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कविता

सावन आगे

सावन आगे संगी मन भावन आगे।
मन ल रिझाये बर फेर सावन आगे।
चारो मुड़ा फेर करिया बदरा ह छा गे,
हरियर-हरियर लुगरा म भुईया ह रंगा गे।
सावन आगे संगी, फेर सावन आगे।
रिमझिम-रिमझिम बरसत हे बादर ,
सब्बो मनखे के जीव ह जुड़ा गे।




सुक्खा के अब दिन पहागे,
सब्बो जगहा करिया बादर छा गे।
सावन आगे संगी सुग्घर सावन आगे,
मन ल मोहाय बर, अब सावन आगे।
फुहर-फुहर बरसत हे बदरा,
फेर सब के मन ल भिगोत हे।
सावन के संग अब,
मनखे के मन ल मोह थे,
सावन आगे संगी, फेर सावन आगे,।

अनिल कुमार पाली
तारबाहर बिलासपुर।
मो- 7722906664