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कविता

पताल के भाव

हाय रें हाईबिरिड पताल
तोरो अलगेच अलग भाव
बेचावत हे पचास साठ रुपया
मंहगाई बढ़गे कांव-कांव

अमीरहा गरीबहा मनखे बर
सबो बर हे एक भाव
गरीब आदमी कईसे नपाहि
बिसावत हे एक पाव

बड़े आदमी खा खाके
निकालत हे अपन पेट
अंडा मुरगी मांस बरोबर
भोगा गेहे एकर रेट

देसी बिदेसी हाई बिरिड
मंहगाई म घटगे वेट
मंहगाई के मार ल देखेके
सबो के चढ़गेहे चेत!!

मयारुक छत्तीसगढ़िया
सोनु नेताम “माया”
रुद्री नवागांव धमतरी
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