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कविता

महतारी के अंचरा

कलप कलप के चिचियावत हे,
महतारी के अंचरा।
अब आंसू ले भीग जावत हे,
महतारी के अंचरा।।

पनही के खीला अब,
पांवे म गड़त हे।
केवांस के नार अब,
छानी मा चढ़त हे।।
सूते नगरिहा ल जगावत हे,
महतारी के अंचरा।….
कलप कलप…..

मरहा खुरहा जम्मो,
अंचरा म लुकाईस।
हमर बांटा के मया मा,
बधिया कस मोटाईस।।
दोगला मन ,पोंछा बनावत हे,
महतारी के अंचरा…
कलप कलप….।

परे-डरे लकड़ी ल ,
पतवार बना देंन।
चोरहा मन ला घर के,
रखवार बना देंन।।
बइमानी मा चिरावत हे,
महतारी के अंचरा…
कलप कलप के….

राम कुमार साहू
सिल्हाटी, कबीरधाम
मो.नं.9340434893
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