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कविता

तुंहर मन म का हे

तुंहर मन म का हे
अपन अंतस ल बोल दव
मोर मन के गोठ ल सुन लव
अभी तो मान लव
जो हे बात हांस के कही दव
जिनगी के मया म रस घोल दव
अभी तो बदलाव कर दव
महुँ हंव किनारा म
मझधार ल पार करा दव
मया के गोठ
हांस के बता दव…

लक्ष्मी नारायण लहरे ,साहिल,
कोसीर