पाँख मयूँरा मूड़ चढ़ादे,काजर गाल लगादे| हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे | बाँध कमर मा करधन मोरे,बाँध मूड़ मा पागा| हाथ अरो दे करिया चूड़ा,बाँध गला मा धागा| चंदन टीका माथ लगादे ,ले दे माला मूँदी| फूल मोंगरा के गजरा ला ,मोर बाँध दे चूँदी| हार गला बर लान बनादे,दसमत लाली लाली | घींव […]
Tag: Jitendra Verma Khairjhitiya
डोल डोल के डारा पाना ,भोला के गुन गाथे। गरज गरज के बरस बरस के,सावन जब जब आथे। सोमवार के दिन सावन मा,फूल दूब सब खोजे। मंदिर मा भगतन जुरियाथे,संझा बिहना रोजे। कोनो धरे फूल दसमत के ,केसरिया ला कोनो। दूबी चाँउर छीत छीत के,हाथ ला जोड़े दोनो। बम बम भोला गाथे भगतन,धरे खाँध मा […]
सहे नहीं मितान
घाम जाड़ असाड़ मा,सेहत के गरी लहे नही मितान। खीरा ककड़ी बोइर जाम बिही,अब सहे नहीं मितान। बासी पेज चटनी मोर बर, अब नाम के होगे हे। खाना मा दू ठन रोटी सुबे,अउ दू ठन साम के होंगे हे। उँच नीच खाये पीये मा, हो जाथे अनपचक। कूदई ल का कहँव,रेंगई मा जाथे हाथ गोड़ […]
चमक चमक के गरज गरज के, बरस बरस के आथे। बादर बइरी सावन महिना, मोला बड़ बिजराथे। काटे नहीं कटे दिन रतिहा, छिन छिन लगथे भारी। सुरुर सुरुर चलके पुरवइया, देथे मोला गारी। रहि रहि के रोवावत रहिथे, बइरी सावन आके। हाँस हाँस के नाचत रहिथे, डार पान बिजराके। पूरा छंद ये कड़ी म पढ़व..
बबा बनाये खुमरी घर मा,काट काट के बाँस। झिमिर झिमिर जब बरसे पानी,मूड़ मड़ाये हाँस। ओढ़े खुमरी करे बिसासी,नाँगर बइला फाँद। खेत खार ला घूमे मन भर,हेरे दूबी काँद। खुमरी ओढ़े चरवाहा हा, बँसुरी गजब बजाय। बरदी के सब गाय गरू ला,लानय खार चराय। छोट मँझोलन बड़का खुमरी,कई किसम के होय। पानी बादर के दिन […]
महिमा भारी योग के,करे रोग सब दूर। जेहर थोरिक ध्यान दे,नफा पाय भरपूर। थोरिक समय निकाल के,बइठव आँखी मूंद। योग ध्यान तन बर हवे,सँच मा अमरित बूंद। योग हरे जी साधना,साधे फल बड़ पाय। कतको दरद विकार ला,तन ले दूर भगाय। बइठव पलथी मार के,लेवव छोंड़व स्वॉस। राखव मन ला बाँध के,नवा जगावव आस। सबले […]
करहूँ का धन जोड़,मोर तो धन जाँगर ए। गैंती रापा संग , मोर साथी नाँगर ए। मोर गढ़े मीनार,देख लमरे बादर ला। मिहीं धरे हौं नेंव,पूछ लेना हर घर ला। भुँइयाँ ला मैं कोड़, ओगथँव पानी जी। जाँगर रोजे पेर,धरा करथौं धानी जी। बाँधे हवौं समुंद,कुँआ नदियाँ अउ नाला। बूता ले दिन रात,हाथ उबके हे […]
महतारी दिवस विशेष : दाई
दाई (चौपई छंद) दाई ले बढ़के हे कोन। दाई बिन नइ जग सिरतोन। जतने घर बन लइका लोग। दुख पीरा ला चुप्पे भोग। बिहना रोजे पहिली जाग। गढ़थे दाई सबके भाग। सबले आखिर दाई सोय। नींद घलो पूरा नइ होय। चूल्हा चौका चमकय खोर। राखे दाई ममता घोर। चिक्कन चाँदुर चारो ओर। महके अँगना अउ […]