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श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – ‘दाँव गवाँ गे’ अउ ‘जहर नइये’

दाँव गवाँ गे गाँव-गाँव म गाँव गवाँ गेखोजत-खोजत पाँव गवाँ गे। अइसन लहँकिस घाम भितरहा छाँव-छाँव म छाँव गवाँ गे। अइसन चाल चलिस सकुनी हर धरमराज के दाँव गवाँ गे। झोप-झोप म झोप बाढ़ गे कुरिया-कुरिया ठाँव गवाँ गे। जब ले मूड़ चढ़े अगास हे माँ भुइयाँ के नाँव गवाँ गे। जहर नइये कहूँ सिरतोन […]

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श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – मया धन

मितान हम-तुम लकठा जातेन दुख-सुख बाँट के जुड़ा जातेन। दिन भर किंजर-बूल के संगी एक खोंधरा मा बने आ जातेन। जुच्छा मा भरे-भरे लगतिस गुरतुर गोठ के धन पा जातेन। मनखे के आतिस काम बने अइसन मया-धन कमा जातेन। गाँव के, भुइयां के, माटी के बिजहा-धान-कस गँवा जातेन। लाला जगदलपुरी

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श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – ‘फुटहा दरपन’ अउ ‘मनखे मर गे’

फुटहा दरपन हरियर छइहाँ हर उदुप ले हरन हो गे तपत, जरत-भूँजात पाँव के मरन हो गे। घपटे रहि जाथे दिन-दिन भर अँधियारी अँजोर के जब ले डामरीकरन हो गे। कुकुर मन भूकत हवें खुसी के मारे मनखे मनखे के अक्कट दुसमन हो गे। जउन गिरिस जतके, ओतके उठिस ओ हर अपत, कुलच्छन के पाँव […]

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श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – रतिहा

पहाड़-कस गरू हवय अँधियारी रतिहा टोनही बन गे हे एक कुआँरी रतिहा। बने रद्दा ह बने नइ लागय मनखे ला कोनो ला नइ दय कोनो चिन्हारी रतिहा। भिम-अँधियार के गुन गावत हे गुनवंतिन अँजोर के करथय बहुंते चारी रतिहा। अँगठी फोरथे दुखाही ह चच्चर ले सरापथे दिन ला, देथय गारी रतिहा। अब्बड़ रोवत हें खोर-खोर […]

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श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – ‘पता नइये’ अउ ‘अभागिन भुइयाँ ‘

पता नइये कखरो बिजहा ईमान के पता नइये कखरो सोनहा बिहान के पता नइये। घर-घर घपटे हे अँधियारी भैया गा सुरुज हवे, किरन-बान के पता नइये। पोथी पढ़इया-सुनइया पढ़थयँ-सुनथयँ जिनगी जिये बर गियान के पता नइये। करिस मसागत अउ खेती ला उजराइस किसान के घर धन-धान के पता नइये। अभागिन भुइयाँ तैं हर झन खिसिया, […]

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श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – धन-पसु

पेट सिकन्दर हो गे हे मौसम अजगर हो गे हे। निच्चट सुक्खा पर गे घर आँखी पनियर हो गे हे। हँसी-खुसी के रद्दा बर बटमारी घर हो गे हे। मया-दया के अचरा के जिनगी दूबर हो गे हे। दुसमन तो दुसमन होथे मितान के डर हो गे हे। पसु-धन के चारा चर के धन-पसु हरियर […]

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श्रीयुत् लाला जगदलपुरी जी के छत्तीसगढ़ी गजल – का कहिबे?

मन रोवत हे मुँह गावत हे का कहिबे गदहा घलो कका लागत हे का कहिबे? अब्बड़ अगियाए लागिस छइहाँ बैरी लहँकत घाम ह सितरावत हे का कहिबे? खोर-खोर म कुकुर भूकिस रे भइया घर म बघवा नरियावत हे का कहिबे? छोंरिस बैरी मया-दया के रद्दा ला सेवा ला पीवत-खावत हे का कहिबे? चर डारे हे […]

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कविता

लाला जगदलपुरी के कबिता

जब ले तैं सपना से आये मोला कुछु सुहावत नइये संगी तैं ह अतेक सुहाये पुन्नी चंदा ल देखेंव तोरे मुह अस गोल गढन हे अंधियारी म तारा देखेंव माला के मोती अस तन हे तोर सुगंध रातरानी हर भेजत रहिथे संग पवन के नींद भरे रहिथे आंखीं में दुख बिसराथंव जनम मरन के । […]