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कविता

कँपकँपाई डारे रे

कँपकँपाई डारे रे ….ए…..
एसो के जाड़ा कँपकाई डारे।
करा कस तन ला जमाई डारे।
कँपकँपाई डारे रे….ए…..

दाँत किनकिनावत हे नाक हा बोहावत हे।।
गोरसी तीर बइठे बबा चोंगी सुलगावत हे।।
सुरूर सुरूर ए दे पुरुवाई मारे रे।
कँपकँपाई डारे रे….ए……

उगती ले बुड़ती होथे कुरिया ह नइ भावै।
कतको ओढ़े कथरी ला निंदिया नइ आवै।।
का करवँ जीव ला करलाई डारे।
कँपकँपाई डारे रे….ए…..

देखव संगी सुरुज हा मोला बिजरात हे।
भागत हावय छेंव छेंव कइसे इँतरात हे।।
नहाई खोराई तरसाई डारे।
कँपकँपाई डारे रे….ए….

बोधन राम निषाद राज
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम (छ.ग.)

नवा बछर के बधई हे
जिनगी के आशीष देवैईया,
मोर ददा अऊ महतारी ल।
चंदा सुरुज असन अँजोर बगरैईया,
मोर घरवाली ल।
लाहकत दमकत अँगना में खेलैईया,
नान नान मोर फुलवारी ल।
गोली के बौछार सहैईया,
देश के मोर बीर सिपाही ल।
जांगर तोड़ मिहनत करैईया,
मोर किसनहा संगवारी ल।
सुख दुख म साथ देवैईया,
मोर मितान के मितानी ल।
बनी भूति कर, बिन गोसैईया के जियैईया,
वो दुखियारी ल।
पानी बादर, घाम पियास नई जनैईया,
वो डोकरा अऊ डोकरी दाई ल।
मया अऊ पीरीत के गोठ गोठयैईया,
मोर मयारुक भौजाई ल।
जंगल झाड़ी, नदियाँ, नरवा,
अऊ तरिया के आरूग पानी ल।
आखिर म बंदव सिक्छा के अलख जगैईया,
माटी के मादर ल मनखे गढहैईया,
मोर गुरु अऊ गुरवईन दाई ल।
नवा बछर के गाड़ा गाड़ा बधई हे।

विजेंद्र वर्मा अनजान
नगरगाँव (धरसीवां)
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