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कविता

दारू के गोठ

जेती देखबे तेती, का माहोल बनत हे।
सबो कोती ,मुरगा दारू के गोठ चलत हे।।

थइली म नइहे फूटी कउड़ी,अउ पारटी मनाही।
चांउर ल बेंच के, दारू अउ कुकरी मंगाही।।

मुरगा संग दारू ह,आजकाल के खातिरदारी हे।
खीर पूड़ी के अब, नइ कोनो पुछाड़ी हे।।

दारू के चक्कर म, छोटे बड़े के नाता ल भुलागे।
आधा मारबे का कका,कइके मंगलू ह ओधियागे।।

नंगत कमाय हे कइके, बेटा बर लानत हे ददा ह।
अब तो संगे संग म पीयत हे, कका अउ बबा ह।।

होवत संझाती भट्ठी म, भारी भीड़ दिखत हे।
अंगरेजी ल छोड़के सबो, देसी के तीर दिखत हे।

अब झन करव गा कोनो, मुरगा-दारू के गोठ ल।
सादा जीवन ऊंचा बिचार के, बनावव अपन सोच ल।।

चंदन वर्मा
करमा (भैंसा)
खरोरा
जिला – रायपुर (छ. ग.)
मो. 8120274719