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कविता

धान – पान

हरियर हरियर खेतहार हे ,
धान ह लहलहावत हे ।
सुघ्घर बाली निकले हाबे,
सब झन माथ नवावत हे ।

सोना जइसे सुघ्घर बाली ,
हवा में लहरावत हे ।
अपन मेहनत देखके सब झन ,
मने मन मुसकावत हे ।

मेहनत के फल मीठा होथे ,
‘माटी’ गाना गावत हे ।
धान ल अब लुए खातिर ,
हंसीया धरके जावत हे ।

सबो संगवारी हांस हांस के,
ठाड़ ददरिया गावत हे ।
करपा ल अब बांध बांध के ,
बियारा कोठार में लावत हे ।

महेन्द्र देवांगन “माटी”
गोपीबंद पारा पंडरिया
जिला – कबीरधाम (छ. ग )
8602407353
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