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कविता

माटी के मया

अब तो नइ दिखय ग,
धान के लुवइया।
कहाँ लुकागे संगी,
सीला के बिनइया।
दउरी,बेलन ले,
मुँह झन मोड़व रे…..।
माटी संग माटी के,
मया ल जोड़व रे…..।।
बोजहा के बंधइया,
अब कहाँ लुकागे।
अरा-तता के बोली,
सिरतोन नदागे।
गाडा़, बइला के संग ल,
झन तुमन छोड़व रे…..।
माटी संग माटी के,
मया ल जोड़व रे…..।।
होवत मुंधरहा संगी,
पयरा के फेकइ।
आज घलो सुरता आथे,
बियारा के सुतइ।
धर के कलारी,
पयरा ल कोड़व रे…..।
माटी संग माटी के,
मया ल जोड़व रे…..।।

केशव पाल
मढ़ी (बंजारी) सारागांव,
रायपुर (छ.ग.)
9165973868