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कविता

ईंहा के मनखे नोहय

जिंहा के खावत हे तेकर गुण ल नई गाही,
तिरंगा के मया बर अपन लार ल नई टपकाही,
वोहा ईंहा के मनखे नोहय I
जेन ह ईंहा के माटी ल मथोलत हे,
अपनेच दांदर ल मरत ले फुलोवत हे,
वोहा ईंहा के मनखे नोहय I
कनवा खोरवा मुरहा ल जेन ह कुआं म ढपेलत हे,
मदहा अऊ जाँगरओतिहा ल सरग म चढ़ोवत हे ,
वोहा ईंहा के मनखे नोहय I
जेकर मिहनत के कमई म उदाली मार जियत हे,
उकरे मिहनत ल जेन ठेंगा दिखावत हे,
वोहा ईंहा के मनखे नोहय I
जांत पांत अऊ धरम ल बांटेके गोठ गोठीयावत हे,
अधरम सन कुमत के रद्दा म रेंगे बर सिखावत हे,
वोहा ईंहा के मनखे नोहय I
बने हाबय रखवार पारत बस हाबय गोहार,
रथिया कुन चोरी करे के जेन ह गुर बतावत हे
वोहा ईंहा के मनखे नोहय I
छत्तीसगढ़िया सबले बढिया कही कहीके फुलोवत हे,
पीठ पीछू गर ल डोरी बांध के अरोवत हे,
वोहा ईंहा के मनखे नोहय I
टोटा ल मसकबे त कहूँ जन गण मन गाथे,
छोरेच तहाले तिरंगा ल आगी लगाथे,
वोहा ईंहा के मनखे नोहय I

विजेंद्र वर्मा ‘अनजान’
नगरगाँव (धरसीवां)