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कविता

मनखे गंवागे

मनखे गंवागे गांव के शहर के देखाईं म
गांव भुलागे स्वारथ के अंधियारी खाईं म।।

इरिषा अनदेखना बाढ़ गे
डाह धरिस हितवाही म।
पिरीत परेम के दिया बुतागे,
आग लगिस रुख राई म।

खेत खार ह परिया होगे
यूरिया के छिचाई म
मनखे गंवागे शहर म जाके
अंधाधुंध कमाई म।

पहुना के सम्मान गंवागे
नारी के अधिकार लुटागे।
नदिया तरिया के गुरतुर पानी
भाखा के मिठास गंवागे।

पुरखा के संस्कार गंवागे
अंगना के बंटवाई म
संगी मितान के विश्वाश गंवागे
भेद के दहरा खाइ म

मेला मड़ई के झुला गवांगे
शहर के डिस्को नचाइ म

मनखे गंवागे गांव के शहर के
देखाईं म,
बिक़त हवय ईमान जहां
झूठ के अंधियारी खाई म।

अवि अविनाश तिवारी
अमोरा
जांजगीर चाम्पा 495668
Mo. 8224043737