सार गोठ (मोर अंतस के सवाल ये हरे कि करजा नई सुहावय त जनम ले दाई-ददा हमर बर जे करे रथे वो करजा मुड म लदाय रथे तेला काबर नई छुटय? अऊ सिरतोन कबे त करजा करे के कोनो ल साद नई लागय फेर अपन लइका बर, परवार बर, जिनगी के बिपत बेरा म करजा […]
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कहिनी : नाव बदले ले न गाड़ी बदले न ठऊर
भटकुल नानचुन गांव रथे, फेर ऊंहा लड़ई-झगरा अऊ दंगा असन बुता होवते राहय। ऊंहा के गंउटिया इही झगरा के पीरा ल नई सही सकीस अऊ परलोक सिधार गे, ओखर माटी पानी में पुरा अतराब के मनखे सकलइस, ओमा एक झन साधु घलो आय राहय। वोहा गंउटिया के ननपन के संगवारी रथे, वोहा गंउटिया के जिनगी […]
साहित्य हरे अंधरा के तसमा
मटमटहा राम हा नवा-नवा साहित्यकार बने रथे, ओकर लेखनी के चारो खुंट परसंसा होथे वोहा कम दिन मे ज्यादा नाम कमा डरथे, त वोला लागथे के वोहा सबे जिनिस ल जान डरे हे अऊ इही बात के घमंड में साहित्य ल बिन जाने समझे जेन मिले तेन ल साहित्य काय आय कइके पुछथे, वोहा सबले […]
लगिन फहराही त बिहाव माढ़ही
बर बिहाव के दिन म जम्मों मनखे इहिच गोठ म लगे रथे, अऊ ठेलहा मनखे हा तो ये मऊका म जम्मों झन के नत्ता जोरे बर अइसे लगे रथे जइसे ओखर नई रेहे ले दुनिया नई चलही, इंजीनियर, डागटर ल घलो ऊखर मन के गोठ सुने ल परथे। छोकरी-छोकरा मन के दाई-ददा ले ज्यादा ओखर […]
बियंग : बरतिया बाबू के ढमढम
बिहाव के गोठ छोकरी खोजे ले चालू होथे अऊ ओखरो ले पहिली ले दुल्ही-दुल्हा दुनो घर वाला मन हा गहना-गुट्ठा बिसा डारे रथे। फेर अऊ नत्तादार मन ल का टिकबो, मुहु देखउनी का देबो तेखर संसो रथे। ताहन सगा पार मन ल पुछे के बुता फेर घर के लिपई पोतई, बियारा-बखरी ल छोलबे चतवारबे, पंडित […]
नवा बछर म करव नवा शुरुआत
हमर भारत म बारो महिना तिहार अऊ खुसी के दिन आवत रथे, फेर अंग्रेजी कलेंडर के एक चक्कर पुरे के बाद फेर एक जनवरी आथे अऊ ओला हमन नवा बछर के रुप म अब तिहार असन मनाये ल धर ले हन। येकर चलन हा अभी-अभी बाढ़ीस हवय, अऊ अब दिनो दिन बाढ़ते जावत हे। पहिली […]
कहाँ गंवा गे सिरतोन के मनखे
एक दिन के बात आय एक ठन कुकुर पिला दिनभर हमर गाँव के रद्दा म किंजरत रीहिस अऊ ओ रद्दा म बिक्कट गाड़ी मोटर चलत रथे। पिला बड़ सुग्घर धवरी रंग के गोल मटोल दिखत रीहिस जेन देखे तिही ओखर संग खेले के जतन करे लागे। फेर कोनहो वोला रद्दा ले नई टारीन अऊ ओखर […]
बस के सफर में का मजा आथे तेला तो गवंई गांव के रद्दा में जेहा बस के सफर करे होही तिही बता सकत हे। सहर वाला बस मन हा तो बस सवारी ढोवत रइथे, बस के असली मजा तो गांव के मनखेच मन हा पाथे। मेहा कई घांव मजा ले डरे हंव। कहां, काबर, काकर […]
कहानी : फूल के जघा पउधा भेंट करव
रवि अपन संगवारी उदय संग छोकरी खोजे बर निकरथे, लहुट के गांव म अपन ददा ल जाके कोनहो छोकरी नई भइस कइके बताथे। सरकारी नौकरी करईया पढ़े-लिखे रवि हा जम्मों झन ल पढई-लिखई, रंग-रूप, चिज-बस, गवंईहा-सहरिया कइके कमी खोजिच डारे। ओखर ददा कइथे तेहा अइसने करबे त जिनगी भर डेड़वा रेहे ल परही, भगवान के […]