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कविता

धीर लगहा तैं चल रे जिनगी

धीर लगहा तैं चल रे जिनगी,
इहाँ काँटा ले सजे बजार हवय।

तन हा मोरो झँवागे करम घाम मा,
देख पानी बिन नदिया कछार हवय।।

मया पीरित खोजत पहाथे उमर,
अऊ दुख मा जरईया संसार हवय।।

कतको गिंजरत हे माला पहिर फूल के,
मोर गर मा तो हँसिया के धार हवय।।

सच के अब तो कोनों पुछईया नहीं,
झूठ लबारी के जम्मो लगवार हवय।।

पईसा मा बिकथे, मया अउ नता,
सिरतोन बस दाई के दुलार हवय।।

राम कुमार साहू
सिल्हाटी, कबीरधाम
मो नं 9340434893



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