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कविता

अकती के तिहार आगे

अकती के तिहार आगे।
लगन धर के बिहाव आगे।
मड़वा गड़गे हरियर-हरियर
पुतरा-पुतरी दिखता हे सुग्‍घर।
मनटोरा के पुतरी, जसोदा के पुतरा
तेल हरदी चघ गे, दाई दे दे अचरा।
जसोदा के पुतरा के बरात आगे
बरा सोहारी बराती मन खावथे।
तिहारू ह मांदर मंजीरा बजावतथे।
मनटोरा के पुतरी के होवथे बिदई
कलप-कलप के रोवत हे दाई।
नवा बहुरिया संग उछाह आगे
अकती के तिहार आगे
घर-घर लगन माड़गे।

डॉ.शैल चंद्रा
रावणभाठा, नगरी,
जिला धमतरी