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कविता

गांव के सुरता

होवत बिहनिया कुकरी-कुकरा,
नींद ले जगावय।
कांव-कांव करत चिरई-चुरगुन,
नवा संदेसा सुनावय।
बड़ निक लागय मोला,
लईका मन के ठांव रे।……
आज घलो सुरता आथे,
मोर मया के गांव रे।।……

भंवरा बांटी के खेल खेलन,
डूबक-डूबक नहावन।
डोकरा बबा खोजे ल जावय,
गिरत हपटत भागन।
आवत-जावत सुरता आवय,
डबरी के पीपर छांव रे।…….
आज घलो सुरता आथे,
मोर मया के गांव रे।।………

सिधवा मनखे गांव के,
मंदरस कस बोली।
बड़ सुघ्घर लागय मोला,
डोकरी दाई के ठोली।
सत जेकर ईमान धरम,
लछमी गाय के पांव रे।……
आज घलो सुरता आथे,
मोर मया के गांव रे।।……..

केशव पाल
मढ़ी(बंजारी)सारागांव,
रायपुर(छ.ग.)
9165973868




चित्र: भूपेंद्र गोसाईं साहेब