा- बोलत गांव कहानी।
गांव शहर मिल देश हा बनथय, मरथय भेद के नानी।।
सनम के घर तिर सांवत पहुंचिस, मुचमुच हांसत करिस पुकार-
“”अंदर घुस का काम करत हस, नइ लेवस जयहिन्द जोहार!”
आरो समझ सनम हा कहिथय- “”भतबहिरा अस झन रहि ठाड़
रददा बिसरे हस कई दिन मं, चल अंदर आ खुले किवाड़.”
सांवत आथय सनम के तिर मं, दुनों जहुंरिया बइठिन खाट
सांवत जमों कथा ओरियावत, अपन ह्रदय के खोल कपाट-
“”हमर नियाव गरीबा टोरिस, तब सुंट साथ चलत परिवार
भांवत मोर प्रेम एका हे, भेद के होगिस खुंटीउजार.
दूनों भाई काम करे हन, तब बिरता हा उझलत खार
ओदर तनत तक जेवन मिलिहय, पुन& साख जम जहय बजार.
अनुभव पाय अपन ऊपर ले, उन्नति करथय सुम्मत काम
जेन जगा एका के शासन, खाय मिलत हे सुख के जाम.”
सनम हा मुसकत बात बढ़ाइस- “”शंका होत बात सुन तोर
विश्वशांति बर बइठक होथय, मगर काम होथय कुछ और.
याने विश्व ला बच जावय कहि, एक डहर पारित प्रस्ताव
पर दूसर तन बम बन जाथय, विश्व भविष्य लगत हे दांव.
तइसे भांवत संग झगड़त तुम, अलग अलग खावत हव रांध
मगर मोर तिर झूठ निकालत- हम्मन चलत सुमत ला बांध?”
सांवत बोलिस- “”सच बोले हंव, फुरिया सकत करेला गांव
घर मं बइठ नियाव भंजावत, हमर इहां धर तो कभु पांव!”
बहुत बेर सांवत गोठियाइस, उसल के आथय बाहिर खोर
ओला धनवा छेंक के छोलिस- “”कइसे छुप खसकत जस चोर.
तोर इहां पंचायत होइस, करे गरीबा भर के याद
तोर भविष्य बिगाड़े हंव कब, होन पैस नइ मोर पुकार?”
सांवत किहिस- “”ठीक बोलत हस, गीस गरीबा न्याय भंजाय
ओकर बुती सिद्ध नइ होतिस, तब तो होतिस तोर बलाव.”
सांवत हा सुट रद्दा काटिस, दांत कटर धनसाय नराज
ओहर अपन मकान मं आथय, कोतल मन के जुड़त समाज.
उच्चासन पर धनवा बइठे, गंजमिंज करत हवय दरबार
कानाफूसी भीड़ मं होवत- का कारन बलाय सरकार!
धनवा अपन विचार ला राखिस, पहिली देखिस चारों खूंट-
“”मोर राज के जर उखनय कहि, द्रोहिल कंसा आवत फूट.
मोर दोंगानी धन झटके बर, झंडा टांगत मोर खिलाफ
जेला देंव मान पीढ़ा मंय, उही चलत बइमानी चाल.
सबला क्षमा देत हंव अब तक, हर ला बाटेंव मीठ जबान
पर ओमन मोर मुड़ा पुरोवत, एतन कतिक सहंव अपमान?”
सब गपगपा के तिर तन ओधत कोन निकालय उत्तर।
यदि उत्तर हा एतन ओतन टूट जहय रट गत्तर।।
हिम्मत बढ़ा सुखी हा तानिस- “”कोन तोर संग लाहो लेत
काकर ऊपर रइ आवत हे, फोर भला तंय ओकर नाम?”
धनवा क्रोधित होत सुखी पर- “”तंय हा करत दोगलई घात
मंदरस मीठ असन बोलत हस, लेकिन रखत पेट मं दांत.
मोर विरूद्ध खाय हस चुगली, सनम पास सुरहुत्ती रात
अब तंय काबर ढाढ़ा कूटत, चल अब बोल रटारट बात?”
सुखी ला काटव मगर लहू नइ, सोचत पाइस कहां सुराग
एकर ले मिल यदि मंय रहिहंव, हरियर कंच मोर जे बाग.
धनवा कथय- “”तंगाएंव पर ला, हरे घलो हंव परके प्राण
लेकिन तुम्हर लाभ चाहत हंव, होइस कहां तुम्हर नुकसान!
मोर पास जम्भे आये हव, मंय बांटे हंव नेक सलाह-
तिलिंग के ऊपर तुम्मन बइठव, हेरे हवंव नफा के राह.”
धनवा हा डकहर ला बोलिस- “”मंय जानत समाज के सर्ग
कते वर्ग हा कइसन चलथय, ढुलमुल होथय मध्यम वर्ग.
पूंजीपति संग भेंट हो जाथय, तुम हो जाथव ओकर साथ
लेकिन जब कंगला तिर पहुंचत, क्रांति करे बर बनत अनाथ.
पर मंय हा इतिहास बतावत- जब परिवर्तन अ‍ैस समाज
पहिली मरिन तुम्हर अस मन हा, बाद गिरिस शोषक पर गाज.
अगर सुरक्षित रहना चाहत, तुम्मन बनव सहायक मोर
तंहने हमर तुम्हर नइ बिगड़य, दब जाहय विरोध के सोर.”
डकहर सुखी रहस्य समझगें, अब धनवा के लेवत पक्ष
धनवा करू शब्द मं डांटिस, लेकिन उहू लगत हे मीठ.
मोर शरण मं आय समझ के, धनवा हा दिस आशिर्वाद
धनवा तन कोतल मन भूंकत, ताल बिगाड़े बढ़थय गाद.
शोषक मन के किसम बहुत हे, ओमन जानत सबसिद्धांत
जोंख असन लिजलिजहा चिम्मड़, मुश्कुल मं होथय प्राणान्त.
कोतल मन हा उहां ले निकलिन, तंह दसरू संग होगिस भेंट
पूछिस सुखी- “”कहां जावत हस, फुरिया साफ राख झन पेट?”
दसरू कहिथय- “”मंय जावत हंव, रानीगंज मं मंड़ई हे आज
औरत मर्द सियनहा बालक, उंहचे जात छोड़ के काम.”
दसरू गीस झड़ी के घर मं, कहिथय झड़ी केंघर के खूब-
“”तोला एक भार संउपत हंव, ओला करबे निश्चय पूर्ण.
धनवा हा मारत चेचकारिस, जबरन छीन लेग गेधान
तेकर कारन तन दंउचे हे, हिरदे तक मं भरगे पीर.
मोर बांचना मुश्किल हे अब, जाहंव बिस्वासा के पास
तंय हा गत किरिया ला करबे, लेग जबे अस राजिम धाम.”
दसरू बोलिस- “”मोसा सुन ले- तंय हा जीयत हस संसार
अलकरहा बूता संउपत हस, कइसे करंव तुरूत सिवकार!
पर मंय तोर बात मं चलिहंव, पूरा करिहंव इच्छा तोर
बनें बनाहंव गत किरिया ला, अस धर जाहंव तीरथ धाम.”
लेकिन एक बात तो फुरिया, तंय अइसे बोलस नइ कार-
धनवा अतियाचार करे हे, ओकर ले लेहंव प्रतिशोध?”
“”यद्यपि रंज हवय धनवा पर, ओकर चाहत खुंटीउजार
पर मंय मिरतू के खटिया मं, करना कठिन लड़इ संघर्ष.
हिरदे के दुख आह हा निकलत, ओहर दिही बाद परिणाम
धनवा के सत्ता भट जाही, शोषण जुलुम सदा बर नाश.”
दसरू गीस गरीबा घर तिर लेत उहां के आरो।
दुखिया ओकर स्वागत करथय- “”तुम अंदर पग धारो।।
दसरू हा दुखिया ला एल्हत- “”होय गरीबा अउ तुम एक
तब मंय पाय निमंत्रण तक नइ, अब बलात आगू मं देख.
मिलतिस खाय करीलड़ुवा हा, तेकर तुम्ही करे हव चूक
मंय हा अंदर तभे अमरिहंव, जब पट जहय बचे चे सूक.”
दसरू मुसकावत अंदर गिस, हंसत गरीबा हेरिस बोल-
“”खबड़ा सिरिफ खाय बर सोचत, मुंह ला रखत सदा तंय खोल.
अगर पेट हा सपसप होवत, मार पालथी चलना बैठ
दुखिया अउ मंय जेवन परसत, तंह तंय सक भर जेवन एेंठ.”
दसरू अब ताना मारत हे- “”भइगे तंय जेवन ला राख
जब ले दुखिया ला लाने हस, मोर डहर राखस नइ चेत.
अपन मरे बिन सरग दिखय नइ, मंय करिहंव अब स्वयं बिहाव
मगर तोर अस मंय हा नोहंव, देहातिन ले करंव बिहाव.
खटला लाहंव शहर नगर ले, होय शान से ऊंचा नाक
स्वादिल जिनिस रांध के देहय, फुरिया दिही ज्ञान विज्ञान.”
दुखिया हंस के उत्तर देथय- “”मोला एल्हत आभा मार
मोर गंवइहिन के गुन ला सुन, अचरज मं परबे मुंह फार.
मंय माटी मं रहिथंव तइसे, चिखला मं कर लेथंव काम
जउने मिलत तउन खा लेथंव, ककरो चीज हिनंव नइ भूल.
पर तंय शहर ले तिरिया लाबे, करही कहां खेत मं काम
रिकम रिकम के लुगरा मंगही, इसनो पउडर साबुन तेल.
जतका साद मरत हस अभि तंय, मुड़ी पकड़ पछताबे बाद
खटिया बइठ दिही बस आज्ञा, देबे तिंही खाय बर रांध.”
किहिस गरीबा ला दसरू हा- “” रानीगंज मं मंड़ई मितान
तोला अपन साथमंय धरिहंव, तंय झन छोड़ सुघर अवसान.”
कहां गरीबा बात ला टारत, ओकर मन हा पुचपच होत
दुखिया ला कुछ अलग मं लेगिस, गाल चिमट फुरिया दिस गोठ.
रेंगत मंड़ई गरीबा-दसरू, अउ जावत कतको इन्सान
जेकर पास जेन हे साधन, ओमां बइठ के भागत तान.
एमन देखत मंड़ई पहुंच के, गंजमिंज होवत भीड़ अपार
पांव उचा चलना तक मुश्किल, पेल के बाढ़त कोहनी मार.
नर नारी के देंह संटत हे, सब सरमेट्टा भेद समाप्त
जेमन बइठे लगा के पसरा, उंकर जिनिस उड़गे खुरखेद.
रिश्तेदार अगर मिल जावत, हस के बोलत सुख दुख बांट
पर मनसे मन एल्हत लेकिन, एमन चूमा लेत चटाक.
कातिक फूलबती मन किंजरत, ओमन बंधे एक ठन गांठ
गोदना गोदत हवय बखरिया, एमन रूकिन उहिच स्थान.
वास्तव मं कलाकार बखरिया, करत हवय अचरज के काम
मानव के तन मं गोदत हे- सुन्दर चित्र अमर बर नाम.
कथय बखरिया फूलबती ला- “”तंय गोदना गोदवा ले शीघ्र
फूल पेड़ अउ नाम सखी के, अंकित करवा जउन विचार.
यदि तंय पति के नाम लिखाबे, खोल बता तंय ओकर नाम
हरियर मड़वा हाट मंड़ई मं, पति के नाम सकत हस खोल.”
पूछत हवय बखरिया हांसत, फूलबती हंस दीस जुवाप-
“”क्वांर के बाद आत जे महिना, धान होत जब पके के लैक.
जेन माह होवत देवारी, उहिच माह हा पति के नाम
ओकर साथ नाम मोरो लिख, ताकि अंतक्षण तक संबंध.”
फूलबती गोदना गोदवा लिस, अपन साथ कातिक के नाम
एकर बाद दुनों फिर किंजरत, एकोकन छूटत नइ साथ.
बिकत मंड़ई मं बहुत जिनिस भजिया गुलगुला मिठाई।
तिरिया हांसत बेंचत मुर्रा चना तिली के लाड़ू।।
गोभी मुरई भटा बंगाला, बिही पिड़ीकांदा कुसियार
मनखे बाटुल जिनिस खरीदत, तभो खतम नइ जिनिस बजार.
ढेलवाचक्का पर चढ़ हांसत, धरती फेंक रूमाल उठात
ढेलवा ला ठेलत जे अदमी, श्रम मं बिगड़त ओकर हाल.
पुतरी मंड़ई साथ मं बैरंग, मोहरी दमऊ अंउ दफड़ा साथ
राउत नाचत पार के दोहा, ऊपर डहर फेंकावत हाथ.
सब मनखे ला खभर करे बर, हांका दीस गांव कोतवाल-
“”ऊंचा नाच रात भर देखव, देत निमंत्रण झाराझार.
तुम्मन हा टकटक जानत हव- हवय प्रसिद्ध रवेली नाच
कलाकार जे नकल देखाहंय, उंकर नाम सब तन विख्यात.
लालू फीता मदन मंदराजी, बुलुवा बोड़रा ठाकुरराम
उंकर कला करथय आकर्षित, दर्शक देखेबर ललचात.
ओमन एदे नकल निकालत- चपरासी बुढ़ुवा के ब्याह
सूरा वाले कजुवा निकलत, अउ सींका जोती के राह.”
कथय गरीबा ला दसरूहा,- “इहें रूकन या वापस जान
नाच देख लेतेन मन होवत, कुछ तो निकल जाय बेवसाय!”
तभे श्रमिक पहरू हा आथय, जेकर रानीगंज निवास
इंकर पूर्व परिचित ते कारन, हर्षित हृदय करिस मिल भेंट.
पहरू बोलिस-“”याद करंव बंय, दर्सन तुम्हर पाय हंव आज
ढारा मं जब बइठक होइस, तमे निमंत्रण ला दे देन”
जउन नाच देखे बर सोचत, आगे हवय खेली नाच
चलव हमर सगं जेवन कर लव, तंहा रात भर देखव नाच- ”
कथय गरीबा-“”जेला खोजत, अमर लेन हम बिना प्रयास
ठंउका हमन भाग्यशाली हन, हमर साद हा निश्चय पूर्ण.
लेकिन एक भद ला फुरिया- बोनस पाय नगद मं नोट
ढारा मांग पूर्ण होगिस का, देत निमंत्रण दिल ला खोल?”
“”ढारा मं बइठक जे होइस, ओकर पारित जे प्रस्ताव
ओला ऊपर भेज चुके हन, पर नइ आय अभी परिणाम.
फिर डोंगरगढ़ मं सकलाबो, उंहचे करबो खूब विचार
बुल्खू श्रमिक सबो झन आहंय, रखबो उहें अपन हम मांग.
मगर अभी बर चिंता झनकर, भात खवाय ह्रदय हे ठोस
चल पहिली जेवन तो कर लन, बाद गोठ कर देखव नाच.”
परगें ढार गरीबा दसरू, पहरू के घर जेवन लीन
नाचा शुरू होय कतका छन, इही सोच भागत हे नींद.
एमन नाच ठउर मं पहुंचिन, कटकट जुड़े मनुष्य समाज
बाजा बजत राग ला धरके, परी हा नाचत मार अवाज.
एमन एतन बिधुन हो देखत, जोकर मन के अचरझ काम
ओतन दुखिया फिकर मं जागत- कहां गरीबा हा रूक गीस!
संझा पलट जहंव कहि रेंगिस, पर नइ आय- होत अधरात
ककरो साथ लड़ई कर डारिस, या फिर दुश्मन कर दिस घात!
मात्र एक झन रहना मुश्किल, बिगर गरीबा जग अंधियार
मोर बात ला पेल के चल दिस, गाल ला हलुकुन थपरा मार.
पंइठू घुसेंव गरीबा के घर, तब मंय हा नइ पावत प्यार”
दुखिया ला वियोग तड़फावत, आंसू बहत हवय बन धार.
थोरिक भुड़ कपाट हा बाजिस, तंह दुखिया ला होत अभास-
खड़े गरीबा दरवाजा तिर, करत दिल्लगी देवत झांस.
दुखिया हा कपाट ला खोलिस, सोचत कहां छुपे चुपचाप
मगर गरीबा के दउहा नइ, तंह दुखिया ला लगिस खराब.
उदुप एक ठंव आंखी गड़गे, जे वाजिब मं ठुड़गा पेड़
दुखिया ललक अवाज लगाथय- काबर खड़े हवस ओ मेर?
अब तक जेवन बचा रखे हंव, करा होय नइ- ताजा तात
तोर बिना मंय कइसे खावंव, चलव खाव तरकारी भात.”
दुखिया पेड़ के तिर मंय पहुंचिस, लेकिन डरिस असल ला जान
वापिस पहुंच कपाट लगाथय, विरह लेत हे ओकर जान.
चिरई गोड़ेला के जोड़ी मन, संट के सुते हवंय बन एक
ओमन ला संहरात बिरहनी- कोन कूत सकिहय ए प्रेम!
एक दूसरा ला नइ छोड़त, जीवन सफल उज्जवल भाग
मोर बिपत के रास बड़े जक, बिन पति रात ला काटत जाग.”
छटपट करत हवय दुखिया हा, जोड़ी संग नइ होत मिलाप
आंख मूंद के पति ला देखिस, कुछ संतोष हटिस संताप.
रात सता के मुंह ला टारिस, सुरूज पकड़लिस खुद के काम
हंसत गरीबा हा घर आथय, पकड़े हवय मिठई संग जाम.
खाय जिनिस दुखिया ला संउपत, पर ओहर मुंह ला टेड़गात
समझ पात नइ कुछुच गरीबा, दुखिया ला देखत बक खात.
दुखिया कथय- “”मंड़इ देखत तंय, कहां करे हस चिंता मोर
तोर याद मं रात जगे हंव, वास्तव मं तंय निष्ठुर जीव.”
दुखिया के जब दरद ला जानिस, कथय गरीबा हृदय उमंग-
“”तोर हुदेसना बने सुहावत, प्रेम देखाय करे हस मात.
एक सत्य ला अउ बोलत हंव- बिछड़न मिलन प्राकृतिक देन
एकर कारन सुख दुख मिलथय, लेकिन तंय रख शांति दिमाग.
पति पत्नी तलाक खट देथंय, फट ले टूटत हे संबंध
पर तंय सुरता मोर करे हस, तेकर मंय मानत अभिमान.”
झिंकिस गरीबा हा दुखिया ला हंसत खवात मिठाई।
दुखिया बहुत प्रेम से खावत प्रेम मं बसत भलाई।।

(… ७ चनवारी पांत समाप्त …)